tag:blogger.com,1999:blog-4459327284061162268.post4598738422461173177..comments2023-07-23T04:52:16.477-07:00Comments on अजेय: भाषा - गणेश देवी का शो (शा)अजेयhttp://www.blogger.com/profile/05605564859464043541noreply@blogger.comBlogger15125tag:blogger.com,1999:blog-4459327284061162268.post-73560962922487748432010-03-20T04:19:37.534-07:002010-03-20T04:19:37.534-07:00तो ऐसा कहिए न कि आप रति सक्सेना हैं. सॉरी. मैं तो ...तो ऐसा कहिए न कि आप रति सक्सेना हैं. सॉरी. मैं तो अपने एक पुरुष कवि मित्र पर शक कर रहा था, जो मेरी कृत्या अफिलिएशन को ले कर शुरू से चिढ़ा हुआ था और अनोनिमस कमेंट करता रहा था. तुम संबोधन के लिए क्षमा चाह्ता हूँ.<br /># माँ तो माँ होती है रति जी, और वह खुश भी हो जाया करती थीं ऐसी बातें सुन कर. उस् बेचारी को क्या पता सम्पादक होने का मतलब क्या है.<br /># कृत्या को अपनी निगाहें साधनी ही होंगी . यह कर इस प्रश्न को टाला नहीं जा सकता कि भारत को भारतीय मानसिकता में ही जीना है. यह मानसिकता बदलनी होगी रति जी, हिमालय भारत का एक वाईटल अंग है. और बहुत दूर नहीं है यह , दिल्ली से उत्तर की तरफ बस पकड़ो तो छह घण्टे बाद् हिमालय शुरू हो जाता है.उस के दूसरी तरफ चीन है. <br />#मैं, मिलारेपा और आदि बुद्ध की बराबरी में हूँ.....और हमारी परंपरा में कोई महान या तुच्छ नहीं होता .... सब के सब समान रूप से अराजक होते हैं. <br /><br />#जहाँ तक मेरे क्षमा करने का सवाल है,आज से 2010 साल पहले ईसा ने मुझ से प्राथना की थी कि ...."उन्हे माफ कर देना क्यों कि वे नहीं जानते कि वे क्या कर रहे हैं." वह दिन और आज का दिन मैं सब को क्षमा करता रहा हूँ. तो आप को क्यों नहीं? खुश रहिए , छमा किया. <br />#अजेयhttps://www.blogger.com/profile/05605564859464043541noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-4459327284061162268.post-9794388395615333432010-03-20T02:48:05.331-07:002010-03-20T02:48:05.331-07:00यह तो मैं भी समझ रही हूँ कि अजेय नामक ये महान कवि ...यह तो मैं भी समझ रही हूँ कि अजेय नामक ये महान कवि मिलारेपा के बबराबरी तक पहुँच गया है। तभी तो मुझ जैसी मूर्खा पर तानाकशी करता रहा है। ये जानकारी भी मिली , कि दिल्ली से त्रिवेन्द्रम तक की यात्रा कवि अजेय के लिए मजबूरी थी । आप मुझ से तुम करके बात करने लगें है, यह भी समझने वाली बात है। क्यों कि मुझ कृत्या में संपादकीय सहयोग देने की इस नाचीज की गुजारिश पर आप की यह उक्ति मुझे आज तक याद है - मैं माँ को बताउंगा कि मैं संपदाक बन गया, तो वह बड़ी खुश होगी। <br /><br /><br />कृत्या की निगाहें इतनी दूर कैसे देख सकती हैं, टिपिकल भारतीय हूँ, तो अभारतीय या विदेशी मानसिकता कहाँ से लेकर आऊँ? (तुम्हारी टिपिकल भारतीय मानसिकता)<br />चलिए महान असहज और कभी कभी सहज आत्मा जी, क्षमा कीजिए, अपने प्रवचन जारी रखिए।