Monday, May 30, 2011
कविता के रहस्य को मिल गया शांति का नोबेल पुरस्कार
डॉक्टर राम मनोहर लोहिया भारत के उन चन्द विजनरी नेताओं मे से थे जो हिमालय और तिब्बत के मसलेको हिन्दुस्तानी विदेश नीति का एक वाईटल घटक मानते थे. अन्य महत्व पूर्ण नीतियों के साथ साथ तिब्बत औरहिमालय संबंधी मामलों मे प्रधान मंत्री नेहरू रवेय्ये की इन्हो ने जम कर आलोचना की थी. गिरिराज किशोर द्वारासंपादित ‘अकार’ पत्रिका का अंक 28 लोहिया जी पर केन्द्रित है. इस मे लोहिया जी पर नामवर सिंह, राजेन्द्र यादव, एम एफ हुसैन, कृष्ण नाथ, यू आर अनंतमूर्ति, स्वामी अग्निवेश जैसे हस्तियों के रोचक आलेख हैं. साथ मे लोहिया जी द्वारा लोकसभा मे दिए गए दो महत्वपूर्ण व्याख्यान भी संकलित हैं. इन व्याख्यानों से उन कीविश्वदृष्टि का सहज ही पता तो चल ही जाता है , साथ मे तिब्बत के बारे उन की गहन राजनीतिक समझ का भीअन्दाज़ा लग जाता है. कुछ महत्वपूर्ण अंश प्रस्तुत कर रहा हूँ:
मैं साम्राज्यवादी भाषा बोल गया !
तिब्बत के मामले मे मुझे कोई लम्बी ऐतिहासिक बहस नहीं करनी है . मैं समझता हूँ कि तिब्बत आज़ाद होना चाहिए, आज़ाद रहा है. इतिहास में ऐसा भी वक़्त भी था , जब तिब्बत ने चीन पर राज किया . जो लोग इतिहास की सनदें निकाल कर भविष्य की दुनिया का निर्माण करना चाहते हैं उन से तो मैं कहूँगा कि वह सनद निकालो जिसमें तिब्बत ने चीन पर राज किया था, और चीन पर तिब्बत का राज कायम कर दो. सनद से क्या मतलब ? असलियत देखो. हाँ सनद के मामले में मैं भी मेकमोहन लकीर को साम्राज्यशाही की लकीर मानता हूँ. जो चीन वाले कहते हैं वही मेरी भी राय है . यह बात दूसरी है कि उस बात के नतीजे वे कुछ और निकालते हैं और मैं कुछ और . इस लकीर का नाम ही कैसा है? मैकमोहन साम्राज्यशाही नाम है.वैसे इस से बहुत ज़्यादा नतीजे नही निकालने चाहिए. क्योंकि दुनिया की सबसे ऊँची चोटी का नाम है सगरमाथा . यह कोई नाम मैं नहीं दे रहा हूँ. नेपाल में सब लोग उस चोटी का नाम सगरमाथा कहते हैं. लेकिन पिछले तीन सौ बर्षॉं में जो शासक लोग रहे हैं, उन्होंने उसका नाम एवेरेस्ट मशहूर कर डाला. असली नाम , पुराना नाम, जनता का नाम , नेपाल के लोगों का नाम है सगरमाथा. लेकिन दुनिया भर में पढे लिखे लोगों में वह माऊँट एवेरेस्ट के नाम से मशहूर है. अगर कोई कह दे कि माऊँट एवरेस्ट नाम है , इस लिए वह चोटी ही नहीं है. तब तो वह गलत बात होगी. असल बात यह है कि सगरमाथा का नाम गलती से माऊँट एवरेस्ट हो गया. क्यों कि हम काले, पीले, भूरे मुँह वाले लोग गुलाम हो गए, अंग़्रेज़ का नाम आ गया. मैक मोहन लाईन के पीछे जो ज़मीन जा रही है वह साम्राज्यशाही नहीं है. मैक़मोहन लाईन को साम्राज्यशाही मानना तो इस सफाई के साथ-साथ. अधिकतर उस का जो हिस्सा है, वह ठीक ही है. लेकिन अब जहाँ मैं उस में तबदीली करना चाहूँगा, वह तिब्बत का है. तिब्बत चीन का क्यों रहे? तिब्बत के लोग स्वतंत्र क्यों न हो? और अगर नाता रिश्ता रखना है तो साफ सबूत है. , इस लिए भी है और आजकल की असलियत भी है कि पश्चिमी तिब्बत जिस में मानसरोवर पड़ता है , उस का सम्बन्ध हिन्दुस्तान से कहीं ज़्यादा है, बनिस्बत चीन के . तिब्बत की लिपि , तिब्बत की भाषा का प्रभाव , तिब्बती रहन सहन के ढंग और सोचने के ढंग पर हिन्दुस्तान का , चीन के मुक़ाबले में ज़्यादा असर रहा है. मैं कुछ गलत कह गया. किसी देश का किसी देश पर अगर असर रहा भी हो तो उस का ज़िक़्र नहीं करना चाहिए. यह साम्राज्यशाही की भाषा है, अपने देश को बढ़ाने चढ़ाने भी की भाषा है, दो देशों के पारस्परिक रिश्तों को बिगाड़ने की भाषा भी है. इसे यूँ कहिए, कि लिपि, भाषा, धर्म , रहन सहन, जीवन के ढंग, सोचने के तरीक़ों के मामले में हिनुस्तान और तिब्बत में लेना देना कहीं ज़्यादा रहा है. यह ज़्यादा सही है.
(जारी)
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