tag:blogger.com,1999:blog-4459327284061162268.post2467062940164504461..comments2023-07-23T04:52:16.477-07:00Comments on अजेय: आज हम पहाड़ लाँघेंगेअजेयhttp://www.blogger.com/profile/05605564859464043541noreply@blogger.comBlogger20125tag:blogger.com,1999:blog-4459327284061162268.post-68715998684607855872010-01-13T02:15:48.757-08:002010-01-13T02:15:48.757-08:00आज हम पहाड़ लाँघेंगे
उस पार की दुनिया देखेंगे !har ...आज हम पहाड़ लाँघेंगे<br />उस पार की दुनिया देखेंगे !har kavita me kuch karne ki dhun,kuch positive attitude sa hai..डिम्पल मल्होत्राhttps://www.blogger.com/profile/07224725278715403648noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-4459327284061162268.post-74160426041500844462010-01-12T08:24:42.626-08:002010-01-12T08:24:42.626-08:00that ends well.that ends well.अजेयhttps://www.blogger.com/profile/05605564859464043541noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-4459327284061162268.post-53258226709718191942010-01-11T11:00:59.182-08:002010-01-11T11:00:59.182-08:00अजेय भाई
आपका ब्लॉग बनाकर आपकी नाराज़गी प्राप्त कर...अजेय भाई <br />आपका ब्लॉग बनाकर आपकी नाराज़गी प्राप्त करूँगा, कभी ऐसी कल्पना भी नहीं की थी। खैर....! आपके दिल में जो था वो आपने बता दिया मेरे दिल में जो था मैंने आपके ब्लॉग बना कर ज़ाहिर कर दिया। आपका आभारी हूँ कि आपने मुझ जैसे अदने व्यक्ति को अपना ब्लॉग बनाने की इज़ाज़त दी और मैं इस काम में किसी न किसी तरह सफल हो सका।<br />ऑल इज़ वैल...!!!!!!Prakash Badalhttps://www.blogger.com/profile/04530642353450506019noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-4459327284061162268.post-38164306654923221522010-01-11T04:28:12.917-08:002010-01-11T04:28:12.917-08:00बादल भाई, इस में आहत होने जैसा कुछ नहीं है. हम जो ...बादल भाई, इस में आहत होने जैसा कुछ नहीं है. हम जो कुछ कर रहे हैं , एक ईमानदार कविता को बचाने के लिए है. व्यक्तिगत यहाँ कुछ नहीं है. अच्छी कविता कविता , चाहे वो किसी की भी हो , आप को अच्छी लगती है तो यह कविता के हित में है. जीवन गत और घरेलू ज़िम्मेदारियों के चलते हम न जाने कितनी ही कविताएं हर रोज़ 'मिस' कर जाते हैं. लेकिन बावजूद इस के एक प्यास भीतर बची है तो समझिए हम ने दुनिया जहान की कविताई बचा ली. भाई निशांत और मेरे लिए आप का प्यार इसी प्रक्रिया का हिस्सा है. आभार.अजेयhttps://www.blogger.com/profile/05605564859464043541noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-4459327284061162268.post-7526360959796387392010-01-10T05:15:41.224-08:002010-01-10T05:15:41.224-08:00अजेय भाई,
आपने मेरे लिए जो "प्रशंसा पत्र ...