<br /><br />चलिए महाराज छमा कीजिए....Anonymousnoreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-4459327284061162268.post-8973476591385231842010-03-18T19:57:26.860-07:002010-03-18T19:57:26.860-07:00इस कम्प्लीमेंट के लिए धन्यवाद. इतने अरसे से तुम म...इस कम्प्लीमेंट के लिए धन्यवाद. इतने अरसे से तुम मुझे इतने गहरे जा के देख रहे(रही) हो.मेरी ग्रोथ का नोटिस ले रहे (रही) हो. कवि पैदाईशी असहज होता है. सहज होने के लिए कविता करता है. मैं भी शुरू से ही असहज आत्मा हूँ. तुम्हें अब दिखा है. खुश हूँ कि इस बीच तुम्हारी भी दृष्टि काफी ग्रो हुई है. बल्कि ज़्यादा खुश तो इस लिए कि मुझे इतने सारे अज्ञात लोग क़रीब से जानते हैं.<br />हवाई यात्रा और रेल यात्रा (तुम्हारी टिपिकल भारतीय मानसिकता)को ले कर कंफ्यूज़ मत हो जाना. इसे थोड़ा सा समझ लेना पहले.रोहतांग के चलते हवाई यात्रा मेरी मजबूरी है.जब कि रेल यात्रा एक रोमांचकारी शुगल.......अजेयhttps://www.blogger.com/profile/05605564859464043541noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-4459327284061162268.post-36566339197074637652010-03-18T12:03:01.328-07:002010-03-18T12:03:01.328-07:00मुझे तो इस नए कवि में पुराना कवि नजर ही नहीं आता, ...मुझे तो इस नए कवि में पुराना कवि नजर ही नहीं आता, जो अपने सरोकारों को जानते हुए , रेल गाड़ी से पहले हवाई यात्रा करते हुए भी बेहद सहज था।Anonymousnoreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-4459327284061162268.post-87932680774501477612010-03-17T20:13:10.906-07:002010-03-17T20:13:10.906-07:00ओ....ओ....ओ....!
यह तो बौछार ही हो गई. कहाँ से आर...ओ....ओ....ओ....! <br />यह तो बौछार ही हो गई. कहाँ से आरम्भ करूँ? <br />ठीक है, घर से ही करता हूँ. <br /><br /># अजय, शुक्रिया. कवि से जो छूट गया, पत्रकार ने पकड़ लिया. सॉरी. कभी कभी बड़ा फलक पकड़ने के चक्कर में हम ज़रूरी स्थानिकता को नज़रंदाज़ कर जाते हैं. तुम्हारी आशंका सही है. यूँ तो कोई भी सर्वेक्षण पर्फेक्ट नहीं हो सकता. कुछ न कुछ पूर्वग्रह काम कर ही रहे होते हैं. और ग्रियर्सन का काम अपवाद नहीं है. लेकिन जहाँ तक हिमालयी भाषाओं को चिन्हित करने का सवाल है, ग्रियर्सन को कोई माई का लाल काट नहीं सकता. हाँ वर्गीकरण और नामकरण के मानदण्डों पर सवाल खड़े हो सकते हैं. वैसे इस मुद्दे को लेकर मैं वहाँ भाषाविदों से बेतरह उलझा. मैंने ज़ोर दे कर कहा कि सौ साल पहले लाहुल की जो पाँच-छह बोलियाँ ग्रियर्सन ने पहचानी वे आज भी यथावत मौजूद हैं. उन में से चार के वक्ता उस सभा में मौजूद हैं. लेकिन वहाँ लाहुली नाम की एक मात्र वायवी भाषा का ज़िक्र था. सूत्र था 1961 की जनगणना के दस्तावेज़.