अरूणाचल प्रदेश में पिछले कुछ वर्षों से किशोर उमर के बच्चे लापता हो रहे हैं। परन्तु यह लापता होना अपहरण जैसा मामला नहीं है। गरीब परिवारों के बच्चों को मठ में निःशुल्क अच्छी शिक्षा देने के नाम पर माता पिता की सहमती से ले जाया जाता है। कुछ अर्से बाद माता पिता का इन बच्चों के साथ सम्पर्क टुट जाता है। यह कारनामा अरूणाचल प्रदेश के कामेंग जिला में ज्यादा तेजी से हो रहा है। कामेंग जिला में (जिसके अब कई सरकारी जिले में बन चुके हैं) ज्यादातर मोनपा, दिरांग, भुत, लिश और कालाकटंग जनजातियों के लोग रहते हैं। यह जनजातिय लोग बुद्व मत को मानने वाले हैं। पिछले दिनों एक सवांद समिति हिन्दुस्थान समाचार ने चौंकाने वाला रहस्योदघाटन किया है। ऐजंसी की खबर के अनुसार इन बच्चों को अरूणाचन प्रदेश से नेपाल में ले जाया जाता है और वहॉं इन्हें काठमांडू के स्वयंभू स्थित फुंछोक चोलिंग मठ में भरती किया जाता है। हेरानी की बात है कि नेपाल सरकार के पास जो 82 मठ पंजीकृत हैं उन्में इस मठ का नाम दर्ज नहीं है। इस मठ में बच्चों बुद्व मत की शिक्षा देने की बजाये शुगदेंन समप्रदाय की शिक्षा दी जाती है। ध्यान रहे शुगदेंन सम्प्रदाये के उपासक तिब्बत में दलाईलामा का विरोध करते हैं और चीन का समर्थन करते हैं। प्रकारअंतर में तिब्बत में दिलाईलामा के नेतृत्व में चल रहे स्वतंत्रता आदोलन को समाप्त करने के लिए चीन शुगदेन सम्प्रदाये को बढ़ावा देता रहता है। चीन का प्रयास है कि अरूणाचल प्रदेश के बोद्व उपासक क्षेत्रों में भी शुगदेन सम्प्रदाय का प्रचार प्रसार हो तो यहॉ के लोगों को भी भारत के विरोध में और चीन के समर्थन में खड़ा किया जा सकता है। अभी तक एकत्रित सूचनाओं के आधार पर अरूणाचल प्रदेश के कामेंग क्षेत्र के 150 बच्चों को किसी न किसी ढंग से काठमांडू स्थित इस मठ में ले जाया जा चुका है। कहा जाता है कि मठ ने अरूणाचल में अपना बच्चा मठ में भेजने के लिए उनके माता पिता से सम्पर्क करने के लिए एजेंटों की नियुक्ति कर रखी है। एजेंटों को प्रति बच्चे के हिसाब से दस हजार रूपया दिया जाता है ऐसे ही एक एजेंट नोरबू वांगदी ने स्वीकार किया है कि वह 70 बच्चे इस मठ में भेज चुका है लेकिन उसका कहना है कि उसकी जिम्मेदारी बच्चों मठ तक पहुॅचाना ही है उस मठ में क्या हो रहा है उसका उसे नहीं पता मठ के ही एक बच्चे ने अपने घर किसी प्रकार से फोन करके बताया कि मठ में उनके साथ ठीक व्यवहार नहीं किया जाता। दरअसल मठ में भर्ती होने के लिए बच्चों के माता पिता को अनेक प्रकार के प्रलोभन दिये जाते हैं 10 साल के एक बच्चे के पिता श्री पाव दावो ने कहा कि उन्हें बताया गया था कि मठ में उनके बच्चे को मुफत अधुनिक शिक्षा दी जायेगी यहॉं तक की उन्हें अंग्रेजी माध्यम से पढ़ाया लिखाया जायेगा ताकि डिग्री लेने के बाद उन्हें कहीं अच्छी नौकरी मिल सके परन्तु मठ में ऐसा कुछ नहीं हो रहा अखिल अरूणाचल प्रदेश स्टुडेंटस यूनियन क्रे प्रधान श्री तक्म तातुंग का कहना है कि शिक्षा के बजाये