Wednesday, January 19, 2011

इस ‘खोगला’ पर गाँव नहीं जा पाऊँगा

आज देसी नव वर्ष की पहली पूर्णिमा है. यानि कि ‘खोगला’ .
पिछ्ले पोस्ट पर मैने जानकारी दी थी कि यह आग का त्यौहार है.इन दिनों लाहुल मे शीत देवता का प्रकोप पूरे ज़ोर पर है. केलंग का न्यूनतम तापमान शून्य से 25 डिग्री सेल्श्यस नीचे जा रहा है. ऊँचाई पर स्थित गाँवों मे तो 35 दिग्री भी पार कर जाता है. ज़ाहिर है ऐसे मे लोग आग की बातें कर के भीतर ऊष्णता महसूस करते हैं. इसी लिए बर्फीले क्षेत्रों मे आग और उस से जुड़े मिथकों का बड़ा महत्व है. आज तो आग सुलगाने के कई तरीक़े हैं, लेकिन पुराने दिनों मे बर्फ के इन विशाल रेगिस्तानों मे आग को ज़िन्दा रखना निश्चय ही चुनौतीपूर्ण काम रहा होगा. हम जानते हैं चिंगारियों को तब ऊपलों मे ही जीवित रखने का रिवाज़ था. युगों और पीढ़ियों तक वह आग ज़िन्दा रहती थी. इस भीषण सर्दी मे आग को इस तरह ज़िन्दा रखने की बात एक रोमाण्टिक गप्प सी लग रही है. लेकिन वह ऐसे ही ज़िन्दा रखी जाती रही है, और गाँव में आज भी ऐसे ही रखी जाती है. कभी कभी मैं अपने गाँव वाले चूल्हे की आग की उम्र के बारे सोचता हूँ तो आदमी के बचपने पर तरस आ जाता है. लगता है अभी कल ही तो पैदा हुआ है आदमी....
खैर आदमी की स्मृति ज़रूर पुरातन है. अपनी स्मृतियों मे आदमी आग को अलग अलग रूपों में सँजोये हुए है. रमेशचन्द्रशाह बता रहे थे कि ऑस्ट्रेलिया के मूल निवासी बाक़यदा आग का सन्धान करते हैं . और यह अनुष्ठान वे लोग नृत्य के रूप में पर्फॉर्म करते थे. कवि अग्निशेखर ने बताया कि काश्मीर मे मान्यता है कि मकर् संक्रांति की रात को आकाश से एक चिंगारी गिरती है.... जिसे लोग अपनी काँगड़ी मे सहेज रखते हैं . इस दिन वहाँ अग्निदान की प्रथा भी है . उन के अनुसार सूर्यपूजा भी इसी पुरातन परम्परा का अंग है. एक समय में मुलतान के बाद काश्मीर सूर्यपूजकों का बड़ा केन्द्र था. वहाँ इस कल्ट के अवशेष खण्डहरों, रिवाज़ों , आदि के रूप मे मौजूद हैं.
हिमालय के भीतरी हिस्सों में आग से जुड़े अनेक अनुष्ठान और उत्सव हैं. हमारा खोगला भी उन्ही मे से एक है.
मैं चाह रहा था कि इस बार मशालों के इस त्यौहार की कुछ ताज़ी तस्वीरें यहाँ पोस्ट करूँ. लेकिन हाल ही में हुई भारी बरफबारी के कारण इस खोगला पर मैं गाँव नहीं जा पाऊँगा. क्यों कि पिछले चार दिनों से रास्ते बन्द हैं. आज आकाश एक दम निम्मळ है.सूरज अपनी पूरी ताक़त से च्मक रहा है. लेकिन उस की कुल ऊष्मा का एक खरबवाँ हिस्सा भी शायद ही यहाँ पहुँच पा रहा हो. हेलिकॉप्टर ने चार चक्कर लगाएं हैं.... स्तींगरी –भूंतर—स्तींगरी....... हर बार बाहर निकल कर एक हसरत भरी निगाह से उसे देखलेता हूँ. मैं पैसे खर्च कर के कुल्लू जा सकता हूँ, लेकिन यहाँ से फक़त 10 किलोमीटर दूर अपने पुरखों के गाँव जा कर यह आग का उत्सव नहीं मना सकता.
