tag:blogger.com,1999:blog-4459327284061162268.post4857517229212459407..comments2023-07-23T04:52:16.477-07:00Comments on अजेय: बस एक बार मुझे अपनी देह से निकल कर चारागाहों की तरफ चले जाने दो ! अजेयhttp://www.blogger.com/profile/05605564859464043541noreply@blogger.comBlogger7125tag:blogger.com,1999:blog-4459327284061162268.post-36315846399843999442013-04-11T18:27:57.197-07:002013-04-11T18:27:57.197-07:00गहरी और मार्मिक कविता है ।गहरी और मार्मिक कविता है ।Anonymoushttps://www.blogger.com/profile/11909480380442669988noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-4459327284061162268.post-88440944849147643112013-01-09T23:29:47.750-08:002013-01-09T23:29:47.750-08:00विजय जी की कविता तो ऐसी है जैसे सब सामने घटित हो र...विजय जी की कविता तो ऐसी है जैसे सब सामने घटित हो रहा हो और अन्दर कोई चिल्ला रहा हो उसी तरह अपना कुछ वापस माँगने को ……………एक बेहतरीन अभिव्यक्तिvandana guptahttps://www.blogger.com/profile/00019337362157598975noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-4459327284061162268.post-31158292749026476482013-01-07T23:58:09.858-08:002013-01-07T23:58:09.858-08:00ज़रूर . आप की कविताओं का भी इंतज़ार है . ज़रूर . आप की कविताओं का भी इंतज़ार है . अजेयhttps://www.blogger.com/profile/05605564859464043541noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-4459327284061162268.post-53196773849163145072013-01-07T22:10:38.549-08:002013-01-07T22:10:38.549-08:00आज फिर तह कविता पढ़ी । तीन दिन से बुखार है । टी वी...आज फिर तह कविता पढ़ी । तीन दिन से बुखार है । टी वी पर बहसें सुनता रहता हूँ । अजेय के ब्लॉग पर इस सिरीज़ को देखता हूँ और बेचैन करने वाले सपने । अनूप जी ने ठीक कहा कि मर्दवाद से बाहर आने के लिए झकझोरती है । <br />परिवार में, समाज में स्त्री की सोच और व्यवहार को तय करने वाला पुरुषवादी रवैया इसी कविता पंक्तियाँ से - <br /><br />"तुम्हारा स्वभाव तो हम जानते हैं । अच्छी तरह जानते हैं । और वह हमारे पास सुरक्षित है । "niranjan dev sharmahttps://www.blogger.com/profile/16979796165735784643noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-4459327284061162268.post-80071820579269862762013-01-07T21:38:19.359-08:002013-01-07T21:38:19.359-08:00अनूप जी सही कह रहे हैं....इस कविता की नाट्यप्रस्त...अनूप जी सही कह रहे हैं....इस कविता की नाट्यप्रस्त़ति होनी चाहिए.... दिल्ली में कुछ कवियों को लेकर रंग-प्रसंग जैसा होता है...पर उन्हें कहां फ़ुर्सत होगी अपने चांद-सितारों से ....शिरीष कुमार मौर्यhttps://www.blogger.com/profile/05256525732884716039noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-4459327284061162268.post-81255954081075970702013-01-07T21:14:26.606-08:002013-01-07T21:14:26.606-08:00रौंगटे खड़े कर देने वाली कविता है यह. विजय जी से स...रौंगटे खड़े कर देने वाली कविता है यह. विजय जी से सुनी है और खुद भी कई बार पढ़ी है. हालांकि हर बार इसका पाठ कठिन होता है. यह हर बार हमें कठघरे में खड़ा करती है. लेकिन 'मर्दवाद' से बाहर आने की प्रकिया का एक अंश भी लगती है मुझे यह. मेरे मन में कई बार आता है कि इस कविता का नाट्यपाठ होना चाहिए. इसमें चेतना को झकझोरने की शक्ति है. <br />आपने बहत अच्छा किया कि विजय जी से कविताएं लीं. उम्मीद है यहां और भी पढ़ने को मिलेंगी. Anup sethihttps://www.blogger.com/profile/13784545311653629571noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-4459327284061162268.post-20555987237695502792013-01-07T07:22:04.226-08:002013-01-07T07:22:04.226-08:00बहुत ही गहरी और मार्मिक गदय कविता है । सदियों से ...बहुत ही गहरी और मार्मिक गदय कविता है । सदियों से जड़ पुरुषवादी सोच में कुछ हलचल हो , संभवतः इसी सोच के चलते विजय जी ने कविता का गद्यात्मक ढांचा चुना होगा । मसला वही है सोच में बदलाव का है जिसकी शुरुआत भर हुई है । लड़ाई लंबी है । niranjan dev sharmahttps://www.blogger.com/profile/16979796165735784643noreply@blogger.com