अजेय भाई, <br /> <br /><br />आपने मेरे लिए जो "प्रशंसा पत्र लिखा उसे पढ़कर भाई सुरेश सेन "निशांत" के पत्र के बाद दूसरी बार ठेस लगी है। ख़ैर! मेरा मिशन बिल्कुल निश्छल और लाग लपेट से बाहर है। मैं सभी हिमाचली कवि मित्रों की कविताएं उन पाठकों की नज़र भी करना चाहता था जो अधिकतर समय इंटरनैट पर बिताते हैं। इसी आशय से मैंने मात्र उन कवियों को चुना जिनकी कविताएं मुझे व्यक्तिगत तौर पर अच्छी लगती हैं। ये मेरी कमज़ोरी है कि आपको मैं अपने प्रिय कवियों में देखता हूँ। इसी के चलते मैंने आपका ब्लॉग बना डाला। आशा है आप मुझे मेरे इस "गुनाह" के लिए क्षमा करेंगे। रही ब्लॉग की कूँजी की बात तो वो आपने मुझसे माँगी ही नहीं तो मैं देना भूल गया। मुझे बहुत खुशी होती कि आप उसी ब्लॉग को चलाते लेकिन आपने अपना नया ब्लॉग बनाया ये भी बहुत सुखद अहसास है। पिछले आधे वर्ष अपनी सासू माँ के ईलाज में चंडीगढ़ के पीजीआई अस्पताल में गुज़ारे, लेकिन मुझसे एक गलती हो गई मैं आपकी कविताएं ले जाना भूल गया, यदि आपकी कविताएँ साथ ले जाता तो अस्पताल में टाईप करके ब्लॉग पर डाल देता तो आपकी नाराज़गी का सामना न करना पड़ता। खैर मुझे क्षमा करें। आपकी कविताएं मुझे ठीक उसी प्रकार पसंद है जिस प्रकार भाई निशांत की। इस हक से आप मुझसे कैसे छीनते हैं देखना ये है।Prakash Badalhttps://www.blogger.com/profile/04530642353450506019noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-4459327284061162268.post-66549451412288260372010-01-07T07:39:31.218-08:002010-01-07T07:39:31.218-08:00अर्रर्रर्रर्र… गड़बड़ हो गई… हो ची मिन लिख दिया। लिख...अर्रर्रर्रर्र… गड़बड़ हो गई… हो ची मिन लिख दिया। लिखना था माई ची मिन।<br />अरे भाई आपको कम्युनिस्ट बनाने का कोई इरादा नहीं… एक दोस्त लाल छतरी के हवाले नहीं करना चाहता…महेनhttps://www.blogger.com/profile/00474480414706649387noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-4459327284061162268.post-50918689898593758302010-01-05T00:02:47.485-08:002010-01-05T00:02:47.485-08:00# सोरेश, खुशी हुई कि हिन्दी ब्लॉग पर आए.देर से ह...# सोरेश, खुशी हुई कि हिन्दी ब्लॉग पर आए.देर से ही सही. जहाँ तक मुझे याद है,पिछले पच्चीस सालों में यह मेरी दूसरी कविता है जो तुम्हें पसन्द आई.शुक्रिया.<br /><br /># घरसंगी जी , अच्छा लगा कि आप ने इस कविता के विशुद्ध आँचलिक संदर्भ को पकड़ा. देव नागरी सीखिए. सादर. <br /><br /># हरनोट जी, आप की भावनाओं का सम्मान करता हूँ, क्षमा करेंगे, मुझे नाम से डर लगता है.<br />कविताओं की खेती करना मेरे बस की बात नहीं है. भाई निशांत के पास तो पहले ही से कविताओं का भण्डार है. लबालब संवेदनाओं से भरे हुए कवि हैं वे. ज़ाहिर है. उन्हें भी खेती करने की ज़रूरत शायद ही हो. लेकिन जो अन्दर है, उसे कहीं न कहीं किसी मंच पर कहना ही है. सो कह रहे हैं, और बखूबी कह रह रहे हैं. हाँ दूर से यह झण्डे गाड़ने जैसा लगता हो ,तो ठीक है , वह भी बुरा नहीं है.आप् की बातों को मैं हमेशा गंभीरता से लेता हूँ. एक बुज़ुर्ग के हिदायतओं की तरह. ये सब बातें भी नोट कर ली गईं हैं. सादर. <br /><br /># महेन, इतना झाड़ पर मत चढाओ यार,ये तो बड़े ‘आदमी’ हैं. और् क्यों मुझे कम्युनिस्ट बनाने पर तुले हो ? मेरी “ प्रार्थना” कविता पढ़ी है ? अदना सा ईश्वर भक्त हूँ..... यह अलग बात है कि आस्तिक नहीं हूँ. न ही नास्तिक हूँ. <br />माफ करना ब्रेख्त और होचि को कम्युनिस्त बात बात पर कोट करते हैं. इस लिए ऐसा कहना पड़ा.अजेयhttps://www.blogger.com/profile/05605564859464043541noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-4459327284061162268.post-63708074806734391582010-01-04T06:59:07.488-08:002010-01-04T06:59:07.488-08:00इसे पढ़ते हुए मुझे बार बार ब्रेख्त की याद आ रही है।...