अक्तूबर् 8, 2009 को मैं स्पिति में था. चार दिन वहीं घूमता रहा. काम सरकारी था, फिर भी मज़ा आया
स्पिति तिब्बत की सीमा से सटा हुआ हिमालय के उस पार भारत का एक अद्भुत भूखण्ड है. प्रथम दृष्टया यह किसी भी एंगल से भारत का हिस्सा नहीं लगता. लेकिन कुछ दिन यहां रह कर देखें, इसे जानने की कोशिश करें..........
हिमालय की प्राचीन भाषा जङ्जुङ का शब्द है स्पिति . जिस का अर्थ है चार नदियां। इस रेतीले पठार पर चार नहीं , अनेक नदियां बहतीं हैं। जो यहां बेहद खूबसूरत घाटियों का निर्माण करती हुई अंततः सतलुज में जा मिलतीं हैं.
कोठे ते आया करो, जदों असी सो जाएं, तुसी मखीयां उड़ाया करो....
स्पिति में याक अब बहुत कम रह गए है. ज़्यादातर ‘ज़ो’ से ही हल जोता जाता है। 'ज़ो ' याक और गाय की संकर संतति है. मुझे अपने गांव का याक याद आता है. उसे हम संतति के लिए पालते हैं . वह खेतों में खुला चरता है. भीमकाय व डरावना. लेकिन क्याटो गांव का यह हलधर जोड़ा कितना निरीह है! इन्हें मैं छू सकता हूं।
यह काज़ा गांव का बौद्ध मठ है, जो तंज्ञुत नाम से प्रख्यात है. यह एशिया के सब से ऊंचे गांव कोमिक के ऊपर एक टीले पर स्थित है. अर्थात हिमालय पर सब से ऊंची बस्ती। अविश्वसनीय , लेकिन इस सरकारी साईन बोर्ड को आप झुठला नहीं सकते.
यह काज़ा गांव का बौद्ध मठ है, जो तंज्ञुत नाम से प्रख्यात है. यह एशिया के सब से ऊंचे गांव कोमिक के ऊपर एक टीले पर स्थित है. अर्थात हिमालय पर सब से ऊंची बस्ती। अविश्वसनीय , लेकिन इस सरकारी साईन बोर्ड को आप झुठला नहीं सकते.
काज़ा के पीछे इस दुर्गम पठार पर समुद्र तल से चार से साढ़े चार हज़ार मीटर की ऊंचाई वाली ऐसी सात आठ बस्तियां हैं. सभी सड़क से जुड़ चुकीं हैं. हर बस्ती में एक बौद्ध मठ है, जिस में बच्चे पारम्परिक धर्म के साथ साथ आधुनिक शिक्षा ग्रहण कर रहे हैं. कुछ मठों में तो हिमाचल सरकार के मिडल स्कूल भी चल रहे हैं, जहां सी.बी.एस.ई. का पाठ्य क्रम पढ़ाया जा रहा है. ऐसे ही एक स्कूल का अध्यापक छिमेद दोर्जे हिन्दी में सुन्दर कविताएं लिखता है. उन का साहित्यिक नाम मोहन सिंह है. आगामी किसी पोस्ट मे उस की कविता डालूंगा.
छल - कबड्डी ताल- ताल , मेरी मूँछें लाल-लाल..... यह मठ का प्रांगण है.4587 मीटर की ऊंचाई पर नन्हे बटुक कबड्डी खेल रहे हैं. आओ हम भी ट्राई मारें..... मैं नहीं खेल सकता. दम घुटने लगता है. यहां कल्ज़ङ दोर्जे तथा देकिद ड्रोल्मा जैसे विश्व्स्तरीय खिलाड़ी पैदा हुए.यहां के बच्चों ने हमें पंजाबी ट्प्पे सुनाए: कोठे ते आया करो, जदों असी सो जाएं, तुसी मखीयां उड़ाया करो....
यह लङ्ज़ा गाँव है. (4200मीटर)
सामने पौन किलोमीटर गहरी खाई (cliff) और पीछे अनंत पठारीय चरागाह है। मवेशियों और चरवाहों का स्वर्ग. दूर क्षितिज में 'शि-ला' पर्वत है. इस के पीछे तिब्बत की कुख्यात पार्छू घाटी है, जिस ने कुछ साल पहले सतलुज घाटी पर कहर बरपाया था. इसी इलाक़े मे गत दिनों चीन की गतिविधियों की खबरें थीं. शायद ये खबरें मीडिया और सत्ता के गलियारों तक ही सीमित थीं. बस्तियों में लोग निश्चिंत हैं. हमेशा की तरह जौ उगाते, मवेशी हाँकते, मस्त !