बच्चों को शुगदेन सम्प्रदाय में दीक्षित किया जा रहा है और यह सम्प्रदाय चीन द्वारा समर्थित है। यूनियन का यह भी कहना है कि बच्चों को शुगदेन सम्प्रदाय के इस मठ में भेजने में अरूणाचल प्रदेश के कुछ सरकारी अधिकारियों की भी मिलीभगत है। फरवरी में 6 बच्चे मठ से भाग कर वापिस अरूणाचल प्रदेश,अनेक प्रकार की मुसीबतें सहते हुए वापिस अपने घर पहुंचे उन बच्चों ने जब फंुछोक चोलिंग मठ में हो रही गड़बड़ का वर्णन घर वालों के सामने किया तो अन्य लोगों को भी चिंता हुई। कुछ बच्चों के माता पिता उनकी तलाश में इस मठ में पहुंच गये। इस प्रकार 21 और बच्चों को मठ की कैद से मुक्त करवाया गया लेकिन मठ के मालिकों ने इन बच्चों को छोड़ने से पहले माता पिता से 50-50 हजार रूपये के बांड भरवाये कि इनको वापिस मठ में भेज दिया जायेगा। मठ ने अपने रिकार्ड में भी हेराफेरी करके शेष बच्चों के बारे में बताने से इंकार कर दिया कहा जाता है कि कुछ बच्चों को आगे की शिक्षा के लिए तिब्बत और चीन में भी भेज दिया गया है जहॉ उन्हें शुगदेन सम्प्रदाय की गहरी शिक्षा दी जायेगी। मठ ने बच्चों को गायब तो कर ही दिया है मठ अधिकारियों का यह कहना भी है कि जब इनकी 20 साल की शिक्षा पुरी हो जायेगी तभी इन्हीं वापिस भेजा जायेगा। अरूणाचल प्रदेश में कुछ लोगों ने अपने बच्चों के बार में गुम होने की प्राथमिक सूचना रपट पुलिस स्टेशन में भी दर्ज करवाई है। पूर्वी कामंग जिला के पुलिस अधिक्षक का कहना है कि वे बच्चों को मठ में भेजे जाने की जांच कर रहे है। और इस समबन्ध में उन्होंने केन्द्र सरकार के अधिकारियों से भी सम्पर्क साधा हुआ है उनका कहना है कि यह मामला भारत और नेपाल के बीच उलझा हुआ है इस लिए प्रदेश सरकार अकेले कुछ नहीं कर सकती। अरूणाचल प्रदेश के गृह मंत्री ने भी श्री टाकोदावी भी यह मानते हैं कि इसमें केन्द्र सरकार को जांच करवानी चाहिए। दरअसल आजकल नेपाल चीन सरकार की गतिविधियांे का अड्डा बन चुका है और नेपाल सरकार चीन को नाराज नहीं करना चाहती। यह मठ भी चीन सरकार की सहायता से ही चलाया जा रहा है।
अरूणाचल प्रदेश में शुंगदेन सम्प्रदाय की बड़ रही गतिविधियों और इसे मिल रहे चीन समर्थन के कारण प्रदेश में बवाल मचा हुआ है। चीन अरूणाचल प्रदेश पर लम्बे अर्से से अपना दावा जता रहा है। भारत सरकार तो उसके इस दावे को खारिज करती ही है, यह अलग बात है कि खारिज करते वक्त उसकी भाषा सफाई की ही होती है। लेकिन प्रदेश के लोगों की प्रतिक्रिया इस मामले में अतयन्त तीव्र रही है भारत सरकार द्वारा चीन के दावे को खारिज करने से पहले ही अरूणाचल प्रदेश के लोग उसे खारिज कर देते हैं। कामेंग क्षेत्र में इसका एक और कारण भी है। इस क्षेत्र के लोग दलाई लामा को अपना गुरू मानते हैं। चीन ने दलाई लामा के साथ अन्याय किया है इसलिए यह लोग चीन को घृणा की दृष्टि से देखते हैं। चीन ने अब इसका तोड़ शुगदेन सम्प्रदाय को बढ़ावा देकर निकाला है। शुगदेन सम्प्रदाय क्या है घ्दरअसल तिब्बत में अनेक देवी देवता