जब कि हिन्दी और खड़ी बोली दो अलग अलग भाषाएं थीं. यह भी तर्क दिया गया कि गुजराती और राठवी एक ही भाषा है. क्यों कि राठवी वाला गुजराती बोल-समझ सकता है. मैं करोड़ों हिन्दी भाषियों से अच्छी, शुद्ध , व्याकरण सम्मत हिन्दी बोल, समझ और लिख सकता हूँ तो इस का मतलब यह थोड़ी होगा कि पटनी और हिन्दी एक ही भाषा है! कुतर्क की हद देखिए, कि वह विशेषज्ञ यह भी स्वीकार कर रहा है कि जनगणना के आँकड़े महज़ ट्रेंड दिखाते हैं, इन का तकनीकी महत्व नहीं होता. फिर भी ग्रियर्सन गलत ही थे, और लाहुल में एक ही भाषा है क्यों कि लाहुल एक ही भौगोलिक क्षेत्र है. ...CIIL का एक आला प्रतिनिधि तो पूरी ढिठाई के साथ यहाँ तक बोल गया कि हम ने मनाली में एक राह चलते लामा जी से पूछ कर लिखा है. यह तो स्तर है इन की विशेषज्ञता का. और चले हैं ग्रियर्सन को चुनौती देने. फिर ठण्डे दिमाग से मैंने सोचा कि गलती इन बेचारे नीम हक़ीम भाषाविदों की नहीं है, जो उच्च अध्ययन संस्थान मे बैठ कर डेटा तय्यार करते हैं . बल्कि उन शातिर सूचना दाताओं की है, जो गलत सूचनाओं से नीयतन भाषाई संभ्रम की स्थिति पैदा करते हैं. हमें ऐसी राजनीति करने वालों को चिन्हित कर उन्हें आड़े हाथों लेना होगा. <br /><br />#स्नोवा, महान हिमालय तुम्हे साईबेरिया की वहशी सर्द हवाओं से सुरक्षित रखे. * भाषा को अब मर्दानगी से थोडा स्त्री -भाव तक आना होगा. हिमालय की भाषाओं की तरह. पिघले तो निर्झर फूटें, सिर नहीं* क्या बात कही है ! वैसे फिलहाल् तो *देवी* जी की *भाषा* स्त्रैण ही है. पता नहीं आगे क्या मंज़र होगा? हम शुभ शुभ सोचें. आल इज़ वेल. <br /><br /># कृत्या, इस ब्लॉग पर दूसरी विज़िट के लिए शुक्रिया. लेकिन तुम अर्द्धसत्य कह रही हो.जो कि पूर्ण मिथ्या से ज़्यादा खतरनाक होता है. इस दुनिया में कवि अजेय एक ही है. तिलि, नरो, मर्पा, मिलारेपा की अराजक काव्य परंपराओं एक मात्र प्रवक्ता कवि. लेकिन वह हिमालय से दिल्ली तक बस मे आया था, भारत एक पिछड़ा देश है. हिमालय पर पटड़ी बिछाने की अभी उस की बुक्कत नहीं है. बेशक चीन हमारी पीठ को रौन्दता हुआ गर्दन तक पहुँच चुका है. और दिल्ली से आगे की यात्रा अजेय ने हवाई जहाज़ से की. रेल से नहीं .रेल पे बैठा ही नहीं था अभी तक. इसी से विजय कुमार समझे होंगे कि यह् अजेय् कुछ हवाई क़िस्म का कवि है.तो एक *प्रगतिशील कवि* की वह चिंता जायज़ थी. और यह पोस्ट किसी की खिल्ली उड़ाने की गरज़ से नहीं, एक बड़े सपने को सच बनाने के लिए मोटिवेशन के तौर पर लिखा गया है.क्यों कि यह सपना मेरे सरोकारों से जुड़ता है.अजेयhttps://www.blogger.com/profile/05605564859464043541noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-4459327284061162268.post-37698222449352486572010-03-17T08:24:40.869-07:002010-03-17T08:24:40.869-07:00On 3/17/10, Oshiya A New Woman wrote:
