Wednesday, October 20, 2010

पूर्वा की मौलिक कविता




पूर्वा मेरे मित्र निरंजन देव शर्मा की जुड़वाँ बेटियों मे से एक है .हाल ही में कविता की पत्रिका आकण्ठ के हिमाचल विशेषाँक मे उस की एक कविता पृथ्वी शीर्षक से छपी.हालाँकि उसे भाई निशांत और निरंजन ने मिल कर खूबसूरती से तराश दिया था और एक बेहतर परिपक्व कविता बन पड़ी थी. .... लेकिन सम्पादित रूप मे पूर्वा ने उस कविता को अपना मानने से इनकार कर दिया.उस ने साफ साफ कह दिया कि "यह कविता मेरे नाम से नहीं छपनी चाहिए थी".सातवीं कक्षा की इस छात्रा का अपने लिखे हुए पर यह आत्म विश्वास देख कर मैं फक़त इतना ही कर पा रहा हूँ कि वह कविता मूल रूप में यहाँ लगा रहा हूँ.इस लिए नही कि इस नन्हे कवि ने एक महान कविता लिखी है; बल्कि इस लिए कि मैं उस की महान ज़िद और जुनून का सम्मान करना चाहता हूँ.सच्ची कविता की यही दो प्राथमिक शर्तें हैं.


प्रकृति

पहाड़ों से सजाई
फूलों से खिलाई
ईश्वर ने हमारी यह धरती थी जब बनाई
कोई कमी न थी छोड़ी
पर इक गलती कर दी थोड़ी
दे दी अक्ल हमें ज्यादा
गलत था मानवीय इरादा
तभी पहाड़ हो गए हैं खाली
क्या करे बेचारा माली
जब फूलों का ही मिट गया है नमो –निशान
अब तो ईश्वर भी हो गए हैं हैरान
छिपा है
हाँ छिपा है इंसानी जीत की हर खुशी में
एक बड़ा नुकसान
जिससे हर कदम पर हो रही है
प्रकृति परेशान

14 comments:

  1. बहुत भावपूर्ण कविता...नन्ही कवयित्री को बधाई व शुभकामनाएं....पूर्वा की जिद और जूनून का सम्मान मै भी करती हूँ...

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  2. ise tarashne ki zaroorat hi kya hai ajay bhai... Poorva beta aise hi maulik bane raho. Bahut khoob kavita...

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  3. yah tou mukkamal kavita hai bhai ajey. purva ko bahut bahut shubhkamnain. jaari rahe safar, tou shayad maulik aur kuchh alag bane hindi kavita ki duniya. aabhar prastuti ke liye.

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  4. beti ne bahut sundar likha hai .. vah poori moulikata men vahan moujood hai .. taraashi hui !

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  5. Thankyu Ajey Uncle.
    मैं अजेय अंकल का धन्यवाद करना चाहती हूँ कि उन्होने मेरी भावनाओं को समझा । मेरी कविता को सराहने के लिए मैं सबका धन्यवाद करना चाहूंगी ।
    -पूर्वा

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  6. पूर्वा को बहुत बधाई और आशीष. यह तो बहुत अच्‍छी कविता है. इसी तरह खूब पढ़ो लिखो. यह कविता पढ़वाने के लिए अजेय को भी धन्‍यवाद.

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  7. मैने वह 'संशोधित' कविता तो नहीं पढ़ी है पर कल्पना कर सकता हूं कि इसे कैसे काटा-छांटा गया होगा।

    पर अपने सहज लोच और कवितापन के साथ यह एक मुकम्मल कविता है। एक अंखुआते पौधे की तरह जिसमें जीवन के सारे लक्षण साफ़ दिख रहे हैं।

    पूर्वा की ज़िद को सलाम…शुभकामनायें की उसकी रचनात्मकता का निरंतर विस्तार हो।

    और आपका आभार…

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  8. पूर्वा को इस कविता के लिए बधाई एवं प्यार !
    अजेय भाई ! ‘रेड दि हिमालया’ के प्रतिपक्ष के रूप में पहाड़ या कहें कि पूरी पृथ्वी के पक्ष में खड़ी यह कविता एक अच्छा कदम हो सकती है।

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  9. मुझे भी पूर्वा से ऐसी प्रतिक्रिया की अपेक्षा नहीं थी , पर प्रतिक्रिया जताने के बाद बात मुझे सही लगी। निशांत जी से बात हुई । वह सचमुच परेशान हुए और पूर्वा को एक चिट्ठी भी लिखी । चिट्ठी अजेय को मेल कर रहा हूँ । ब्लॉग पर लगाएं तो चर्चा आगे बढ़ सकती है।

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  10. बिटिया की 'जिद' और 'जुनून' दोनों को मै सलाम करती हूँ .... और भविष्य मे उन्हे एक संवेदनशील कवियित्रि के रूप मे देख रही हूँ......। मेरी हार्दिक शुभकामनाएं ।

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  11. ajey bhai......maulikta ka samman karne ke liye aap badhai ke patr hain to purva uski zidd aur junnon ke liye.......kavita is roop mein yakinan behtar hai...maine us tarah bhi padha tha...par dil ko ab chua...

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  12. पूर्वा की इस ज़िद को भी महान नहीं कहा जा सकता!
    --
    हाँ, मूल कविता को पढ़कर
    मैं इतना ज़रूर कहूँगा कि इस कविता में
    संपादन की ज़रूरत नहीं थी!
    --
    संपादित कविता भी उपलब्ध कराई जाती,
    तो ज़्यादा कुछ कहा जा सकता था!
    --
    पूर्वा की कविताएँ "सरस पायस" में
    प्रकाशित करके मुझे प्रसन्नता होगी!
    --
    भिजवा सकें, तो कृपा होगी!

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  13. # रावेन्द्रकुमार रवि, मुझे तो एक समय में 'महान' शब्द पर ही आपत्ति थी . पर देखिए न, वक्त ने मुझे महानता की नई परिभाषा तलाशने के लिए मज़बूर कर दिया.... बहर हाल आप की टिप्पणी का और 'ऑफर' का स्वागत है. मैं पूर्वा तक आप का सन्देश पहुँचा दूँगा. आप यहाँ आते रहिए.

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  14. अजेय जी,
    निश्चित रूप से आपने मेरा संदेश पहुँचाया होगा,
    पर अभी तक मुझे पूर्वा की ओर से
    कोई संदेश प्राप्त नहीं हुआ!
    --
    क्या मैं इस कविता को यहाँ से साभार लेकर
    "सरस पायस" पर प्रकाशित कर दूँ?

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