संरक्षक देवता माने जाते है। इनमे ंतारा है, शिव है, काली है और ऐसे ही और देवी देवता। परन्तु एक देवता शुगदेन है जिनके उपासक तिब्बत की वर्तमान परम्परा एंव इतिहास को नकारते हैं। तिब्बत में दलाई लामा केवल धर्म गुरू ही नहीं है बल्कि वहॉ की राष्ट््रीयता के भी सवल प्रतीक माने जाते हैं। अतः शुगदेन सम्प्रदाय का अर्थ है अप्रत्यक्ष रूप से मतांतरण और इतिहास गवाह है कि मतांतरण राष्ट्रांतरण हो जाता है। तिब्बत में राष्ट्रांतरण का अर्थ है स्वतत्रता मध्म होते होते अन्तः समाप्त हो जाना। यह तिब्बत के चीनकरण की दिशा में एक कदम कहा जा सकता है।
अब चीन सरकार यही प्रयोग अरूणांचल प्रदेश में करने का प्रयास कर रही है। इस प्रदेश में शुगदेन सम्प्रदाये के प्रभाव का अर्थ होगा लोगों का चीन के प्रति मनोविज्ञान का बदलना। जाहिर है इस प्रयोग के नतीजे देर बाद ही निकलेंगे लेकिन राष्ट््रांतरण के लिए इस प्रकार के प्रयोग कितना लाभ देते है, इसे चीन से अच्छी तरह कौन जान सकता है। जिसने इसी प्रयोग से मंचूरिया नाम के पूरे राष्ट्र को ही निगल लिया। चीन सरकार तिब्बत में, विशेषकर पूर्वी तिब्बत में शुगदेन सम्प्रदाये के मठों को सहायता और बढ़ावा दे रही है लेकिन वहॉं इन मठों के लिए चीनियों को भिक्षु और पदाअधिकारी नहीं मिल रहे। काठमांडू के इस मठ से इसी प्रकार के भिक्षुओं की खेप तैयार करने का प्रयास हो रहा है ताकि तिब्बत के भितर दलाई लामा के प्रभाव को समाप्त किया जा सके और अरूणाचल के भीतर भारत विरोधी अभियान छेड़ा जा सके। अखिल अरूणाचल प्रदेश स्टुडेंटस यूनियन के प्रधान श्री ताकम तातुंग की यह टिप्पणी आंखे खोल देने वाली है -अरूणाचल प्रदेश में चीनी नागरिकों की उपस्थिति से सभी भली भांति वाकिफ हैं परन्तु अभी तक न तो केन्द्र सरकार और न ही प्रदेश सरकार ने कोई ठोस कदम उठाये हैं विदेशियों के लिए पास आसानी से उपलब्ध हो जाते है। सीमान्त पर बच्चों को नेपाल में ले जाने का खेल चालू है मुझे यकीन है कि इन गतिविधियों में चीन की मुख्य भूमिका है क्योंकि नेपाल जैसा देश जो खुद ही गरीबी से जुझ रहा है भारतीय बच्चों को मुफत शिक्षा कैसे दे सकता है।
नेपाल में शुगदेन सम्प्रदाय की गतिविधियों में चीन अब अप्रत्यक्ष रूप से नहीं बल्कि प्रत्यक्ष रूप से भूमिका निभा रहा है। आज से सात साल पहले इस सम्प्रदाय ने एक द्विमासिक पत्रिका टाईम्स और डेमोक्रेसी प्रारम्भ की थी जिसके कार्यालय का और नेपाली शुगदेन सोसाईटी का सारा खर्चा नेपाल स्थित चीन के दूतावास ने ही किया था। 1997 में शुगदेन सम्प्रदाय के लोगों ने हिमाचल प्रदेश के धर्मशाला में आ कर दलाई लामा के तीन निकटस्थ साथियों भिक्षु लोबजंग ग्याछो, भिक्षु नवांग लोडे और भिक्षु लोबजंग नवांग की क्रुर हत्या कर दी थी। हत्यारों की पहचान हो जाने के बावजूद पुलिस उन्हें पकड़ नहीं पाई थी।
भारत सरकार को अभी से इस प्रश्न को गम्भीरता से लेना चाहिए और अरूणाचल प्रदेश में शुगदेन सम्प्रदाये की गतिविधियों की जांच करवाई जानी चाहिए।