इसे पढ़ते हुए मुझे बार बार ब्रेख्त की याद आ रही है। वजह तो मुझे भी समझ नहीं आई। हो ची मिन की एक कहानी भी ज़ोरों से याद आ रही है।<br />नया साल बहुत बहुत मुबारक अजेय भाई।महेनhttps://www.blogger.com/profile/00474480414706649387noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-4459327284061162268.post-89008251557539315372010-01-04T06:54:09.489-08:002010-01-04T06:54:09.489-08:00प्रिय अजेय
ब्लॉग देख लिया है और कविता भी पढ़ त्ग ...प्रिय अजेय<br /><br />ब्लॉग देख लिया है और कविता भी पढ़ त्ग है..बहुत अच्छी कविता है.<br />मेरे मन में आप और निशांत के लिए बहुत बड़ी सोच है......हिमाचल हिन्दी साहित्य में हमेशा से पिछड़ता रहा है. ऐसा नहीं है की यहाँ प्रतिभा नहीं थी या नहीं है. प्रंतु हमारे कोई सामूहिक इस तरह के प्रयास नहीं हो पाए जिससे हम इस प्रदेश की सीमायों को लांघ पाते..इसके अनेक कारण हो सकते हैं. पिछले कुछ सालों से यह होने लगा है और जिस किसी ने यह काम किया है उसने अकेले ही बाहर निकलने की हिमत्त जुटाई है. यहाँ का जो litraray परिदृश्य रहा है वह उस जंगली बिल्ली की तरह है जो अपने हे बच्चों को खाकर भूख मिताक़ देती है. <br />आपने और विशेषकर निशांत ने जिस तरह से राष्ट्रीय परिदृश्य पर अपना झंडा गड़ा है वह हमारे लिए सम्मान की बात है. इसमें अब मुरारी का नाम भी जुड़ गया है. कुछ और युवा भी इस तरफ प्रयास में है. मेरी दिली इच्छा है की कविता में जो नाम डेल्ही या दूसरी जगहों के बड़े कवियों के हैं उस तरह सुरेश सेन निशांत के साथ अजय का नाम भी हो. और हिमाचल को आप के नाम से जाना जाए. इसलिए आपको भी निरंतर बाहर निकलना है....ताकि हर जगह आपके नाम लिए जायें....एक बहुत बड़ा पाठकों का संसार आपके पास हो..........इंटरनेट की दुनिया भले ही आपको ग्लोबल बना देती है लेकिन अभी वहाँ साहित्य का इतना बड़ा पाठक वर्ग नहीं है जितना प्रिंट मीडीया में हैं. आप देखेंगे की वाही बीस या पच्चास लोग इस ग्लोबल दुनिया में आपके पास हैं....मैं यदि मन से कहूँ तो हम इस तरह कभी कभार अपना टाइम भी बरवाद कर रहे हैं. <br /><br />हालांकि संवाद के लिए यह बहुत अच्छा जरिया है.<br /><br />मैं चाहता हूँ की आप भी निशांत की तरह कविता की खेती करनी शुरू कर दें.....ताकि आने वाले समय में लोग बड़े कवियों के समकक्ष आपके नाम लें......और हिमाचल में जो साहित्य का सूखा पड़ा है उसमें गीलापन आए .<br /><br />मैं आप, निशांत , मुरारी और निरंजन जैसे मित्रों को पाकर बहुत सहज महसूस कर रहा हूँ. मुझे आप सभी के मार्गदर्शन की जरूरत है...सच मुझे बराबर आप सभी से उर्जा मिलती है......2010 हमारे प्रदेश के लिए साहित्य में एक उदाहरण बन कर आए मेरी यही कामना है.<br /><br />आपका संग्रह भी इस साल हर हालत में आ जाना चाहिए ......2011 में तो जनवरी तक की मोहलत आपको दे जा सकती है.<br /><br />मेरी ढेरों शुभकामनायें आप सभी के साथ है. कुछ ठीक न लगे तो उस पर बिल्कुल भी ध्यान न देना.<br /><br />आपका<br /><br />हरनोटAnonymousnoreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-4459327284061162268.post-27729425848191845752010-01-01T23:18:02.822-08:002010-01-01T23:18:02.822-08:00aaj hum pahar langhen ge