ताबो 996 ईस्वी मे बना साधना केन्द्र है. सम्भवतः पश्चिमी हिमालय का सब से प्राचीन अध्ययन संस्थान भी। महानुवादक रिंचेन ज़ङ्पो ने पूरे पश्चिमी हिमालय में धर्म और शिक्षा के प्रसार के लिए ऐसे 108 केन्द्र स्थापित किए थे. यहां का अद्भुत मिट्टी का स्थापत्य और उस के भीतर नायाब भित्ति चित्र देश विदेश से इतिहास विदों और कला मर्मज्ञों को आकर्षित करते हैं।
इधर कुछ वर्षों से इस धरोहर को कंक्रीट के जंगल ने घेर सा लिया है।
मैत्रेय, तुम न ही आओ तो अच्छा है......!
चार दिन इस दूसरी दुनिया में बिता कर लौटना , ज़ाहिर है, बहुत सुखद नही था। फिर भी 11 अक्तूबर् 2009 की सुबह घर लौटते हुए मेरी झोली इस दुनिया की नियामतों से ठसाठस भरी हुई थी:
ताज़ा जौ, 15/- प्रति किलो
रतन जोत,100/- प्रति 100ग्राम्
काले मटर,30/- प्रति किलो
फर्न,100/- प्रति250 ग्राम
छर्मा (सीबक थॉर्न) का जैम, 400/- प्रति किलो
स्पिति का सेब, 1200/- प्रति 20किलो.
तस्वीरें- एक जी बी। मुफ्त.
यादें- अनगिनत, मुफ्त।अधूरी हसरतें-
# स्पिति के पहले हिन्दि कवि छिमेद दोर्जे उर्फ मोहन सिंह से एक मुलाक़ात्
# 'बुछेन ' लोक नाट्य कलाकारों से चर्चा
# वज्रयानी संत कवि मिला रेपा की एक दुर्लभ तस्वीर। चीनियों द्वारा कथित रूप से पैंट की गई चट्टानें। (foto अपलोड नहीं हो सका. )
. हमारी मारुति जिप्सी धूल उड़ाती 187 किलोमीटर क़ाज़ा - केलंग हाईवे पर ये सारा सामान लादे चल पड़ी है. ऊबड़ खाबड़ रास्तों पर हमारे जिस्म की एक एक हड्डी बज रही है. फिर भी मन तो मालामाल है !
रतन जोत,100/- प्रति 100ग्राम्
काले मटर,30/- प्रति किलो
फर्न,100/- प्रति250 ग्राम
छर्मा (सीबक थॉर्न) का जैम, 400/- प्रति किलो
स्पिति का सेब, 1200/- प्रति 20किलो.
तस्वीरें- एक जी बी। मुफ्त.
यादें- अनगिनत, मुफ्त।अधूरी हसरतें-
# स्पिति के पहले हिन्दि कवि छिमेद दोर्जे उर्फ मोहन सिंह से एक मुलाक़ात्
# 'बुछेन ' लोक नाट्य कलाकारों से चर्चा
# वज्रयानी संत कवि मिला रेपा की एक दुर्लभ तस्वीर। चीनियों द्वारा कथित रूप से पैंट की गई चट्टानें। (foto अपलोड नहीं हो सका. )
. हमारी मारुति जिप्सी धूल उड़ाती 187 किलोमीटर क़ाज़ा - केलंग हाईवे पर ये सारा सामान लादे चल पड़ी है. ऊबड़ खाबड़ रास्तों पर हमारे जिस्म की एक एक हड्डी बज रही है. फिर भी मन तो मालामाल है !
स्पिति के चित्र गजब के हैं. नदी वाला तो पूरा पेंटिंग लगता है. यह एक दूसरा ही लोक है.
ReplyDeleteस्नोवा का यह मेल मिला
ReplyDelete"Dekhaaa...
Hamaari mitti me se kya kya...
khoobsoortiyaan chura laaye tum...
Yaad rahega...
Yaayaawaron ko...
Re Yaayaawar...
Love is Great...
Beyond us...
And U have touch it...
beautifully...
silently...
Love... U...
Snowa Borno
The Himaalayan---"
यह टिप्पणी किसी दूसरे पोस्ट पर लगी मिली:
ReplyDeleteroshan thakur said...
vahut ache hai aap ke spiti me Char Din, din tow teek hai raat ko kya kiya,? aap ka yaak ko chuna or aap ka yeh aienak jach rahi hai, HERO lag rahe ho voh bhi ACTION FILM KA.
THANX 4 sharing ur visit it is always gud to know the land & people , their living condition,culture,traditions,rituals,and chal kabadi really exciting.
राशन भाई , ठीक कहते हो लेकिन कमेंट ठीक जगह लगाया करो.
Bhai Ajey, apka blog dekha. Himalaya kee unchaiyon kee adbhut jankari prapt hui. Khoob likhate raho!
ReplyDeleteHari Ram Meena, Jaipur.
गजब के चित्र और रोचक जानकारी
ReplyDelete