पिछली पोस्ट मे मैंने कुल्लू की कवि ,रंगकर्मी उरसेमलता का ज़िक़्र किया था. उरसेम कुल्लू के राजकीय महाविद्य़ालय मे पढ़ातीं हैं. बहस नाट्य एवं कला मंच नाम से इन का ग्रुप आज की ज्वलंत सामजिक समस्याओं पर आम जन के बीच और दूरस्थ गाँवों मे जाकर जागरूकता फैलाने का काम करता है. इस ग्रूप ने 2004 मे पहली बार कुल्लू मे नुक्कड़ नाटक इंट्रोड्यूस किया था. जो आज यहाँ एक लोक प्रिय विधा बन चुकी है. साम्प्रदायिकता, पर्यावरण, बाज़ारवाद, नारी सशक्तिकरण , इन के मुख्य सरोकारों में शामिल हैं। पौधारोपण इन की मुख्य गतिविधि है। प्रत्येक ग्रूप मेंबर के जन्मदिन, एनिवर्सरी, विवाह, आदि के मौके पर ये अनिवार्यरूप से पौधारोपण करते हैं, तथा उपहार के रूप मे पौधे ही प्रेज़ेंट करते हैं. उरसेम के सरोकार उन की कविताओं में भी पूरी शिद्दत से आते हैं ........
लोहड़ी तथा मकर संक्रांति की शुभकामनाओं के साथ उन की दो कविताएं प्रस्तुत कर रहा हूँ:
इस इकलौती धरती पर
हमें दु:ख है
कि हमने जो कुछ देखा होते हुए
चेताया नहीं खुद को
बरसो तकते रहे
महलों में सजते देवदारों को देखते
सराहते रहे।
कब्रों में सोये देवदार
पुकारते तो रहे होंगे ज़रूर
कहां सुन पाए हम वो कातर पुकार ?
हमें तो दिखी चमकती देह देवदारों की
शवों के खरीददारों के ´टेस्ट´ की दाद देते रहे हम
जो मौत के सौदागर ही तो थे
सारी कायनात के लिए।
फिर भी
कैसे निरपेक्ष बने रहे हम
ये सोचे बगैर
कि
एक ही धरती तो थी
देवदारों के लिए
और
देवदार
इस इकलौती धरती पर
हमारे लिए।
बोतल में पानी
क्या सोचा होगा
किसी पहाड़ी ने आधी सदी पूर्व
कि 21वीं सदी के कनॉट प्लेस से
जब गुज़रेगा वह प्यासा पहाड़ी आदमी
लुटा-पिटा
ठगा सा
प्यास लगने पर
धर दिया जाएगा उसके हाथों में जब
बन्द बोतल में कैद,
चमचमाता पहाड़ी चश्में का पानी
और कहेगा वह लौटकर पहाड़ों से
कि कनॉट प्लेस में
उतर आया था उस रोज़
अपने रायसन के पानी का चश्मा
चश्मा बहता रहा था
देर रात तक दिल्ली की सड़कों पे।
चश्मे का मीठा पहाड़ी शोर
कोलाहल में बदल गया था उस रोज़
क्या कहूँ दोस्त
कैसा लगता है
जब अपने रायसन का पानी
क्नॉट प्लेस में कीमत चुकाकर पीना पड़ता है
प्यास बुझती नहीं
बढ़ जाती है बेतरह
तमाम पानी पी चुकने के बाद भी
उरसेम लता
राजकीय महाविद्यालय कुल्लू
हिमाचल प्रदेश 94181-18581
लोहड़ी तथा मकर संक्रांति की शुभकामनाओं के साथ उन की दो कविताएं प्रस्तुत कर रहा हूँ:
इस इकलौती धरती पर
हमें दु:ख है
कि हमने जो कुछ देखा होते हुए
चेताया नहीं खुद को
बरसो तकते रहे
महलों में सजते देवदारों को देखते
सराहते रहे।
कब्रों में सोये देवदार
पुकारते तो रहे होंगे ज़रूर
कहां सुन पाए हम वो कातर पुकार ?
हमें तो दिखी चमकती देह देवदारों की
शवों के खरीददारों के ´टेस्ट´ की दाद देते रहे हम
जो मौत के सौदागर ही तो थे
सारी कायनात के लिए।
फिर भी
कैसे निरपेक्ष बने रहे हम
ये सोचे बगैर
कि
एक ही धरती तो थी
देवदारों के लिए
और
देवदार
इस इकलौती धरती पर
हमारे लिए।
बोतल में पानी
क्या सोचा होगा
किसी पहाड़ी ने आधी सदी पूर्व
कि 21वीं सदी के कनॉट प्लेस से
जब गुज़रेगा वह प्यासा पहाड़ी आदमी
लुटा-पिटा
ठगा सा
प्यास लगने पर
धर दिया जाएगा उसके हाथों में जब
बन्द बोतल में कैद,
चमचमाता पहाड़ी चश्में का पानी
और कहेगा वह लौटकर पहाड़ों से
कि कनॉट प्लेस में
उतर आया था उस रोज़
अपने रायसन के पानी का चश्मा
चश्मा बहता रहा था
देर रात तक दिल्ली की सड़कों पे।
चश्मे का मीठा पहाड़ी शोर
कोलाहल में बदल गया था उस रोज़
क्या कहूँ दोस्त
कैसा लगता है
जब अपने रायसन का पानी
क्नॉट प्लेस में कीमत चुकाकर पीना पड़ता है
प्यास बुझती नहीं
बढ़ जाती है बेतरह
तमाम पानी पी चुकने के बाद भी
उरसेम लता
राजकीय महाविद्यालय कुल्लू
हिमाचल प्रदेश 94181-18581
उरसेम जी कि कविता पढवाने ले लिए धन्यवाद ,,, यथार्थ से जुडी रचनाये ,,
ReplyDeletewell said mam ..... really.."maut k saoudagar hi to the..."
ReplyDeleteउरसेम की यह कविताएँ जीवन के गहरे अनुभवों से उपजी कविताएँ हैं। यहाँ आधुनिकता के नाम पर स्थितियों के सहज स्वीकार के प्रति विरोध का भाव है जो यथास्तितिवादी मनुष्य को झकझोरने का माद्दा रखती हैं ।
ReplyDeleteदोनों कवितायें हैरान कर गयीं...अपनी बुनावाट और बिम्बों से। खासकर रायसेन के चश्मे से किया गया कटाक्ष तो अद्भुत बन पड़ा है। शुक्रिया अजय भाई, उरसेम जी से परिचय करवाने का....
ReplyDeleteहिमाचल भी अपनी गोद में कैसे-कैसे अद्भुत कवियों को छुपाये हुये है!
... bhaavpoorn rachanaayen !!
ReplyDeletefirst iwould like to thanks to mr Ajay kumar...jinoneah hame ek advut kavi se ruburu karaya....jise ke tehat hume devdar ki bhavnao ko ehsas hua...tabhi to ek ache kavi aur ek insaan {jisme samaj hai)bo hai filling ko jaan sakta....es kavita ko padkar sacmuch ek advut ehasas hua...so at last thnks mam...ur exstudent sangbu
ReplyDeleteचश्मा बहता रहे अच्छी कविता का!
ReplyDeleteThe second one is a real gem .Its sharp edge pierces the heart and it haunts the reader long after !
ReplyDeleteachchhi kavitain hai bhai, prastuti ke liye aabhar aur rachnakar ke liye shubhkamnain.
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