tag:blogger.com,1999:blog-4459327284061162268.post152723592938890427..comments2023-07-23T04:52:16.477-07:00Comments on अजेय: एक बुद्ध कविता में करुणा ढूँढ रहा हैअजेयhttp://www.blogger.com/profile/05605564859464043541noreply@blogger.comBlogger25125tag:blogger.com,1999:blog-4459327284061162268.post-11233713732522135962011-05-18T07:59:09.420-07:002011-05-18T07:59:09.420-07:00बस एक शब्द.. अद्भुत !बस एक शब्द.. अद्भुत !Madhavi Sharma Gulerihttps://www.blogger.com/profile/16631056754905273392noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-4459327284061162268.post-87191878511114829682011-05-17T18:48:40.863-07:002011-05-17T18:48:40.863-07:00बहुत ख़ूब। बहुत प्रासंगिक। बधाई।बहुत ख़ूब। बहुत प्रासंगिक। बधाई।Farid Khanhttps://www.blogger.com/profile/04571533183189792862noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-4459327284061162268.post-59631721934043692632011-05-17T02:20:32.042-07:002011-05-17T02:20:32.042-07:00बहुत अच्छी कविता .................
डालरी हवाओं से...बहुत अच्छी कविता .................<br /><br />डालरी हवाओं से खदेड़ी गई करुणा हिमालय के शीर्ष की बर्फ के पीछे दुबक गई है ! <br />अब उसे नीचे उतारने के लिए कोई भगीरथ प्रयास ही करना पड़ेगा !अरुण अवधhttps://www.blogger.com/profile/15693359284485982502noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-4459327284061162268.post-9822552809259079702011-05-17T02:13:46.086-07:002011-05-17T02:13:46.086-07:00याद रह जाने वाली कविताओं में शामिल हो गयी ये कविता...याद रह जाने वाली कविताओं में शामिल हो गयी ये कविता.Pratibha Katiyarhttps://www.blogger.com/profile/08473885510258914197noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-4459327284061162268.post-4992411815149197622011-05-17T01:28:23.075-07:002011-05-17T01:28:23.075-07:00दो बार पढ़ चुका हूँ... लगता है कि इस बार फिर कुछ रह...दो बार पढ़ चुका हूँ... लगता है कि इस बार फिर कुछ रह गया...manoj chhabrahttps://www.blogger.com/profile/10273888640315907337noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-4459327284061162268.post-24765557582668472132010-09-17T08:59:03.279-07:002010-09-17T08:59:03.279-07:00पहली बार जब यह कविता पढ़िए थी अजेय, तो चमत्कृत हुआ ...पहली बार जब यह कविता पढ़िए थी अजेय, तो चमत्कृत हुआ था । तीसरे पाठ में अभिभूत हूँ। अभी कई बार पढ़ूँगा , कुछ लिखने से पहले। इस कविता के कथ्य और शिल्प में बहुत कुछ ऐसा है जिस पर बात करना बहुत जरूरी है। यह तो कह ही चुका हूँ कि बात दूर तलाक जयेगी ।niranjan dev sharmahttps://www.blogger.com/profile/16979796165735784643noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-4459327284061162268.post-21680333795455413362010-08-10T10:41:09.991-07:002010-08-10T10:41:09.991-07:00वह इस लिए कि कविता का पाठ महज़ उस के अर्थ को समझने...वह इस लिए कि कविता का पाठ महज़ उस के अर्थ को समझने के लिए नहीं , अपितु उस का द्रव पी जाने के लिए होता है. जो बार बार पाठ् के बगैर सम्भव नहीं .जो कविता खुद को बार बार नहीं पढ़वा पाती पर्मेन्द्र भाई,मैं तो समझता हूँ कि वह अभागन होती है और बहुधा बाँझ रह जाती है.