प्रवक्ता के ताज़ा पोस्ट से साभार।
लेखक:
यायावर प्रकृति के डॉ. अग्निहोत्री अनेक देशों की यात्रा कर चुके हैं। उनकी लगभग 15 पुस्तकें प्रकाशित हो चुकी हैं। पेशे से शिक्षक, कर्म से समाजसेवी और उपक्रम से पत्रकार अग्निहोत्रीजी हिमाचल प्रदेश विश्वविद्यालय में निदेशक भी रहे। आपातकाल में जेल में रहे। भारत-तिब्बत सहयोग मंच के राष्ट्रीय संयोजक के नाते तिब्बत समस्या का गंभीर अध्ययन। कुछ समय तक हिंदी दैनिक जनसत्ता से भी जुडे रहे।
शानदार पोस्ट
ReplyDeleteडॉ अग्निहोत्री की यह रिपोर्ट दिल को हिला देने वाली है ....और त्रासदी यह है कि अरूणांचल प्रदेश का सरकारी तंत्र भी इसमे चुपके से शामिल है ,पुलिस की भूमिका तो आदि से संदिग्ध रही ही है । नन्हें बच्चों को इस तरह भयंकर साजिश के तहत प्रलोभन देकर अपहृत करके ले जाना बेहद खतरनाक है । चूंकि मै इधर कई बार नेपाल गई हूँ और वहाँ की स्थिति को करीब से देखा है ,इस कारण मुझे उन असहाय और मासूम बच्चों को लेकर गहरी चिंता है । इस विषय को वहाँ के जन समुदाय तक पहुँचना बेहद जरूरी है ताकि आगे और अंजान अभिभावक इसके शिकार न हों ।
ReplyDeleteshukden sampradaay ki aisee saajish aur bhitaghaat padhkar aankhen khul gayij .. dr agnihotri ko iss post se yah sansanikhej jaankaari uplabdh karaane ke liye dhanywaad .
ReplyDeleteAround this time two years back I was attending a lecture by HH Dalai Lama in
ReplyDeletePennsylvania U.S.A. Outside there were around a couple of hundred people
shouting slogans against HH. I asked who these people were. I was told these
people were the Shugden followers. I had heard that name for the first time.
From Ajay's blog it appears that they are spreading in India, and I suspect they
might be spreading in Himachal also, especially when HH mainly resides in D.Sala
in H.P.
R.N. Sahni Lote Lahoul.
शुंगदेन सम्प्रदाय के बढ़ते प्रभाव और उससे होने वाले दूरगामी प्रभाव के प्रति जागरूक करती रिपोर्ट को हम तक पहुँचाने का शुक्रिया। दलाई लामा का विरोधी बौद्ध कैसे हो सकता है ? बच्चों को पहले दलाई लामा का विरोधी और फिर भारत-विरोधी बनाना निन्दनीय है।
ReplyDeleteसभी का आभार. लेकिन इस पोस्ट को यहाँ चिपकाने का उद्देश्य मात्र एक सम्प्रदाय विशेष पर उंगली उठाना नहीं था. मैं उस शातिर प्रक्रिया को समझना चाह रहा था जिस के तहत कोई संगठन या संस्था अपने काडर का रेजिमेंटेशन ( स्कूलिंग) करता हैं.हमे हैरान नही होना चाहिए कि यह प्रक्रिया आज शुग्देन ही नही, विश्व के हर कट्टर पंथी , परम्परा वादी संगठन में धर्म और जाति और भाषा और नस्ल और क्षेत्र और् यहाँ तक कि वर्ग और विचारधारा की आड़ में भी, धड़ल्ले से जारी है.वक़्त आया है कि हम सब अपने अपने भीतर टटोलें , और इस खतरनाक दकियानूसी सोच से बचें.....क्या सत्ताधारी ताक़तवर अमीर राष्ट्र हमारी इस कमज़ोरी का फायदा नहीं उठा रहे?
