tag:blogger.com,1999:blog-4459327284061162268.post3128979174495620251..comments2023-07-23T04:52:16.477-07:00Comments on अजेय: मैं उसे पसन्द करता हूँ अजेयhttp://www.blogger.com/profile/05605564859464043541noreply@blogger.comBlogger3125tag:blogger.com,1999:blog-4459327284061162268.post-65539569441516312902014-01-30T06:53:03.722-08:002014-01-30T06:53:03.722-08:00यह स्त्री मुझे भी बेहद पसन्द है ! प्रेम करने की हद...यह स्त्री मुझे भी बेहद पसन्द है ! प्रेम करने की हद तक ! लेकिन महेश पुनेठा का प्रश्न झकझोरता है , प्रेम और पसन्द की बात दूसरी है --- क्या हम अपनी पत्नी को इस स्त्री के रूप में 'देख' सकते हैं ? मैं ज़रा आगे जा कर पूछता हूँ -- 'झेल' सकते हैं ? <br />अजेयhttps://www.blogger.com/profile/05605564859464043541noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-4459327284061162268.post-64143503605457972752014-01-27T06:05:19.340-08:002014-01-27T06:05:19.340-08:00कविता अच्छी लगी . खासकर अंतिम पैरा समाज में स्त्री...कविता अच्छी लगी . खासकर अंतिम पैरा समाज में स्त्री की मानसिकता की बनावट को बहुत बेहतर ढंग से समझा गया है . सामाजिक ढांचे में आमतौर पर कैसे ढलती है स्त्री और इस ढांचे को तोड़ कर अपना रास्ता स्वयं बनाने वाली स्त्री को किस नज़रिए से देख पाती है . कविता पढ़ कर सुभाष पन्त की कहानी 'चाय घर में लड़की' याद आयी जिसमें एक जगह लड़की कहती है कि यदि वे झूठ नहीं बोलेंगी तो मारी जाएँगी . स्त्री की स्वतंत्रता के मसले पर समाज दरवाजे खिड़कियाँ बंद करके बैठ जाता है जाता है और पुरुष स्त्री के लिए चिर परिचित जुमला दोहरा देता है कि औरत को समझना बहुत कठिन है . समाज ने उसकी सीमाएं इस तरह निर्धारित कर रखी हैं कि सीमा रेखा पर संभल कर चलना भी उनके लिए खतरे से खाली नहीं है . -' हमेशा भीतर की ओर लौट आती हैं खोजती हुईं '. पुनेठा जी ने इस कविता में स्त्री को एक तरह के नयेपन के साथ देखा है . आज कविता से पाठक की मांग ही कविता से बदलते हुए समय की संवेदनाओं को पकड़ने की और उसके लिए उचित शिल्प की खोज करने की है न कि वस्तु और शिल्प को बार -बार दोहराने की . इस दृष्टि से भी कविता अच्छी लगी . 'और याद करने लग जाती है / तमाम कडवे फलों के बीच / कुछ मीठे फलों के स्वाद को ' - बेहतर . महेश पुनेठा और अजेय दोनों को बधाई .niranjan dev sharmahttps://www.blogger.com/profile/16979796165735784643noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-4459327284061162268.post-32994101524790288692014-01-26T22:58:38.368-08:002014-01-26T22:58:38.368-08:00बहुत लाजवाब संवेदनशील रचना ...बहुत लाजवाब संवेदनशील रचना ...दिगम्बर नासवाhttps://www.blogger.com/profile/11793607017463281505noreply@blogger.com