> हाँ, अ...On 3/17/10, Oshiya A New Woman wrote:<br />> हाँ, अजेय, शेखर पाठक ठीक कहते हैं : "बड़े सपने सबको नहीं आते,"<br />> मेरी कहानी "बारदो" में यही विस्तार से कहा है मेरे ज़रिये किसी सपने ने.<br />><br />> आप सब लोग भाषा सम्मलेन में हो आये और पाया कि सबको अपनी-अपनी भाषा चाहिए.<br />> अपवाद को ही कुछ लोगों ने सोचा की हिमालय के लोग क्यों दूसरी भाषाओं से आज तक<br />> नहीं डरे?<br />> एक वजह ये भी है कि यहाँ, भाषा से पहले ध्यान यानी आंतरिक जागरूकता को जन्म से<br />> ही आसपास देखने का अभ्यास मिलता है. मौन और कुदरत से पहले नाता जुड़ जाता है.<br />> आगे की राम जाने क्या होगा?<br />><br />> अपने एक उपन्यास में से अपने नायक को बुलवाती हूँ :<br />><br />> "अनुभवकर्ता के किसी काम की नहीं है भाषा. वो दूसरे तक पहुँचने का ज़रा सा<br />> ज़रिया भर है. लेकिन जितनी वह गहरी और धीमी होती जाती है, उतनी ही हमारी प्रिय<br />> भी बन जाती है. फिर दोहराव पा-पा कर वह भी पुरानी पड़ जाती है. बाहरी भाषा हमें<br />> 'हम' से हटा कर 'वह' बना देती है. लेकिन जहां भाषा हमारे आत्म की स्वामिनी<br />> नहीं, अनुचरी है, वहीँ हमारी अनुभूति अखंड है.<br />> हमें निरंतर नयी और गहरी भाषा का संधान करते रहना है, ताकि हम अतीत कम, वर्तमान<br />> अधिक हों, नए भविष्य की नींव के साथ. वरना भाषा उथले मंतव्यों के लिए उथले<br />> लोगों का हथियार अधिक बनती है. विकसित चित पिछले का नहीं, आगे का संधान करता<br />> है..."<br />> जाहिर है, ऐसे विचार किसी बड़े सपने से आते हैं और वे सपने न सिर्फ देखे जाते<br />> हैं, बल्कि जी भी लिए जाते हैं.<br />> दूसरों के लिए भी तभी कुछ सच में किया जा सकता है. वरना जैसा कि तुम ने इशारा<br />> किया है, ऐसे सम्मलेन अपनी-अपनी तरफ की खुद्गार्ज़ियों के लिए तर्क देने वालों<br />> के आयोजन बन कर रह जाते हैं. हाँ, कुछ अच्छी-अच्छी बातें सुनने को मिल जाती<br />> हैं, जो शब्द-प्रचार के इस ज़माने में आज हर किसी की जेब में भरी पड़ी हैं.<br />> शोर मचाने लिए यकीनन एक जैसी भाषा चाहिए. वास्तविक भाषा मौन से और एकाकीपन कि<br />> बांसुरी से न उगे तो रंगे सियारों का औज़ार भर है.<br />> मैंने कह तो दिया, पर है तो ये भी शब्द ही.<br />> आओ, हम शब्दों में नयी आत्मा भरने के लिए खुद नए हो जाएँ . यानी माँ का क़र्ज़<br />> चुकाएं. दिल की भाषा बनाएं. माँ और कुदरत की गोद की भाषा. दिमाग तो पहले दिन<br />> से जो घास चरने निकला तो आज तक घास ही चर रहा है. उसे घास ही चरना है तो क्यों<br />> न नए मौसम का नया घास डालें? शायद कोई करिश्मा हो जाए!<br />><br />> भाषा को अब मर्दानगी से थोडा स्त्री -भाव तक आना होगा. हिमालय की भाषाओं की<br />> तरह. पिघले तो निर्झर फूटें, सिर नहीं.<br />><br />> और शेखर पाठक जी, आपके नाम का अर्थ कितना प्यारा है : पहाड़ को पढने वाला !<br />> पर्वत-शिखरों का अध्येता!! कितना बड़ा सपना !!!