ReplyDeleteraghuvir sahni ka mail:
ReplyDeleteraggs sahni Jul 27 09:34AM -0700 ^
Dorje Shugden is an iconic character from Tibetan mythology known for the tantric practices. I only learned of it during a lecture series from his holiness Dalai Lama. They have a history of fundamentalism and spirit worshiping and seem to be against ideology of Dalai Lama. I remember the signs the protesters were holding that said “Dalai Lama stop lying” among other things. Shugden cult goes protesting against Dalai Lama wherever he speaks publicly. Robert Thurman once called them the “Buddhist Taliban”. Many protesters were westerners and some wearing monk outfits. I was shocked to see as this was the first time I had seen protest against such peace loving human being. Western Shugden society is very active in promoting Shugden cult via handing free literature and media postings.
Last visit of his HH to New York the Shugden protesters seemed to be protesting peacefully whereas many angry Tibetans were shouting and cursing at them while flinging objects at the protesters. I think all Dalai Lama supporters should refrain from violence and anger and follow the true teachings of Buddhism. Getting angry and violent would only make Shugden followers stronger. This could very well be a Chinese ploy to get HH followers all riled up and make them look bad in the eyes of media.Raghbir
This comment has been removed by the author.
ReplyDeleteKSK ne lahaulspiti group (roshan) me likha:
ReplyDeleteThis is an interesting write up and one feels provoked enough to respond. Perhaps that is what Ajay had intended in the first place - to provoke all those who follow this site, and also his blog.
I am afraid, I have a slightly different take on this - not because I have a better understanding of the issues relating to Sino-Tibetan relations or even about Buddhism-vs-other religions. It is based on a more fundamental premise of consistent application of principles.
I have complete sympathy when issues of coercive exercise of authority, either temporal or religious, are raised. If young children are weaned away through coercive means, that should and has to be stopped - I am completely one with that view. If children are forcibly detained in the monasteries against their will, then they need to be freed from this subjection - no question about that. If they are forced into accepting a religion against their choice - that is also eqully reprehensible.
However, if the parents have permitted them to be taken to the monasteries, for whatever consideration (higher education, better up bringing, better quality of life, better prospects or even lucrative monetary offers), then the picture changes dramatically. Then, to my mind, parents are to blame more than those organisations which are luring the children away. It is hard to believe that the parents were not in the know of the intents of these organisations. And it is equally difficult to say that the parents did not have the good of their children in mind when they allowed this to happen, with their eyes and ears open. I have immense sympathy for the poor children, because their innocence was exploited and the right to follow the religious or spritual path of their choice was taken away from them. I will certainly pray for their well being. As for the parents, I would restrain myself from cursing them.
Now, as far as Shugden is concerned, I have never heard of them, and therefore, know the least about the organisation. But, if it is a religious organisation or even a sect, as is made out to be, then, I think, it is a matter of personal choice of those who subscribe to its tenents. The pursuit of spritual fulfillment or religious enlightenment is a personal journey of each individual and it should be left to him to select his path. I should like to concede the right to dictate the path of that journey neither to any temporal authority, nor to a religious guru. That, I trust, is the basic minimum norm of social freedom in a democracy. Buddha himself had given the freedom to his disciples not to accept his word,if it was not agreeable to them.
Just as HH has the freedom to propagate his cause across the globe, so must any other religious or political group be given the freedom to fight for their agenda. Any suggestion for the use of coercice instrumentalities of the State to check or stop Shugden from promoting its cause is abominable, because this goes against the very grain of religious tolerance His Holiness has himself been promoting. Unless, of course, the practices adopted by Shugden are violative of law, which does not seem to be the case, as I can make out from the intervention of Raghvir.
There is more I have to say on this, but for now I've to stop here, for want of time.
Juley, again
KSK
देरी से आने के लिए माफी चाहता हूँ. मुझे लगता है कि डा0 अग्निहोत्री को शुगदेंन के बारे में अधिक जानकारी नही है जिससे उनका एजेंडा तो हल हो गया किंतु शुगदेन के सन्दर्भ कुछ भ्रामक व गोलमोल बात कर भ्रम को बढ़ाया है. प्रतिष्ठित लोगों को ऐसी कोशिश से बचना चाहिए. पूरी जानकारी हो तो लेख व लेखक का मान और बढ़ता है..
ReplyDeleteबहुत ज़्यादा देरी से आने के लिए ज़्यादा माफी चाहता हूँ . अजय, शुग्देन पर कुछ और जानकारी दीजिए.
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