tag:blogger.com,1999:blog-4459327284061162268.post9222100878471887229..comments2023-07-23T04:52:16.477-07:00Comments on अजेय: चिट्ठी आई है.......अजेयhttp://www.blogger.com/profile/05605564859464043541noreply@blogger.comBlogger10125tag:blogger.com,1999:blog-4459327284061162268.post-30865339600981544352009-12-12T04:18:52.210-08:002009-12-12T04:18:52.210-08:00ब्लॉग पर आने के लिए शुक्रिया रति जी!ब्लॉग पर आने के लिए शुक्रिया रति जी!अजेयhttps://www.blogger.com/profile/05605564859464043541noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-4459327284061162268.post-85954122619528302202009-12-12T01:32:09.684-08:002009-12-12T01:32:09.684-08:00कविता तुम्हारी हो या निशान्त की, बात केवल दर्द की ...कविता तुम्हारी हो या निशान्त की, बात केवल दर्द की है, जिसे बाँटना ही कविता की सार्थकता है। मन भीग गया, पर अच्छा लगा कि कविता में अभी इतनी ताकत बची है।rati saxenanoreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-4459327284061162268.post-39600539004712070322009-11-30T06:13:45.462-08:002009-11-30T06:13:45.462-08:00ये मेरी ही कविता है बादल भाई, मेरे दोस्त सुरेश सेन...ये मेरी ही कविता है बादल भाई, मेरे दोस्त सुरेश सेन निशांत ने लिखी है. <br /><br />उन की कुछ कविताएं मैं लिख रहा हूँ. पूरी कर सका तो अगले पोस्ट पर एक डाल दूँगा. पक्का.अजेयhttps://www.blogger.com/profile/05605564859464043541noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-4459327284061162268.post-63515245626295160032009-11-30T05:01:43.566-08:002009-11-30T05:01:43.566-08:00नमस्ते अजेय भाई ! कभी अपनी कविताएँ भी सुनाया कीजिए...नमस्ते अजेय भाई ! कभी अपनी कविताएँ भी सुनाया कीजिए हम बेताब रहते हैं।Prakash Badalhttps://www.blogger.com/profile/04530642353450506019noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-4459327284061162268.post-41021859680800909992009-11-30T00:24:20.460-08:002009-11-30T00:24:20.460-08:00अच्छी कविता
उस भूगोल की जिज्ञासा जगा गयी।अच्छी कविता<br />उस भूगोल की जिज्ञासा जगा गयी।Ashok Kumar pandeyhttps://www.blogger.com/profile/12221654927695297650noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-4459327284061162268.post-66781979896159778242009-11-29T09:05:31.510-08:002009-11-29T09:05:31.510-08:00विजय, संजय भाई, जौ की चग्ति हमे केलोरीज़ देती है, औ...विजय, संजय भाई, जौ की चग्ति हमे केलोरीज़ देती है, और प्रोटीन के लिए माँस खाते हैं हम.और इन छह महीनो मे मस्त रहने के सिवा यहाँ कोई विकल्प ही नही है.<br />हमार कोई धार्मिक या साँस्कृतिक अनुष्ठान इन दोनो के बगैर पूरा नही होता. शीत और बरफ की तरह ये हमरी ज़िन्दगी का अभिन्न अंग हैं.हमारे पास पूँजी, साम्राज्य, शोषण और सत्ता के इलावे और भी अपरिहार्य दुख हैं.... <br />शिरीष, तुम सर्दियों मे आना इधर और देखना, इस भूगोल मे कविता को किन अज्ञात प्रक्रियओं से हो कर निकलना पड़्ता है... यह एक अलग ही अनुभव होता है... सच.अजेयhttps://www.blogger.com/profile/05605564859464043541noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-4459327284061162268.post-73841483433197631442009-11-29T08:37:12.697-08:002009-11-29T08:37:12.697-08:00विजय गौड़ का एक ई-मेल:
bhai nishant ji ko is mahtw...विजय गौड़ का एक ई-मेल: <br />bhai nishant ji ko is mahtwapurn patr/kavita ke liye meri or se badhai pahunchwa dijiye. baar baar padh raha hu, na jane kyon jaanskar mujhe bula raha hai. man hai ki abhi piththu, laadun or nikal chalu. janskar nala in dino jam jata hai, shayad thoda aasan ho jata hai uski wajah se janskar ghati ka uncha nicha rasta. par sach kahu ajey yah aasan bhi kitna hota hoga, mai tou us ghutno ghutno barf me doobte paawon aur unhe baahar nikalne me khatm hoti urja ke isamaran se hi pareshan ho jata hu. par kargiyak ganw ke apne ek yatra ke saathi, Nambgil ki wo hansi mujhe himmat bandha rahi hai, December janwari me aana, mai aapko janskar naale se hi sindhu tak le jaayunga.<br />ajey, suresh bhai ki in kavitaon aur aapki prastuti ne na jane kyon mujhe kal raat se kuchh jyada hi bechen kiya hua hai. kyon lagayi tumne ye kavitain is suchna ke saath ki rohtang band ho chuka hai. beshak mera keylong tak aane ka abhi irada nahi pr kyon kiya bechen tumne ki rohtang paar ki duniya aur uske bhi paar aneko darron ki duniya mujhe pareshan kar rahi hai. kya yah in kavitaon ke bheetar chhupi us sthaniya pey ka asar hai ya tumhari prastuti ka keylongiya andaj, mai is wakt nahi kah sakta kuchh bhi. <br /><br />विजय गौड <br />C-24/9 Ordnance Factory Estate<br />Raipur, Dehradun- 248008<br /><br />Ph. 0135 2789426<br /> 09411580467अजेयhttps://www.blogger.com/profile/05605564859464043541noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-4459327284061162268.post-11201997491355980102009-11-28T22:26:58.702-08:002009-11-28T22:26:58.702-08:00अच्छी कविता. सुशांत जी को मेरा अभिवादन कहना अजेय. ...अच्छी कविता. सुशांत जी को मेरा अभिवादन कहना अजेय. तुम जिस भूगोल में रहते हो, कभी मौक़ा मिला तो उसे देखने ज़रूर आना चाहूँगा.शिरीष कुमार मौर्यhttps://www.blogger.com/profile/05256525732884716039noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-4459327284061162268.post-55002497498392120902009-11-28T19:22:58.350-08:002009-11-28T19:22:58.350-08:00सच में आश्चर्यजनक है ये पत्र.