<br /> <br />लेकिन आप य्क़ीन करेंगे कि अभी कुछ दिन पूर्व मुझे एक कवि ऐसे मिले जो एक बार छप जाने के बाद फिर उस कविता का पाठ ज़रूरी नही समझते! क्या ऐसे लोगों को अपनी कविता पर भरोसा हो सकता है? मुझे तो शक है. मैं तो अपनी साधारण कविता का अंनगिनत बार पाठ करना चाहता हूँ.... हर पाठ उस मे कुछ न कुछ नया जोड़ देती है.<br />आप ने दोबारा पढ़ कर के मेरी कविता को समृद्ध किया, आभार!अजेयhttps://www.blogger.com/profile/05605564859464043541noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-4459327284061162268.post-34105188152540214812010-08-09T23:33:44.239-07:002010-08-09T23:33:44.239-07:00यह कविता बार-बार पढने का मन करता है, अजीब सी कशिश ...यह कविता बार-बार पढने का मन करता है, अजीब सी कशिश है...परमेन्द्र सिंहhttps://www.blogger.com/profile/07894578838946949457noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-4459327284061162268.post-85664442909907112762010-08-09T23:31:25.987-07:002010-08-09T23:31:25.987-07:00This comment has been removed by the author.परमेन्द्र सिंहhttps://www.blogger.com/profile/07894578838946949457noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-4459327284061162268.post-22117383575359055192010-06-24T02:32:20.770-07:002010-06-24T02:32:20.770-07:00Anup Sethi ka mail, 21, 6, 2010
अजय जी,
यह क...Anup Sethi ka mail, 21, 6, 2010<br /><br /><br /><br /><br />अजय जी,<br /><br /> यह कविता मैंने और सुमनिका ने अलग अलग तो पढ़ी थी. साथ में पढ़कर बात करना चाहते थे. आखिर कल थोड़ा सा मौका मिला. मजा आया. कविता में हर शै कविता में बदलती जाती है. बुद्ध या कवि का विराट रूप आ-हिमालय फैला है. और जैसे गूगल के पिकासा में फोटो पानी में तैरते हुए से स्क्रीन पर रहते हैं, कविता में सारी दुनिया के भूंखंड तैरते हुए से आ विराजते हैं. मुझे लगता है कि यहां वही भूखंड आते हैं, जहां कुछ तकलीफ, दुख, रोग, कमी है.. लेकिन सुमनिका को ऐसा नहीं लगता. उसके हिसाब से कवि इतना रमता है कि भूखंड आते चले जाते हैं. <br />भूखंड मतलब मिट्टी मलबा नहीं, पूरा पिंड है. जीवंत. भूत भविष्य और वर्ततान के पिंड. उनसे एक तरह से तदाकर होने की अनुभूति भी उसमें सम्मिलित है. इसलिए वे जीवंत हो उठते हैं. <br />और फिर उनमें करुणा की तलाश और मांग है. एक तड़प की तरह. एक टेक की तरह. इससे एक लयकारी बनती है. <br />यह एक मोटा सा ही आकलन है. क्योंकि शब्द-शब्द पढ़ते समय कई संदर्भ हमारी जानकारी की कमी के कारण अनखुले रह जाते हैं. <br /><br /><br />पर एक बहाव और उठान और उड़ान है जो हमें गगन विहारी बनाते हैं.<br /><br /><br />आमीनअजेयhttps://www.blogger.com/profile/05605564859464043541noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-4459327284061162268.post-24717294280011034332010-06-12T22:26:36.561-07:002010-06-12T22:26:36.561-07:00हवा चाहे तो कविता को राख कर दे
हवा के पास ढेर सारे...हवा चाहे तो कविता को राख कर दे<br />हवा के पास ढेर सारे डॉलर हैं.<br /><br />कई जगह चौंकाती हुई ये कविता बहुत पसंद आई.के सी https://www.blogger.com/profile/03260599983924146461noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-4459327284061162268.post-91331143516585905702010-05-15T23:19:47.047-07:002010-05-15T23:19:47.047-07:00हवा के सामने कविता की क्या बिसात ?