गाँव से अभी अभी भाई का फोन आया है. उन्हों ने पवित्र शुर की लकड़ियाँ चीर कर ब्यूँस की लचीली टहनियों से हाल्डा बाँधना शुरू कर दिया है. मेरे नाम से भी एक हाल्डा बाँधा जाएगा. शाम ढलते ही हम सामने वाले पर्वत पर सिद्ध घण्टा पा के साधना स्थल पर नज़र टिकाए रहें गे. ज्यों ही लामा जी अपना हाल्डा देव प्राँगण मे निकालेंगे, हम भी चूल्हे मे अपना हाल्डा सुलगाएंगे और शोर मचाते हुए गाँव के बाहर ले जाएंगे. शुर(जुनिपर), जलती हुई घी और तैल की सौंधी महक मेरे चारों ओर फैलने लगी है. दिन भर मारचू तले गए हैं. भाभी ने आज बासमती पकाई है और दूसरे कूकर मे गोश्त उबल रहा है. दादी ने अपने नक्काशी दार सन्दूक से ऊनी जुराबों जोड़ा निकाला है और रात की मशाल यात्रा के लिए मुझे गिफ्ट किया है. सलेटी जुराबों में से एक सूखा हुआ सुनहला गेंदा झाँक रहा है. इस उपहार से फिनायल की गोलियों की तीखी गन्ध निकल रही है. जो वे ऊनी कपड़ों की हिफाज़त के लिए सन्दूकची मे डाले रखतीं हैं. दादी की गाँठदार उँगलियाँ इस बार कुछ ज़्यादा ही ठण्डी लग रहीं हैं. उन्हे दमा की शिकायत थी. इस बार मैंने उन की दवा की खुराक़ भिजवा दी थी क्या? “दादी को देसी वैद की दवा ही ज़्यादा कर के शूट करती है.” दुम्का नौकर देबाशीष किस्कू ने कहा था...... त्सेरिङ वैद को फोन लगाऊँ ?
दफ्तर का फोन चीख चीख कर चुप हो जा रहा है. फिर- फिर बज कर चुप हो जा रहा है. शिमला वाले 20 सूत्री कार्यक्रम की त्रैमासिक रिपोर्ट माँग रहे हैं. ऐसी की तैसी तुम्हारी और तुम्हारे वाहियात कार्यक्रमों की.
आह गाँव !

6 comments:

  1. जानकारी से भरी पोस्ट के लिए शुक्रिया

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  2. gaanv to nahin , lekin maa bahut yaad aati hai ... chhuti lun na lun kee kashmakas mein waqt chala jaata hai

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  3. "is khogla par gaon nhi jaa paaunga".......padha.........aag ko bachaye rakhna..........kabhi maine is tarah kyun nahi socha....pehle hairat phir pida phir dikkaton,pareshaniyon ka ahsaas
    oh!jo kabhi barf ke registan mein kisi akele ghar mein aag khatam ho jaati to?
    bahut achha laga padh kar ajeeb se ahsaas ke saath kuch gehre chhoo gaya

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  4. असे मरदे द्याड़ी खेले हल्ला हो हो हो !!!!
    तुसे केल्ङ्ग बेठे @#$$ खाए हल्ला हो हो हो !!!!

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  5. छोटी सी पोस्ट में बहुत कुछ ऐसा है जो संजोने लायक है. आपने बहुत सी सुन्दर जानकारी दी.
    अच्छा लगा
    बढ़िया पोस्ट
    आभार

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  6. हिमालय की आग दादी मां की संदूक में यूं ही सुलगती रहे..फलती फूलती रहे..

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