Monday, December 31, 2012

नए साल पर पियो यह कड़वा ठंडा प्याला

 के .  सच्चिदानन्दन  समकालीन भारतीय  कविता में एक महत्वपूर्ण नाम हैं . वे  मलयालम भाषा के वरिष्ठ कवि एवं आलोचक हैं।सचिदा मेरे प्रिय कवि हैं. नव वर्ष  पर उन की  कविता  का यह सुन्दर अनुवाद अचानक एक मित्र के पोस्ट पर  प्राप्त हुआ  . आप सब के लिए . 







   नया साल 
  • के. सच्चिदानंदन                                                                                               (अनुवाद : राजेंद्र घोड़पकर)


एक कांपता हाथ बदलता है कैलेण्डर 

घूमता है एक रथ का पहिया छितराता खून 

कवि अपना काम आसानी से करता है 

घंटियाँ घनघनाती हैं मोमबत्तियों के प्रकाश में सहमी 

फीकी कोमल लालसाएं बिना कटे केक के सामने 

आस्तिक मनाता है नया साल 


अमूर्त कलाकार के बिना तारीख और महीनों के 

पंचांग में है रंगों का अत्याचार 

हिजड़ों की गली में 

नया साल आता है हिजड़े के रूप में 

एक रुपये के मैले नोट पर अशोक का दयालु स्तम्भ 

सड़क की वैश्या को इतिहास सिखाता है 


दुखते हुए पैरों से मैं घुसता हूँ नए साल में 

रात-भर अंगूरों को पैरों से मसलकर रस निकाल 

नींद में की शराब भरता हूँ चार प्यालियों में 

एक प्याली प्यार के लिए जिसे मैंने देखा सिर्फ भद्दे कपड़ों में 

एक प्याली पुरखों के लिए , उजले सफ़ेद वस्त्र पहने 

जिसने हमें धकेला कठिनाई में 

एक प्याली क्रांती के लिए, जो फिसलती रही छोटे-छोटे हाथों से 

यह प्याली भावी पीढीयों के लिए, जिन्होंने नहीं खोये हैं अब तक सारे 

सपने 


दोस्तों आओ, आओ बच्चों 

इस जर्जर मेज़ के गिर्द बैठो , वाल्मीकि जितनी पुरानी 

मेरे साथ खाओ यह तुच्छ रोटी, जो बनाई मैंने शब्दों से 

दुस्वप्नों की खमीर डालकर 


पियो यह कडुआहट से बुदबुदाता प्याला, मुक्ति के देवता के नाम, 

अजन्मे 

पियो यह ठंडा हुआ जा रहा है .


( महेश वर्मा की समयरेखा से साभार) 

2 comments:

  1. आज के संदर्भ मे सटीक अभिव्यक्ति जो आज के माहौल को उजागर कर रही है।

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  2. किसी प्राचीन कलाकृति की तरह...
    उदास कर देने वाले कर्मकांड की तरह...

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