Friday, January 11, 2013

एक औरत का धड़ भीड़ में भटक रहा है



चन्द्रकांतदेवताले छटे दशक की हिन्दी कविता  के प्रमुख कवि हैं जो अपने उम्र के छियत्तरवें  वर्ष में भी अपनी रचनात्मक सक्रियता को बनाए हुए हैं . अभी हाल ही में साहित्य अकादमी से सम्मानित इस अद्भुत कवि की यह  बेचैन कर देने वाली कविता आप पहले भी यहाँ देख चुके हैं . उम्मीद है कि इस असम्वेदनशील भयावहता के माहौल में यह कविता अपनी कुछ नई ध्वनियाँ दर्ज करवाएगी . जब कि मीडिया में कुछ मूढ़ बौद्धिक लगातार बलात्कार की जघन्यता को कुछ खास जातीयताओं , परिवेशों और उजड्ड गँवई मानसिकताओं की उपज बता कर भ्रम पैदा किए जा रहे हैं ;  या कुछ अन्य तरह के लोग इसे  भारत की नहीं अपितु इंडिया की घटना बता कर खुद को तसल्ली दे रहे हैं - यह कविता  औरत के सार्वभौमिक और सनातन सच को आप की आँखों की किरकिरी बना देती है 


औरत 

वह औरत
आकाश और पृथ्वी के बीच
कब से कपड़े पछीट रही है,

पछीट रही है शताब्दियों  से
धूप के तार पर सुखा रही है,
वह औरत आकाश और धूप और हवा से
वंचित घुप्प गुफा में
कितना आटा गूंध रही है ?
गूंध रही है मनों  सेर आटा
असंख्य रोटियाँ
सूरज की पीठ पर पका रही है,

एक औरत
दिशाओं के सूप में खेतों को
फटक रही है
एक औरत
वक़्त की नदी में
दोपहर के पत्थर से
शताब्दियाँ हो गईं
एड़ी घिस रही है,

एक औरत अनंत पृथ्वी को
अपने स्तनों में समेटे
दूध के झरने बहा रही है,
एक औरत अपने सिर पर
घास का गट्ठर रखे
कब से धरती को
नापती ही जा रही है,

एक औरत अँधेरे में
खर्राटे भरते हुए आदमी के पास
निर्वसन  जागती
शताब्दियों से सोयी है,

एक औरत का धड़
भीड़ में भटक रहा है
उसके हाथ अपना चेहरा ढूँढ रहे हैं
उसके पाँव
जाने कब से
सबसे
अपना पता पूछ रहे हैं

5 comments:

  1. अजेय भाई आपको देवताले जी के परिचय को दुरुस्‍त करना चाहिए....न वे उम्र के छियासवें वर्ष में हैं और अकविता आंदोलन के कवि तो कहीं से नहीं हैं। उनका जन्‍म 7 नवम्‍बर 1936 में हुआ और अकविता की एक आरम्भिक चिप्‍पी उन पर चिपका दी गई थी...वो भी बस उस दौर में शुरूआत करने के कारण....और एकाधिक बार अकवियों के साथ छपने के कारण भी.....वे वामपंथी परम्‍परा के बड़े कवि हैं। इसे ऐसे भी समझा जा सकता है कि कोई अकवि ऐसी कविता नहीं लिखता,जैसी आपने यहां प्रकाशित की है।

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    1. इस त्वरित प्रतिक्रिया के लिए शुक्रिया , दोस्त और मुझे दुरुस्त करने के लिए भी , अभी ठीक किए देता हूँ .

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    2. शुक्रिया मेरी ओर से भाई। आपका काम, आपका साथ बहुत मूल्‍यवान है। संवेदना जो इस स्‍तम्‍भ में गहरे समाई है, कहीं और देखने को नहीं मिली अब तक। आने वाली कविताओं की प्रतीक्षा है।

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  2. आपकी इस प्रविष्टी की चर्चा आज शनिवार (12-1-2013) के चर्चा मंच पर भी है ।
    सूचनार्थ!

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