Sunday, December 12, 2010

कविता के थार में यह कैसा नखलिस्तान !


शैलेन्द्र चौहान
जन्म : 21-12-1954 ( खरगौन )
पैतृक स्थान : मैनपुरी (उ.प्र.)
संप्रति स्थाई निवास : जयपुर (राजस्थान)
शिक्षा : प्राथमिक एवं माध्यमिक शिक्षा ( विदिशा जिले के ग्रामीण भाग में ),
बी.ई. ( इलेक्ट्रिकल ) विदिशा से
लेखन : विद्यार्थी जीवन से प्रारंभ : -
कविताएँ एवं कहानियाँ,
बाद को आलोचना में हाथ आजमाए,
वैज्ञानिक, शैक्षिक, सामाजिक एवं राजनैतिक लेखन भी
प्रकाशन : सभी स्तरीय साहित्यिक पत्र-पत्रिकाओं में एवम् इंटरनेट पर नियमित लेखन
कविता संग्रह : 'नौ रुपये बीस पैसे के लिए', 1983 में प्रकाशित
'श्वेतपत्र' दो दशकों के अंतराल के बाद 2002 में
'ईश्वर की चौखट पर' 2004 में
कहानी संग्रह : 'नहीं यह कोई कहानी नहीं', 1996 में प्रकाशित
संस्मरणात्मक उपन्यास/ कथा रिपोर्ताज : ‘पाँव ज़मीन पर’, 2010 में.
एक आलोचना पुस्तक तैयार
संपादन : 'धरती' अनियतकालिक साहित्यिक पत्रिका, जिसके कुछ अंक, यथा :- गज़ल, समकालीन कविता, त्रिलोचन , 'शील' , 'शलभ' श्रीराम सिंह और ‘साम्राज्यवादी संस्कृति बनाम जनपदीय संस्कृति’ अंक चर्चित रहे, आगामी अंक : कश्मीर केन्द्रित अंक अक्तूबर 2010 में.


ढेरों कविताओं के इस दौर में , ढेरों कवियों की इस जमात में किसी भी कवि के लिये पहचान बना पाना कठिन है लेकिन शैलेंद्र चौहान अपनी पहचान बना पाये हैं क्योंकि उनकी कविता प्रचलित मानदंडों के विरोध में खड़ी हैं । मैं मानकर चलता हूं कि किसी की नकल करके कोई बड़ा नहीं बनता, बड़ा बनता है अपने अनुभवों और जीवन संघर्षों को अपनी तरह से रूपायित करके । शैलेंद्र चौहान ने अपनी कविताओं में यही किया है।
-----सूरज पालीवाल
अधिष्ठाता, साहित्य विद्यापीठ, महात्मा गांधी अन्तरराष्ट्रीय हिन्दी विश्वविद्यालय,वर्धा- 440 001




थार का जीवट
अब तक तो
बहुत भला है
रेती में भी पौधे हैं
कांस, आक और
छोटे-छोटे लंबे पत्तों वाले
नन्हे 'जोजरू'

अब तक तो
बहुत भला है
लू की मार है मद्धम
है हवा भी थोड़ी नम

क्या होगा जो मेघ नहीं बरसे
सावन सूखा जाएगा
मरुधरा यह ताप से फट-फट जाएगी

वनस्पतियाँ सूखेंगी
नर-नारी, पशु-पक्षी सब
प्यास से तड़पेंगे
कितना कष्ट सहेंगे
आसार नहीं अच्छे हैं

पर कितना जीवट है!
कहता है वह वृद्ध-
विपदाएँ झेलीं
न जाने कितनी बार
बना महाप्रलयंकारी
यह थार
----------
आदि-वासी

स्नायुतंत्र में
प्रविष्ट हो चुकी
शोधित वायु

मस्तिष्क, धमनियाँ
शिराएँ, कोशिकाएँ
सचेत

चौतरफा चिल्ल-पों
जर्जर होते ही शरीर
फूल गया
गुब्बारे सा
हीलियम नहीं

भरी
कार्बन डाइ ऑक्साइड

तड़कता हाड़-माँस
भयानक पीड़ा मन में
अच्छी सेहत को
दरकार संसाधन,

औषधि
अति महंगी

कपूर और लोंग बाँध
हाथों में
दूर भगाते
चिकनगुन्या,
मलेरिया, डेंगू

विपन्न भील
मालवा, निमाड़ के
-----
कैसा नखलिस्तान !

सारा पानी
खंभात की खाड़ी में बह जाये
उससे बेहतर
बने उँचा बाँध
केवड़िया गाँव के पास

दिखेगा नीला, गहरा
ठहरा-ठहरा पानी
पहुँचेगी नहर
कच्छ के रन तक
बदल जायेगा
थार का रेगिस्तान
हरे-भरे नखलिस्तान में

विद्युत धारा
जायेगी
मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र
गुजरात
पर्यटनस्थल
सरदार सरोवर
हरी-भरी
वादियों में
सतपुड़ा की

डूब की परिधि में
साढे छह हजार गाँव
अड़तालीस हजार ग्रामवासी
हैं जो
उनका क्या ?

पुनर्वसन में लपकती
लोभ की लंबी जिव्हाएं
चमकती लालच की सहस्त्रों शहतीरें
मिटा देतीं फर्क
इंसान और
श्रगाल, गिद्ध, भेड़ियों में

दरकता है सरदार सरोवर
लपकती मगरमच्छों सी
राजनीति
बेदखल नागरिकों की
गरदनें दबोचने को

3 comments:

  1. ... sundar rachanaayen ... shaandaar post !!!

    ReplyDelete
  2. सशक्‍त, प्रभावी व सार्थक ।

    ReplyDelete
  3. शैलेन्द्र भाई की कवितायें लम्बे समय से पढ़ता रहा हूं…गहन पक्षधरता और विशिष्ट जीवन बोध उन्हें समृद्ध करता है

    ReplyDelete