Tuesday, August 14, 2012

अब मुझे सपने आते हैं !


विक्रम कटोच मेरे युवतम दोस्तों मे से एक है. मेरे गाँव का है.  दिल्ली मे काम करता है. यह उन बिरले लड़कों मे से है जिन्हे अपने करियर से ज़्यादा अपने गाँव, अपने पहाड़, अपने भारत की चिंता अधिक सताती है. जुनूनी,  जागरूक और सपनो से भरा यह लड़का वक़्त बे वक़्त मुझे फोन करता है, और गम्भीर मुद्दों पर बेचैन करने वाले प्रश्न पूछता है. ऐसे प्रश्न जिन्हे सुन कर आप असुविधाजनक महसूस करें. एकदम चुप लगा  जाएं. इस लडके के सरोकार जान कर आप की हताशाएं , आशंकाएं तिरोहित हो जातीं हैं.  और दुःस्वप्न सताना छोड़ देते हैं.  युवा पीढ़ी को ले कर आश्वस्त सा होने लग जाते  हैं .

हाल ही मे उस ने मुझे एक कविता मेल की है और कविता सीखने की इच्छा ज़ाहिर की है. 
स्वतंत्रता दिवस के शुभ अवसर पर  
इस जज़्बे को  शुभकामनाएं दीजिए और  उस  की यह “असम्पादित” रचना पढ़िए और अपने आस पास ऐसी ऊर्जावान चेतनाएं खोजिए !!   .



एक चन्द्र शेखर ‘आज़ाद’ था
मैं आज़ादी में गुलाम हूँ
एक भगत ‘सिंह’ था
मैं भगत तो हूँ पर ‘गीदड़’ सी चाल है
एक ‘सुखदेव’  था
मेरा सुख उन की ‘जेब’ मे है
एक  ‘राजगुरु’ था 
मेरा ‘राज’ तो है पर गुरु कोई और है
एक महात्मा गाँधी था
मैं आज भी हूँ मजबूरी मेरा नाम है
एक सुभाष चन्द्र बोस था
मैं ‘बॉस’ नही हूँ मेरा बॉस कोई और है
एक लाल बाल पाल थे
आज अन्ना किरन और केजरीवाल हैं
कहते तो सब लोकपाल लोकपाल हैं
लगता है सब भेड़्चाल है
न पीने को पानी
न खाने  को रोटी
ओलम्पिक मे मेडल हो  न हो
‘मेरी कोम’  लोकतन्त्र है.
नारंग होता ओलम्पिक मे
मेरी नेहवाल अगर विजय न होते
व्यापारीकरण की ऐसी चली है आँधी
लोगों पर लोगों के द्वारा लोगों के लिए शासन नहीं है यह
साफ दिखता है आई पी एल मे
LOGO को  LOGO के द्वारा लोगों पर शासन है यह
खा गए बाप का माल समझ कर न जाने कितने कलमाड़ी
समृद्धि  देश की मुझे माया मिली न राम
खाक मे ढूँढता रह गया आज़ादी
ऐसे हालात हैं कि उठ जाएंगे वो शहीद अपनी कब्र से
शर्म मुझे तब भी  न आएगी पूछेंगे जब वो
कहाँ है वो सोने की चिड़िया ?
कहाँ है वो आज़ादी जो हम ने तुम्हे सौंप दी थी ?
ज़रा हम भी तो हों रूबरू
कब मुझे सपने आते हैं सिंह सी दहाड़ है
और हाथी सी मदमस्त मेरी चाल है
एक चन्द्र शेखर आज़ाद है
देश आज़ाद है और मैं आज़ाद हूँ ....
.अब मुझे सपने आते हैं .

12 comments:

  1. सच मे शानदार प्रस्तुति। स्वतंत्रता दिवस की हार्दिक शुभकामनाएं !

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  2. हर नयी संभावना भाषा के जीवन की नई सांस है. तराशिये इन्हें. चाहें तो हमारी प्रपोज्ड कार्यशाला में भी आ सकते हैं. शुभकामनाएं

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  3. ऐसी आवाज़ों में से कुछ कल की सम्‍भवनाएं होगी और बाद का हासिल भी....कविता पढ़ते हूए लगा कि सार-सम्‍भाल और देखभाल की बहुत ज़रूरत है कवि को...अशोक के प्रस्‍ताव को कवि तक पहुंचाएं अजेय भाई...कई बार एक दिन और एक बात से जिन्‍दगी बदल जाती है। विक्रम को मेरी शुभकामनाएं।

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  4. कविता अनगढ़ है, लेकिन कविता में दम है। विक्रम कटोच के कवि बनने की पूरी-पूरी संभावना है। अगर वे भटके नहीं और उन्होंने इस क्रम को जारी रखा तो हिन्दी को एक और लीना मल्होत्रा जैसा दमदार कवि मिलेगा। मेरी हार्दिक शुभकामनाएँ।

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  5. अपनी सोच को जिन शब्दों में विक्रम ने संप्रेषित किया है उससे व्यवस्था को ले कर उनकी बेचैनी प्रकट होती है । जिन शब्दों के माध्यम से उनहोने अभिव्यक्ति दी है वहीं से रास्ता कविता की तरफ भी जाता है । यह तो समय बताएगा कि वह किस माध्यम से अपना विरोध दर्ज कराना उचित समझेंगे , फिलहाल इतना कि ऐसे बेचैन लोगों की देश को सख्त जरूरत है ।

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  6. Aisi baichaini dekhna achchha lagta hai. Akhir iss chhatpatahat ke chaltey hi to kuchh kar guzarney ki tamanna bhi hogi!! Vikram ko shubhkamnaayen!

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  7. हमारी भी शुभकामनाएं....

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  8. शुभकामनाएं विक्रम

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  9. आज मैं बीज हूँ !


    बस थोड़ी और उमस
    बस, थोड़ी और धूप
    बस, थोड़ा और पानी
    बस, थोड़ी और हवा
    बस , थोड़ा भुरभुरा पन
    क्या देर है भला बाहर आने में
    आज मैं बीज हूँ
    कल रहूँगा अंकुर
    बटुर बटुर आएगी दुनिया
    मुझे देखने को आतुर
    आज मैं बीज हूँ
    अलक्षित नाचीज़ हूँ
    गर्क हूँ
    धरती की जादुई कोख में !!

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    1. बाबा नागार्जुन की कविता है यह .

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  10. साहित्य समाज का दर्पण होना चाहिए, जहाँ हम अपने आसपास के समाज को साफ देख सकें । साहित्य में हमारे वर्तमान का चित्र आना चाहिए कि हम अपनी भविष्य सन्दर बना सकें वर्तमान से कुछ सिखकर ।
    यह कविता सरल भाषा में एक सुन्दर कविता बनी है । भारतीय समाज का अच्छा पोस्टमार्टम किया है युवा कवि नें । धन्यवाद और उत्तरोतर प्रगती की कामना ।

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