# soresh, बहुत खूबसूरत काम है. मुझे याद पड़ता है दूसरे चित्र में एक (उझकता) चाँद भी था. मिटा दिया, या कि बुझ गया? वैसे कहीं केप्शन ने इस चित्र के भाव को सीमित तो नहीं कर दिया ? # निरंजन, कविता जाने कितने ही तरीक़ों से, कितने ही तलों पर, कितने ही माध्यमो में कहे जाने के लिए आतुर रहती है ....लेकिन् हम अकसर उस तल पर खुद को मेंटेन न रख पाने के कारण उसे चूक जाते हैं...
waah kya baat hai !!!!!
ReplyDeleteसुन्दर
ReplyDeleteबहुत सुन्दर भाई..वाह!
ReplyDeleteप्रस्तुति पसंद आई.भावप्रवण है.
ReplyDeleteplesent surprise. kavita aise bhi kahi jati hai!
ReplyDelete# soresh, बहुत खूबसूरत काम है. मुझे याद पड़ता है दूसरे चित्र में एक (उझकता) चाँद भी था. मिटा दिया, या कि बुझ गया? वैसे कहीं केप्शन ने इस चित्र के भाव को सीमित तो नहीं कर दिया ?
ReplyDelete# निरंजन, कविता जाने कितने ही तरीक़ों से, कितने ही तलों पर, कितने ही माध्यमो में कहे जाने के लिए आतुर रहती है ....लेकिन् हम अकसर उस तल पर खुद को मेंटेन न रख पाने के कारण उसे चूक जाते हैं...