<br />> अजेय, भूल-चूक को ठीक कर लेना, क्योंकि सहलेखक जी महाराज पाच सौ किलोमीटर दूर<br />> हैं.<br />><br />> अच्छा, सबको मेरी नमस्ते.<br />><br />> स्नोवा बोर्नो<br />> snowa kuteer, raison, kullu, himachal pradesh, 175 128<br />><br />><br />><br />><br />> 2010/3/16 AJAY KUMAR <br />><br />>> इस लिंक पे भाषा पर रपट देखें:<br />>><br />>> http://www.ajeyklg.blogspot.com/<br />>><br />>Anonymousnoreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-4459327284061162268.post-33994020048780714802010-03-17T07:36:12.551-07:002010-03-17T07:36:12.551-07:00अजेय जी, ग्रियर्सन का कार्य भारतीय भाषाओं के संदर्...अजेय जी, ग्रियर्सन का कार्य भारतीय भाषाओं के संदर्भ में कितना तथ्यपरक है ये तो नहीं जानता लेकिन लाहुल में प्रचलित बोलियों पर जो काम किया है उसकी प्रमाणिकता सर्वविदित है। फिर क्या कारण रहे कि उन्हें जम कर कोसा गया? क्या उनसे सर्वेक्षण में इतनी भयंकर गलतियां हुई है कि उन्हें आज कोसा जाए? यदि एक अंग्रेज जो इस संस्कृति से जुड़ा नहीं रहा है उसपर सवाल उठ रहे हैं तो इस बात की क्या गारंटी है कि वृहद पुनर्सर्वेक्षण भाषाई राजनीति, विचारधारा, क्षेत्रवाद आदि आदि से अछूता रहेगा? जिज्ञासावश प्रश्न कर रहा हूं अन्यथा न लें।लाहुलीhttps://www.blogger.com/profile/09150991341071401906noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-4459327284061162268.post-45062343713027764222010-03-17T03:19:42.724-07:002010-03-17T03:19:42.724-07:00sorry, galat type ho gaya
कृत्या परिवार को इस नए क...sorry, galat type ho gaya<br />कृत्या परिवार को इस नए कवि और देवी जो को बधाईAnonymousnoreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-4459327284061162268.post-66677444090370950772010-03-17T03:18:16.867-07:002010-03-17T03:18:16.867-07:00मैंने तो सोचा था कि अजेय नामक कवि जी की पहली रेल ...मैंने तो सोचा था कि अजेय नामक कवि जी की पहली रेल यात्रा और हवाई जून २००७ में कृत्या उत्सव में भाग लेने के लिए त्रिवेन्द्रम वक्त ही हो गई थी, हो सकता है कि कृत्या२००७ में भाग लेना वाला कोई अजेय रहा होगा। <br /><br />देवी जी ाच्छे कार्यकर्ता हैं, उन्हे मैं सालो से जानती हूँ, लेकिन उन्होंने भी साहित्य अकादमी और CIIL के भारी भारकम, काफी ज्यादा पैसा मिलने वाले प्रजोपक्ट किए हैं। फिर भी उनके काम के लिए उन्हे बधाई तो देनी ही चाहती है, किसी के काम की खिल्ली बनाना आसान होता है पर उसे कर गुजरना बेहद मुश्किल<br /><br />कृत्या परिवार को इस न कवि और देवी जो को बधाईAnonymousnoreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-4459327284061162268.post-62404150340142108342010-03-17T00:10:55.107-07:002010-03-17T00:10:55.107-07:00#प्रज्ञा जी, धन्यवाद.
