पिछले दिनो मेरे मित्रों ने कविता की वेब पत्रिका कृत्या के लिए तिब्बत के कवि तंज़िन त्सुंडुए की कुछ अंग्रेज़ी कविताओं का अनुवाद किया था... उन मे से एक यहाँ दे रहा हूँ. इन दिनो मेरे मन मे तिब्बत ही घूम रहा है...... आप इस कविता पर प्रतिक्रिया ज़रूर दीजिये . क्या तिब्बत वैसा शांत है, जैसा कि दिखाया जा रहा है......
गद्दारी
मेरे पिता मर गए थे
मेरे घर की रक्षा करते हुए
मेरे गाँव और मेरे देश की रक्षा करते हुए
मैं भी लड़ना चाहता था
पर हम बौद्ध हैं
लोग कहते हैं
हमें शांत और अहिंसक होना चाहिए
और मैं माफ कर देता हूँ अपने शत्रु को
पर कभी लगता है मुझे
कि मैंने अपने पिता के साथ गद्दारी की .
तिब्बती लोगों की पूरी पीड़ा घनीभूत होकर सामने आ गयी है.
ReplyDeleteकबसे और सबसे छले जा रहें है ये लोग.
ajey bhai aisi kavitayen padhane ke liye sadhuvaad
ReplyDeleteतिब्बत पर उदय प्रकाश जी की एक कविता है ....
ReplyDeleteit is very serious issue we must do something to protect them
ReplyDelete# संजय , अच्छा पकड़ा..."कब से, और सब से" ...भाई इस छल को कोई समझना ही नही चाहता. आज परम पावन जी अई पी एल के मुख्य अतिथि होंगे.
ReplyDelete# रोशन , ज़ाहिर है...
# सुशीला जी, मैं पढ़्ना चाहूँगा...
# बद दिमाग जी, और सभी... आभार.
तिब्बत वैसा शांत नहीं है,शायद..
ReplyDeleteI think there is a turmoil in Tsundue's poem.
What will happen after the turmoil is over.We are already witnessing sporadic uprising.What if such uprising turn violent in future?
Just the thought of it gives me a chill down my spine...!
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ReplyDeleteThe role of monasteries and religion (the way it was being practiced in Tibet) in the downfall of Tibet is an issue which agitates my mind too, and I'm sure that this must have been examined by someone, somewhere. My own sense is that these were largely, if not solely, responsible for the tribulations and challenged faced by the Tibetan people. Perhaps the monasteries had become the blood sucking parasites and had completely emaciated the general populace, and when the crisis confronted them, there was no one to stand up and fight. Would like to be enlightened on this by those who are better informed on the subjcet.
ReplyDelete# The Himalaya,
ReplyDeleteकविता के *टीथिस* मे ज़बर्दस्त *खलबली* है!
........ इसे हम ने महसूस कर लिया है तो तय है कोई निदान भी खोज़ लेंगे. आमीन! come out of the *SEA* now.... look wats happening around Himalaya
#KSK
सब जानते हैं सर.... लेकिन घण्टी कोई नही बाँधेगा ...
तुम्हें ठीक लगता है कवि...अपनी कमियों के लिए धर्म को दोष देना ठीक नहीं...तुम्हें माफ नहीं करना..लडते हुए मर जाना चाहिए...
ReplyDeleteठीक कहते हो विनोद. शायद इस कवि को यही कहने के लिए मैं और अजय लाहुली गत दिनो मण्डी तक गए थे . पर पता नही हमारी इच्छा शक्ति कमज़ोर थी या कि वह खुद यह नही सुनना चाहता था.... हम मिल ही नही पाए. वैसे यह इच्छा शक्ति हमारे देश मे भी नही है.... कितना तो ढुलमुल है तिब्बात को ले कर हमारी विदेश नीति... फेस बूक ने एक मित्र ने कहा था इस कवि मे विरोधाभास दिखता है..... उस ने सही कहा था लेकिन असल विरोधाभास भारत के स्टेंड मे है..जिस ने कवि और तिब्बती मानस को दुविधा और संशय मे डाल रखा है. विरोधाभास की हद देखिए कि हमारा मीडिया इन दिनो खूब चीन चीन चिल्ला रहा है, लेकिन हमरे पर्चून दुकानो पर चीन का ही माल बिक रहा है. और मेरा अन्दाज़ा गलत नही है तो सब से ज़्यादा तिब्बती आप्रवासी ही चीनी माल बेच रहा है. एक सर्वे बताता है कि आज भारत चीनी माल का सब से बड़ा उपभोक्ता बन चुका है.और उत्पादन के नाम पर क्या है हमारे पास? करुणा, सद्भाव, मेडिटेशन, अध्यात्म, *बुद्धा*,टूरिज़्म ? यह क्या ताक़त है जो हम से यह सब करवा रही है?
ReplyDeleteक्या हम आज के इस ईश्वर को पहचानते हैं?
सच है अजेय कि हमें जन्म के साथ जिन ईश्वरों और ईश्वरीय पुरुषों के साथ बांध दिये जाने की कोशिशें लगातार की जाती हैं, उनके मोहपाश को समझ लेना कितने विरोधाभासों और द्वंद्वों से भर देता है…लेकिन लड़ना तो होगा ही…और चारा भी क्या है?
ReplyDeleteअजेय जी
ReplyDeleteसोचने पर विवश कर दिया आपने........सवालों का उत्तर पाना शायद इतना आसान भी नहीं है.......
विरोधाभाषों से जूझती इस कविता की सराहना के लिए मेरे पास शब्दों का अकाल पड़ गया है.
I am a Tibetan
ReplyDeleteI am Himalayan
I know that I can never live
If I die for my home
Village or my nation
And I know
That I can never die
If I live for my inner light
Can I know
How to become my own lamp?
'Aatmo Deeepo Bhav'?
I have to find out
Otherwise there's no peace
After thousand of struggles
My father will be defeated
I will be defeated
Till we are not Still...
Kaha tha Buddh ne Angulimaal se :
"Bahut hua! Ab thahar jao!"
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ReplyDeleteThoda kaha, bahut chaap gaya!
ReplyDeleteAb likhe ko kaun mitaaye?
Itni lambi baat ki baatee ko
kaun bujhaaye?
Ajey!
Ye bolatiyaan band kab hongi?
जब हम *थिर* हो जाएँगे अशेष ! या *थेर* ..... पूछना स्नोवा से , * वज्र * से * थेर * तक की रिवर्स जर्नी कैसे की जाए? तिब्बत ने एनिमिज़्म से सीधे वज्र यान मे छलाँग लगानी चाही ... कविता के पठार मे भटक रहे हैं लाखों अंगुलिमाल ....कविता के अभयारण्य मे व्याकुल है एक लकड़बग्घा... बुद्ध हो जाना चाहता है!
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