Monday, January 5, 2015

एस्फाल्ट

कारगा 18.7.2012

कभी इधर से गुज़रता था तो एक स्वच्छन्द नदी दिखती थी। किनारे के पत्थरों को भिगोती सुदूर पश्चिम की ओर भागती जाती। आज एक सड़क दिखती है चौड़ी धूल उड़ाती। जिसके मलबे ने नदी का दम घोंट रखा है। सड़क और नदी प्रथम दृष्टया एक ही ढब से बिछी हुई दिखती हैं। गौर से देखने पर इनमें यह फर्क है कि नदी का एक निश्चित रुख होता है और इसी वजह से उसका एक किनारा दक्षिण और दूसरा वाम होता है। सड़क का रुख उधर हो जाता है जिधर आप चल रहे हैं। इसलिए उसका अपना कोई निजी व्यक्तित्व नहीं है। उसके ऊपर चलने वाला ही उसका अस्तित्व तय करता है। आप उसके किसी एक किनारे को वाम या दक्षिण नहीं कह सकते। उस पर चलने वाले का रुख ही यह तय करता है। कभी यहां एक चरागाह दिखता था लहलहाता हरा, जहाँ कभी भेड़ें और कभी आईबेक्स के झुण्ड विचरते नज़र आते थे। आज बेढब डंगे दिखते हैं। सीमेंट, बजरी, सरिया, रेत के ढेर दिखते हैं। काँटेदार तारों की फेंसिंग दिखती है। ठेकेदार, पटवारी, गार्ड और सरकारी गाडिय़ाँ दिखतीं हैं; ट्रेक्टर, टिपर, एक्स्केवेटर दिखते हैं। ततीमा पर्चा और जमाबन्दी दिखती है। जरीब और लट्ठे दिखते हैं। हम प्रकृति की घेरेबन्दी कर रहे हैं। बहुत वैध और अधिसूचित तरी$के से। नाप रहे हैं। घेर रहे हैं पृथ्वी को। भारत में एक दिन में 25 किलोमीटर सड़क बन कर तैयार हो जाती है। खेतों को बीचों बीच से काटकर सिक्स लेन हाईवे बनाए जा रहे हैं। एक दिन हम इस पूरे ग्लोब को कांक्रीट और एस्फाल्ट में लपेट लेंगे। उफ्फ! इस विकसित समाज में हमारी आदिम पृथ्वी साँस कैसे लेगी?





Thursday, January 1, 2015

हम ही मोक्ष

 बहादुर पटेल  ने बीते साल  अपनी फेस बुक वाल पर कुछ बेहतरीन और अलग तरह की कविताएं पढवाई हैं । नव वर्ष  की शुभकामनाओं के साथ उन के माध्यम से आप तक कमलेश्वर साहू की यह कविता पहुँचा रहा हूँ । 

कमलेश्वर साहू  का एक संग्रह " यदि लिखने को कहा जाये " चर्चित हो चुका है . 


मठ में लड़कियां 
  •  कमलेश्वर साहू


सदियों से बुदबुदाये जा रहे हैं भगवान बुद्ध
निर्वाण निर्वाण निर्वाण
मठ में लड़कियां
घूमकर सारा मठ
खड़ी हैं इस वक्त
ठीक भगवान बुद्ध के सामने
जो बुदबुदाये जा रहे हैं सदियों से
निर्वाण निर्वाण निर्वाण
मुस्कुराती हैं लड़कियां
देखकर समाधिस्थ भगवान बुद्ध को
स्वयं बुद्ध को नहीं मालूम
क्या सोच रही हैं
ठीक उसके सामने खड़ी लड़कियां
कोई नहीं कर सकता परिभाषित
इस वक्त
इस मुस्कुराहट को
कहती है कोई एक
बहुत आहिस्ता
बुद्धम् शरण् गच्छामि !
खिलखिलाती हैं लड़कियां-
आ तो गये !

तो
गए
इस हद तक हो गया पारदर्शी
कि उसके पार
साफ दिखाई देने लगा सब कुछ
मारती है कोहनी
कोई एक, दूसरी को-
क्या पर्सनालिटी है
क्या व्यक्तित्व
क्या आकर्षण
क्या सम्मोहन
क्या गठीला बदन
क्या अपीलिंग है यार ऽ ऽ ऽ !
एक सिसकारी के साथ
फड़फड़ाते हैं ढेर सारे होंठ
मठ में लड़कियों को
भगवान बुद्ध के चेहरे की शांति दिखाई नहीं देती
भगवान बुद्ध के चेहरे पर व्याप्त
संतोष दिखाई नहीं देता
भगवान बुद्ध के चेहरे पर छाया हुआ
समस्त वासनाओं कामनाओं इच्छाओं पर
विजय दिखाई नहीं देता
कहती हैं
लड़कियां
मठ में
भगवान बुद्ध से
लड़कियां नहीं
उनकी देह
उनका यौवन
उनकी उम्र
उनकी आत्माएं कहती हैं-
हम ही सुख हैं
हम ही सत्य
हम ही शांति
हम ही सृष्टि
हम ही मुक्ति
हम ही मोक्ष
मुक्ति. . . . .मोक्ष. . . . .निर्वाण
वही निर्वाण
जो तुम बुदबुदाये जा रहे हो भगवन
भगवान बुद्ध
सदियों से .. . . . . .!