#संजय, अशोक, प्रोफेस्सर जी....#प्रज्ञा जी, धन्यवाद.<br />#संजय, अशोक, प्रोफेस्सर जी.एन. देवी की कार्य शैली अविश्वसनीय रूप से सटीक और प्रभावशाली और ईमानदार और च्मत्कृत कर देने वाला है. infact, too good to be true. मैं इस शख्सियत से दो बार पहले भी मिल चुका हूँ. और हर दफा थोड़ा अधिक अभिभूत हुआ.सच पूछो तो अपने समकालीनों में ओशो और रामदेव के बाद यह तीसरा आदमी है जिसे देख कर मैं भौंचक्का रह जाता हूँ.ज़ाहिर है मुझे शक होगा ही. तथागत ने कहा है, जो देखते हो उसे एक दम से सच नहीं मान लेना. उसे आग में परखो.....<br />पहली रेल यात्रा रोचक रही.जो सुना था उस के एकदम विपरीत. cool anD full of insight. मूड बनेगा तो लिखूँगा कभी. <br />#नैथानी जी, आप सही कह रह हैं. विचार धारा से जुड़े लोगों को अपनी हर हरकत के लिए स्पष्टी करण तय्यार रखना पड़ता है. यह गलत है और अम्बेरेस्सिंग भी.लेखक की स्वतंत्रता इस से बाधित होती है. लेकिन फिलहाल जो परिदृश्य है, उस में यह लाज़िमी हो जाता है. <br />#अनुप जी, आभार, कि आप को इंतेज़ार था. लेकिन, I had some other promises to keep. and miles to go.......मुम्बाई 5 घण्टे दूर था. और हमारी वापसी की बुकिंग दिल्ली तक की कंफर्म्ड थी. तोब्दन जी को नाखुश नहीं कर सकता था. फिर कभी सही. इन गर्मियों में रोह्ताँग के इस पार आईए न आप लोग!अजेयhttps://www.blogger.com/profile/05605564859464043541noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-4459327284061162268.post-51550754360760164662010-03-16T21:52:03.995-07:002010-03-16T21:52:03.995-07:00यहां पर इसी का इंतजार था. बेधक और भेदक. हालांकि इं...यहां पर इसी का इंतजार था. बेधक और भेदक. हालांकि इंतजार तो और भी था कि ट्रेन में थोड़ा और सफर करते और दीदार होते.Anup sethihttps://www.blogger.com/profile/13784545311653629571noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-4459327284061162268.post-62652189589946401582010-03-16T20:11:52.699-07:002010-03-16T20:11:52.699-07:00इस पूरी रिपोर्ट में लगातार आपका संदेहवाद समानांतर ...इस पूरी रिपोर्ट में लगातार आपका संदेहवाद समानांतर चल रहा है. सच है महत्वाकांक्षाएं जब विशाल हो जाय तो कुछ कुछ वायवीय भी हो जाया करती है.भाषाओँ का सर्वे करना मुझे कुछ ऐसा ही लगा.<br />आपकी पहली रेल यात्रा पर कुछ हो जाय अगली पोस्ट में?sanjay vyashttps://www.blogger.com/profile/12907579198332052765noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-4459327284061162268.post-9512222824142122792010-03-16T10:34:59.231-07:002010-03-16T10:34:59.231-07:00भाषा और संस्कृति को बचे का जो महाभियान महाश्वेता द...भाषा और संस्कृति को बचे का जो महाभियान महाश्वेता देवी ए छेड़ा है वह बेहद जीवत का है राजीतिक मदद के बिना दुनिया भर की अड़चनों को झेलने का बीड़ा उठाना कोई हसी खेल नहीं है . यकीनन ये ताना बाना बदलेगा आपका वहां होया ज़रूरी था .प्रज्ञा पांडेयhttps://www.blogger.com/profile/03650185899194059577noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-4459327284061162268.post-23363003191502261512010-03-16T10:00:32.064-07:002010-03-16T10:00:32.064-07:00आप जहां भी थे उसकी जायज वजहें होंगी
इस बात को सफाई...आप जहां भी थे उसकी जायज वजहें होंगी<br />इस बात को सफाई के अन्दाज में कहने की कोई जरूरत नहीं थी.अच्छा और रोचक विवरण आपने दिया ,खासतौर से भाषाओं के आपसी रिश्ते और संदेह के सवालों पर<br />अच्छी पोस्ट!naveen kumar naithanihttps://www.blogger.com/profile/01356907417117586107noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-4459327284061162268.post-30886787588981131732010-03-16T06:55:09.600-07:002010-03-16T06:55:09.600-07:00गनेश देवी का नाम बहुत सुना है…पिछली बार मोदी सरकार...गनेश देवी का नाम बहुत सुना है…पिछली बार मोदी सरकार ने इनके कार्यक्रम पर रोक लगाई थी शायद। वैसे सच कहूं तो जब कोई ज़ोरशोर से नानपोलिटिकल होने के नारे लगाता है तो मुझे उसकी पालिटिक्स पर शक़ हो जाता है।Ashok Kumar pandeyhttps://www.blogger.com/profile/12221654927695297650noreply@blogger.com