हवा चाहे तो कवि...हवा के सामने कविता की क्या बिसात ?<br />हवा चाहे तो कविता में आग भर दे<br />हवा चाहे तो कविता को राख कर दे<br />हवा के पास ढेर सारे डॉलर हैं<br />आज हवा ने कविता को खरीद लिया है<br />जब कि एक बुद्ध कविता में करुणा ढूँढ रहा है .<br /><br />अच्छी कविताप्रदीप कांतhttps://www.blogger.com/profile/09173096601282107637noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-4459327284061162268.post-26498670456458645192010-05-14T06:37:04.957-07:002010-05-14T06:37:04.957-07:00कविता को मै न केवल पढ रहा हूँ बल्कि इसे एक् चलचित्...कविता को मै न केवल पढ रहा हूँ बल्कि इसे एक् चलचित्र की भांति देख भी रहा हूँ! एक पूरा एपिक, एक ओडिसी कविता की , उबड खाबड इतिहास के रास्तोँ से होता हुआ, तमाम मुश्किलोँ को लांघ कर आज जब हिमालय बना तो हवाओँ से हार बैठा? क़्या विड्म्बना है कि करुणा स्वँय को राख के ढेर मे ढूंढ रहा है !!! हिमयुग से ले कर सल्फर के गर्मा गर्म चश्मे तक कविता के इस अभूतपूर्व सफर का एक चश्मदीद ...... सुरेश विद्यार्थी !!!!vidyarthihttps://www.blogger.com/profile/14414743307825251319noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-4459327284061162268.post-91550432672121548272010-05-13T13:04:16.019-07:002010-05-13T13:04:16.019-07:00बहुत असमर्थ पा रहा हूं अपने को...इस रचना पर कुछ भी...बहुत असमर्थ पा रहा हूं अपने को...इस रचना पर कुछ भी कहने के लिए.अजय भाई...बहुत ज्यादा समेट दिया है आपने,कविता के बहाने..लगभग पूरा इतिहास...और कविता की विडंबना.कविता का सिर उडा दिया गया है..फिर भी जिन्दा है कविता..hats off.Vinod Dograhttps://www.blogger.com/profile/03396519450665832982noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-4459327284061162268.post-87493497251201975902010-05-06T22:31:26.070-07:002010-05-06T22:31:26.070-07:00'एक बुद्ध कविता मे करुणा ढूँढ रहा है' आपकी...'एक बुद्ध कविता मे करुणा ढूँढ रहा है' आपकी इस बड़े फ़लक की कविता का विस्तार समूची पृथ्वी है ,और तारीफ की बात ये है कि यहाँ एक करुण -कथा भी चलती है जिसे सुनकर बेतरह बेचैन हो सकता है कोई भी,आपकी कविता ने बहुत देर तक सन्नाटे मे छोड़ दिया !!!सुशीला पुरीhttps://www.blogger.com/profile/18122925656609079793noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-4459327284061162268.post-72410978463470472632010-05-05T22:32:57.550-07:002010-05-05T22:32:57.550-07:00socha na tha kavitayen aisi bhi hoti hongi....????...socha na tha kavitayen aisi bhi hoti hongi....????? Adbhut!!!Shashi Bhushan Purohithttps://www.blogger.com/profile/02588670768897325863noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-4459327284061162268.post-74587682084214511742010-05-03T01:49:33.161-07:002010-05-03T01:49:33.161-07:00वेग है
आवेग है
उद्वेग है
अखिल भूमंडल को बाहों में...वेग है<br />आवेग है<br />उद्वेग है<br /><br />अखिल भूमंडल को बाहों में भर लेने की बेचैनी है<br />बुद्ध और करुणा की टेक है<br /><br />बर्फीली तूफानी रात में <br />कविता की पतवार है <br /><br />थामे रहो बंधु <br />थामे रहोAnup sethihttps://www.blogger.com/profile/13784545311653629571noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-4459327284061162268.post-21193024804712760732010-04-30T09:41:53.869-07:002010-04-30T09:41:53.869-07:00इतने सारे एंगल..... सभी का आभार.
# संजय, आप की टि...इतने सारे एंगल..... सभी का आभार. <br /># संजय, आप की टिप्पणी की बेताबी से प्रतीक्षा रहती है. आप कविता मे घुस जाते हैं, महसूस कर सकता हूँ कि आप के सामने प्रस्तुत होने से पूर्व कविता एक मर्तबा सहम- सिहर जाती होगी. लेकिन यह भी सच है कि यह ट्रीट्मेंट आज की हिन्दी कविता को कहाँ नसीब है? कविता आप को प्यार करेगी दोस्त, और मैं भी .... पहले मुझे इस का शीर्षक * ढ्हती हुई कविता * सूझा था. फिर *ढहता हुआ बुद्ध* (The Reclining Buddha) ....और अंत मे यह. पर यह इधर का सच है. जिसे कहने से पहले पहाड़ कई बार सोचता है. और चुप हो जाता है. हिमालय आज भी विकसित विश्व को आशा भरी न्ज़रो से देखना *चाहता* है. लेकिन दूर दूर से उस तक फक़त हताशा के स्वर पहुँच रहे हैं . और वह क्षुब्ध है. हिमालय आज भी समृद्ध और भरा भरा है. लेकिन खोखला पन उस पे थोंपा जा रहा है. ..