Thursday, February 4, 2010

इंतज़ार


साँझ तक ......


















साँझ ढले ..

6 comments:

  1. बहुत सुन्दर भाई..वाह!

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  2. प्रस्तुति पसंद आई.भावप्रवण है.

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  3. plesent surprise. kavita aise bhi kahi jati hai!

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  4. # soresh, बहुत खूबसूरत काम है. मुझे याद पड़ता है दूसरे चित्र में एक (उझकता) चाँद भी था. मिटा दिया, या कि बुझ गया? वैसे कहीं केप्शन ने इस चित्र के भाव को सीमित तो नहीं कर दिया ?
    # निरंजन, कविता जाने कितने ही तरीक़ों से, कितने ही तलों पर, कितने ही माध्यमो में कहे जाने के लिए आतुर रहती है ....लेकिन् हम अकसर उस तल पर खुद को मेंटेन न रख पाने के कारण उसे चूक जाते हैं...

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