जिसने ये देश कभी नही...सच में आश्चर्यजनक है ये पत्र.<br />जिसने ये देश कभी नहीं देखा उसे पहाड़ की संवेदना से इस कदर लगाव ही ऐसा लिखवा सकता है.<br />कल ही 'कबाडखाना' पर आपकी टिप्पणी देखी,आपने कहा पहाड़ में जौ से बने मादक द्रव्यों का बड़ा महत्व है.क्या इन दिनों जब शीत का साम्राज्य हो जाता है,इन की महत्ता और उपयोग भी बढ़ जाते हैं?sanjay vyashttps://www.blogger.com/profile/12907579198332052765noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-4459327284061162268.post-18129812396564392942009-11-28T09:35:20.657-08:002009-11-28T09:35:20.657-08:00रोहतांग पर बर्फ़बारी के कठिन दिनों को तकनीक की तमाम...रोहतांग पर बर्फ़बारी के कठिन दिनों को तकनीक की तमाम आधुनिक दुनिया क्या खत्म कर पाई है ? अजेय में तुम्हें छूना चाहूं यदि इन दिनों में तो मेरे लिए वह संभव नहीं। रोहतांग पार की इस दुनिया का चित्र भाई अनूप जी के इस पत्र से ज्यादा स्पष्ट हो रहा है- <br />मैं आंखें बन्द<br />करूं और तुम तक पहुंच जाऊं<br /><br />तुम बन्द कर आंखें<br />यहां तक उड़े आओ<br /><br />इसके सिवा<br />उड़ने के भी बन्द हैं<br />सभी रास्ते<br />इस बर्फबारी में तो। <br /><br />एक समय जांसकर घाटी को सिंगोला दर्रे से पार करते हुए उसके ठीक ऊपर पहुंच कर न जाने कितने सवाल मेरे भीतर उठे थे। वह १५ अगस्त १९९७ का दिन था। देश की आजादी की साल गिरह का दिन वहीं मेरे भीतर "<b>छवेगा रिगजिंग</b> चुपके से आ बैठा था। और सिंगोला से उसके गांव की दूरी वहीं मुझे उसके जवाब में सुनाई दी थी- तीन सौ पैंसठ गुणा पचास दिन। उस कहानी का बिल्कुल शुरूआती हिस्सा ये रहा- <br /><br /><br />बर्फ पर छवेगा के पांवों की छाप स्पष्ट थी। भुरभुरी कच्ची बर्फ पर जहां पांव रखो, छाप पड़ जाती। बर्फ पर पड़े हुए निशान अगली बर्फ के पड़ने तक या फिर पड़ी हुई बर्फ के पिघलने तक आने वाले यात्रियों के मार्ग-दर्शक होंगे।<br />छवेगा रिगजिंग के पद चिन्हों के सहारे सिंगोला का खतरनाक रास्ता बहुत ही सहज हो गया। कहां खाई है। कहां दरार है।<br /> कुछ भी नहीं सोचो। बढ़े चलो।<br /> धन्यवाद छवेगा। <br />बेशक तुम्हारे पांवों की गति नहीं है हमारे पास पर तुम्हारे द्वारा बना दिये गये रास्ते पर तो हम बढ़ ही रहे हैं। <br />सिंगोला-पास पर पहुंचे हुए अभियान दल ने छवेगा का अभिवादन किया। छवेगा नहीं था। दूसरी ओर के ढलान पर दिखायी देते पांवोंे के निशान गवाह थे कि वह आगे निकल चुका है। शायद लाकोंग पर होगा या फिर उससे भी आगे। वैसे लाकोंग सिंगोला से ढाई घ्ान्टे का रास्ता है, चतर सिंह ने बताया था। पर छवेगा की गति को घन्टों में नहीं बांधा जा सकता।विजय गौड़https://www.blogger.com/profile/01260101554265134489noreply@blogger.com