<br /># उदय प्रकाश जी आप का धन्यवाद कि कविता के वियाबान सुरंगों को भर देने वाली पंक्तियाँ आप ने रेखांकित की... <br /># स्नोवा और अशेष ... आप दोनो ने खुद को यहाँ पहचाना. शुक्रिया. यहाँ मेरे और भी कई दोस्त हैं. उन सब की तरफ से आप को बधाई.आप प्रथम आए हैं. <br /># लाहुली,निरंजन <br /> मुझे शक़ था कि दूर दूर से आई हुई यह कविता दूर् तलक जाएगी और हैरान हूँ कि यह गई. इस स्नेह को कहाँ रक्खूँ ?अजेयhttps://www.blogger.com/profile/05605564859464043541noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-4459327284061162268.post-35557789831780857272010-04-29T06:33:00.828-07:002010-04-29T06:33:00.828-07:00behad achchi kavita.....padh kar man dvelit ho uth...behad achchi kavita.....padh kar man dvelit ho utha...आभाhttps://www.blogger.com/profile/04091354126938228487noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-4459327284061162268.post-45026270918518001122010-04-29T06:07:13.487-07:002010-04-29T06:07:13.487-07:00baat niklegi to door talak jayegibaat niklegi to door talak jayeginiranjan dev sharmahttps://www.blogger.com/profile/16979796165735784643noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-4459327284061162268.post-25219217357410746562010-04-29T06:04:17.391-07:002010-04-29T06:04:17.391-07:00baat niklegi to door talak jayegibaat niklegi to door talak jayeginiranjan dev sharmahttps://www.blogger.com/profile/16979796165735784643noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-4459327284061162268.post-53782019449597111882010-04-29T03:56:33.630-07:002010-04-29T03:56:33.630-07:00Ajey, really thanks for this ba-hosh khanabadosh a...Ajey, really thanks for this ba-hosh khanabadosh and Labaana kavita.<br /><br />Ashesh is with me; saying that he belongs to the Labaana of your poem.<br /><br />I know that I belong to to the root- Lawanya- the later- Labana.<br />You know, khanabadosh means the dangerous and beautiful... the sober one. And, O, kambakht! you are that!<br /><br />The poem is singing a hidden song in my nurves.<br /><br />Thank you again.Anonymousnoreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-4459327284061162268.post-557962143424851952010-04-29T01:03:25.643-07:002010-04-29T01:03:25.643-07:00"कविता में क़ाबुल और काश्मीर के बाद
तुरत जो ना..."कविता में क़ाबुल और काश्मीर के बाद<br />तुरत जो नाम आता है तिब्बत का...."<br />हिमालय,बुद्ध और दो महाशक्ति...बेचारा कंफियूज़ भारत..!तिब्बत की आढ़ में बिसात बिछ रही है..हिमालय की हलचल यूं ही कब तक नज़रअंदाज़ होगी...हिमालय के असल परिदृश्य को स्पष्ट करती कविता...हिमालय पहाड़ मात्र नहीं..ये देश के कर्णधार कब समझेंगे?लाहुलीhttps://www.blogger.com/profile/09150991341071401906noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-4459327284061162268.post-91660951435537899412010-04-28T19:37:25.497-07:002010-04-28T19:37:25.497-07:00''कविता की गंध में यह कैसा अपनापा
कविता का...''कविता की गंध में यह कैसा अपनापा<br />कविता का यह तीर्थ कितना गुनगुना ....''<br />अपने भीतर के चुंबकत्व से खींचती कविता....।<br />सुंदर!Uday Prakashhttps://www.blogger.com/profile/07587503029581457151noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-4459327284061162268.post-57695418494262615142010-04-28T18:07:25.679-07:002010-04-28T18:07:25.679-07:00अपने तमाम चमत्कृत करने वाले तेवरों के बावजूद कविता...अपने तमाम चमत्कृत करने वाले तेवरों के बावजूद कविता कितनी खाली सी है!इतिहास और भूगोल के बेरहम और बेजान विस्तारों से लगातार पहुँचती कविता जिसमें बुद्ध करुणा की मांग करते हैं, हवा के झोंकों से धराशायी हो जाती है. समृद्ध और भरी भरी दिखती कविता की देह पछुआ हवा के झोंके से नश्वर दिखाई देने लगती है.<br /><br />अद्भुत अनुभव.प्रस्तुत करने का लोभ बना रहे.sanjay vyashttps://www.blogger.com/profile/12907579198332052765noreply@blogger.com