Thursday, February 28, 2013

इस आदमी को बचाओ



सड़क के किनारे पड़ा हुआ
यह जो धूल में लथ पथ
काला नंगा आदमी  है
जिस के होंठों से गाढ़ी लाल धारी बह रही है
इस  आदमी को बचाओ !

हो गई होगी कोई बदतमीज़ी
गुस्सा आया होगा और  गाली दी होगी इस ने  
भूख लगी होगी और  माँगी  होगी रोटी इस ने

मन की कोई बात न कह पा कर
थोड़ी सी पी ली होगी इस ने
दो घड़ी  नाच गा लिया होगा  खुश हो कर   
और बेसुध सोता रहा होगा  थक जाने पर

इस आदमी की यादों में पसीने की बूँदें हैं  
इस आदमी के खाबों मे मिट्टी के ढेले  हैं  
इस आदमी की आँखों में तैरती है दहशत की कथाएं  
यह आदमी अभी ज़िन्दा है 
इस आदमी को बचाओ !

इस आदमी को बचाओ
कि इस आदमी में इस धूसर धरती का
आखिरी हरा है

इस आदमी को बचाओ
कि इस आदमी मे हारे हुए आदमी  का
आखिरी सपना है

कि यही है वह  आखिरी आदमी  जिस पर
छल और फरेब का
कोई रंग नहीं चढ़ा है

देखो, इस आदमी की  
कनपटियों के पास एक नस बहुत तेज़ी से फड़क रही है
पसलियाँ  भले चटक गई हों
उन के  पीछे एक दिल अभी भी बड़े  ईमान से धड़क रहा है

गौर से देखो,
अपनी उँगलियों पर महसूस करो 
उस की  साँसों की मद्धम गरमाहट 

करीब जा कर  देखो  
चमकीली सड़क के किनारे फैंक दिए गए
तुम्हारी सभ्यता के मलबे में धराशायी
इस अकेले डरे हुए आदमी को

कि कंधे  भले उखड़ गए  हों
बाँहें हो चुकी हों नाकारा
बेतरह कुचल दिए गए हों इस के पैर
तुम अपने हाथों से टटोलो
कि इस आदमी  की रीढ़ अभी भी पुख्ता है

यह  आदमी अभी भी  ज़िन्दा है
इस  आदमी  को बचाओ  !
इस  आदमी  को बचाओ !!

रोह्तांग टनल (नॉर्थ)  , अगस्त 31, 2012 

7 comments:

  1. कितनी मानीखेज
    इस आदमी में आखिरी हरा है...

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  2. सचमुच पढ़ी जाने चाहिए ये कविता ..

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  3. अच्‍छी कविता है। कहन में आवेग है और बेहतर दृष्टि।

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  4. बार बार पढ़ी जानी चाहिए यह कविता। सड़कों, चौराहों, मंचों से सुनाई जानी चाहिए।

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  5. उम्मीद को जिंदा रखने की उम्मीद लिए हुए है यह कविता.

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