us par ki dhup tapen ge
i...aaj hum pahar langhen ge<br />us par ki dhup tapen ge<br />idhar sheet ke ehsas ko<br />udhar ki suhawane dhup se laba lab bhar kar nayee kori hawano se<br />sahej kar uphante jajbat ki<br />garam god me sal bhar oonghte rahen ge<br />aaj hum pahar langhen ge<br />us paar ki dhup tapen ge<br /><br />bahut-2 shubh kamnayen<br />tumharee kavitanyen Lahouli<br />manas ke antas me bethi ek gehri<br />asmanjas se uthne ki baat kehti hai<br />kaash har koi in samvednaon ko samajh kar ek naee sunharee tasweer ka ijaad kare aur apnee jadon ko samjhe<br /><br />gharsangigharsangi d' shangmehttps://www.blogger.com/profile/07479373178241888389noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-4459327284061162268.post-24346390742007305492010-01-01T22:49:34.552-08:002010-01-01T22:49:34.552-08:00This poem is certainly going to haunt me for long ...This poem is certainly going to haunt me for long time. It creates the feeling of an empty bed besides you all night long, it creates the feeling of birds flying south.It makes me feel like 'this side of the hill' . lonely and arid yet has to feed the 'BIUNS' for herd and prepare itself for once again to be alone coming winters.vidyarthihttps://www.blogger.com/profile/14414743307825251319noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-4459327284061162268.post-88520669062913774002010-01-01T10:07:57.181-08:002010-01-01T10:07:57.181-08:00आभार आप सब का ! मैं एनर्जाईज़ हुआ. ताक़त मिली है.
#...आभार आप सब का ! मैं एनर्जाईज़ हुआ. ताक़त मिली है. <br /># पवन, थेंक्स. आप की बात नोट कर ली गई है.अजेयhttps://www.blogger.com/profile/05605564859464043541noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-4459327284061162268.post-25313798306381882422010-01-01T09:34:05.618-08:002010-01-01T09:34:05.618-08:00very sensitive poetry. badhai.very sensitive poetry. badhai.किरण अग्रवालhttps://www.blogger.com/profile/09880576110761494594noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-4459327284061162268.post-74088488567024089382010-01-01T08:13:06.525-08:002010-01-01T08:13:06.525-08:00अजय भाई आप की कविता पढने के लिए आपका ब्लॉग खोला था...अजय भाई आप की कविता पढने के लिए आपका ब्लॉग खोला था पर धीरे धीरे पूरा ब्लॉग पढ़ गया. सच कहूँ तो लाख चाहत के बाद पहाड़ नहीं देखे मैंने. इस बात को मै अफ़सोस भरे लेकिन शहीदाना अंदाज में अपने दोस्तों को कहता था.... पर अब नहीं कह पाउँगा शायद. एक पहाड़ है जो धड़कता है आप के सीने में. उस धडकते दिल के मौसमों को बदलते महसूस किया....एक बार आपको छुने की चाहत हुई. बर्फ पिघले न पिघले, दर्द एक सर्द बेरहम तूफान सा क्यों न और जाए, अपने अन्दर के इस पर्वत को काट कर कभी कंक्रीट की बस्तियां न बसियेगा...<br />आपका <br />पवन मेराजPawan Merajhttps://www.blogger.com/profile/09779959868395325406noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-4459327284061162268.post-65321391566755816222010-01-01T07:43:59.922-08:002010-01-01T07:43:59.922-08:00अजेय भाई नये साल की इससे शानदार शुरुआत क्या हो सकत...अजेय भाई नये साल की इससे शानदार शुरुआत क्या हो सकती थी!<br /><br />उम्मीद और सपनों से भरी एक ताज़ा कविता…Ashok Kumar pandeyhttps://www.blogger.com/profile/12221654927695297650noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-4459327284061162268.post-2960427636872229442010-01-01T07:24:23.856-08:002010-01-01T07:24:23.856-08:00नए बरस में पहाड़ लांघने और इस दुनिया से उस दुनिया ...नए बरस में पहाड़ लांघने और इस दुनिया से उस दुनिया में जाने का संकल्प, उत्साह, हिम्मत, आकांक्षा और सपने देखने और उनके पूरे होने तक की कठिन लेकिन जीवंत यात्रा पंक्ति दर पंक्ति यानी कदम दर कदम आगे बढ़ रही है. <br />मुबारक हो यह सफर...Anup sethihttps://www.blogger.com/profile/13784545311653629571noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-4459327284061162268.post-67628839990835737462010-01-01T07:24:03.915-08:002010-01-01T07:24:03.915-08:00अजेय भाई भेड़ चरवाहों की यह ऎसी कथा है, जो उम्मीदों...अजेय भाई भेड़ चरवाहों की यह ऎसी कथा है, जो उम्मीदों से भर देती है। यही तो त्रासदी है कि अपने रेवड़ों के साथ निकलने वाले इन रास्तों के खोजियों पर भी ये मुनाफ़ाखौर दौर चौकसी बैठा रहा है। <br />तुम्हारी कविता हौसला बंधाती है भाई:<br /><b>अलविदा ओ पतझड़ !<br />बाँध लिया है अपना डेरा-डफेरा ,हाँक दिया है अपना रेवड़<br />हमने पथरीली फाटों पर<br />यह तुम्हारी आखिरी ठण्डी रात है<br />इसे जल्दी से बीत जाने दे</b><br /><br />सच हों ये उम्मीदें। लाघंते रहे हम पहाड़ दर पहाड़ एक दूसरे का हाथ पकड़े पकड़े।विजय गौड़https://www.blogger.com/profile/01260101554265134489noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-4459327284061162268.post-22280056389387871972010-01-01T05:49:49.688-08:002010-01-01T05:49:49.688-08:00badhai. naye varsh me isi tarah srijanrat rahen.badhai. naye varsh me isi tarah srijanrat rahen.Arun Adityahttps://www.blogger.com/profile/11120845910831679889noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-4459327284061162268.post-64061606816725457232009-12-31T08:17:00.782-08:002009-12-31T08:17:00.782-08:00सबको उनके हिस्से का शुक्रिया कहकर नए,उम्मीद के मक़ा...सबको उनके हिस्से का शुक्रिया कहकर नए,उम्मीद के मक़ाम की ओर ले जाने के इरादे देती कविता.<br />नए साल की शुभकामनाएं.उम्मीद करता हूँ इस साल आपकी ढेरों कविताओं में पहाड़ को सुनूंगा.sanjay vyashttps://www.blogger.com/profile/12907579198332052765noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-4459327284061162268.post-84365638963345428792009-12-31T02:11:50.702-08:002009-12-31T02:11:50.702-08:00अजय आपको और हिमाचल के सभी साथियों को नया साल मुबार...अजय आपको और हिमाचल के सभी साथियों को नया साल मुबारक हो! <br />कविता शानदार है. <br />नए रचनात्मक साल के लिए मेरी शुभकामनाएँ.शिरीष कुमार मौर्यhttps://www.blogger.com/profile/05256525732884716039noreply@blogger.com