डायरी
केलंग 26.9.2012 :
शाम
साढ़े छह बजे दफ्तर से निकला तो झुट्पुटा हो रहा है. मार्केट खाली खाली है . शायद
आज सफाई हुई है निखरा हुआ सा लग रहा है. दिमाग बेहद थका हुआ है. अब घर पहुँच कर वही रुटीन
–.. उफ्फ ! आज इस रुटीन से बाहर रहना है. कुछ
मन की बात करने का मन है. यहाँ मेरे मन की बात करने वाला कौन है ?
**********************************************************
टाशी
देलेग’ज़ के सामने से गुज़रते हुए अजय लाहुली मिला.
“बड़े
भाई, प्रणाम ! विनोद भावुक आया है”
मैं
खुश हुआ – “ अच्छा ? तो फिर बैठते हैं कहीं ! अभी तो ज़रा क्वार्टर जा रहा हूँ , मुझे
कॉल करना , तुम्हारे पास समय हो तो........ .”
अजय लाहुली इन दिनो सक्रिय राजनीति मे है. विधान सभा चुनाव आने वाले हैं . बहुत व्यस्त रहता है. लेकिन उस ने कहा -- “पक्का भाई , टाईम तो निकालना पड़ेगा . बहुत दिन हो गए साथ बैठे हुए" . हाथ हिलाते हुए वह चला गया.
अजय लाहुली इन दिनो सक्रिय राजनीति मे है. विधान सभा चुनाव आने वाले हैं . बहुत व्यस्त रहता है. लेकिन उस ने कहा -- “पक्का भाई , टाईम तो निकालना पड़ेगा . बहुत दिन हो गए साथ बैठे हुए" . हाथ हिलाते हुए वह चला गया.
***********************************************************************
विनोद
भावुक से मेरी पहली मुलाक़ात तब हुई थी जब मण्डी मे इप्टा एक्टिविस्ट लवण ठाकुर
ने पहली कवि गोष्ठी आयोजित की . कविता पाठ के बाद विनोद मुझे आर्यन बेंग्लॉ की लॉबी मे युवा लेखकों के एक बड़े झुंड के साथ बैठा
हुआ मिला . जब उस ने मुझे थोड़ी देर वहाँ रुक कर बातें करने का आग्रह किया तो मैं टाल
न पाया. जब कि हमारी ‘प्रतिगोष्ठी’ अन्यत्र तय थी. इस आत्मीय ज़िद की वजह से मैने कुछ
पुराने मित्रों को नाराज़ कर दिया. लेकिन यहाँ
मैंने युवाओं को एक लम्बी कविता सुनाई और और उन की बातें सुनीं . उन के स्वप्नों और
उन की आशंकाओं में झाँकने का प्रयास किया. मुझे अद्भुत रौशनी मिली और अपार ऊर्जा !
तब से यह भावुक कवि मेरे जेहन में बैठ गया था .
****************** **************************************************
होटल
स्नो लेंड के
रेस्त्राँ मे दो और लोग हैं . एक का परिचय विनोद ने हिमाचल के पहले ‘नीलधारी’ पत्रकार के रूप मे किया . मैं चौंका, लेकिन कोई अतिरिक्त
उत्सुकता ज़ाहिर नही की. मुझे इस साहित्यिक गपशप को सेक्टेरियन विमर्श नही बनाना
था. क्यों कि अजय लाहुली जो कि भाजपा के ज़िला
सचिव हैं , और तब से अजय बौद्ध भी हो गए हैं ; की उपस्थिति मे कोई भी साधारण
सिटिंग अनिवार्य रूप से कम्युनल रंग ले लेती है. . विनोद के हाथ मे खुली हुई दो बोतलें हैं
.... अजेय भाई मेरे पास दोनो केटेगरियाँ हैं. आप क्या पसन्द करेंगे प्रीमियम , या कवियों वाली ? कवि तो कवियों वाली ही पियेंगे .
प्रीमियम अजय लाहुली पी लेगा . मैने जान बूझ कर अजय बौद्ध नहीं कहा ताकि अजय सतर्क रहे. पता नही वह ( खुद मैं भी) कितना सतर्क रह पाया.
************************************ *********************************************
विनोद
पेशे से पत्रकार
है , और एक गम्भीर लोक कवि के रूप मे उस की
पहचान है. उस के पास काँगड़ा जनपद की भाषा में
सुन्दर कविताएं हैं .हिन्दी मे वह केवल पत्रकारिता करता है. कविताएं अपनी भाषा मे ही
करता है, और ज़्यादातर रोमेंटिक . काँगड़ा की तरफ चुस्त नीतिपरक मुहावरेदार
टप्पे, और गीत कहने का चलन अभी तक जारी है.कोई
भी बाहरी व्यक्ति यहाँ पंजाबी फोक और सूफी कविता की भीनी भीनी खुश्बू
सूँघ सकता है. ज़ाहिर है विनोद पर उस शैली की
गहरी छाया है.हम ने लोक कविता और रूमानी शायरी पर लम्बी चर्चा की. चर्चा क्या की, विनोद
धाराप्रवाह बोलता रहा और मैं बीच बीच में उकसाऊ टाईप के सूत्र छेडता रहा. इस से पुरानी
यादें रीक्लेक्ट हो आतीं ! सच पूछो तो एक तरह से खुद को अपडेट भी कर रहा था मैं. विनोद
ने अपने कवि बनने और लेखन का चस्का लगने के शुरुआती क़िस्से सुनाए. किशोरावस्था में कैसे कैसे उस के अफेयर्ज़ थे और क्या उस की अड्डेबाज़ियाँ थीं ! आदमी कितने अलग अलग कारणों से कवि बनता है ! मैं
तो इस लिए कवि बना था कि मेरा कोई अफेयर ही नहीं था. आज भी मलाल है, काश होता ! . मैने
यौवन के उस अनूठे अनुभव को बेतरह मिस कर दिया था
! और न ही कोई साहित्यिक अड्डेबाज़ियाँ कीं. मेरे मन मे शायद कवि बनने का विचार
ही न था. फिर भी हम दोनो की जान पहचान फक़त और फक़त कविता के कारण थी, यह अजीब बात थी
.
************************************************************************************
......... जारी .
दिलचस्प!
ReplyDeleteरोचक ...अगली कड़ी का इंतज़ार
ReplyDeleteI´m not an actor I´m not a star
ReplyDeleteAnd I don´t even have my own car
But I´m hoping so much you´ll stay
That you will love me anyway
iz a one of my fav....pnt...MLTR
ReplyDeleteऔर कहिये भाई मजा आ रहा है.....मन पूरी तरह रम गया.
ReplyDeleteब्लाग की यह खूबी है कि उसने नयी नयी विधाओं को जन्म दिया है। बेशक आप इसे डायरी के रूप में कह रहे हैं। हो सकता है आपने इसे डायरी में दर्ज किया हो पहले पहले, शायद इसी नाते। पर यह कुछ ऎसा है जो अभी तक संग्या प्राप्त विधाओं से कुछ अलहदा नजर आ रहा है। सुंदर है।
ReplyDeleteसुन्दर! रोचक!
ReplyDeleteअच्छा है...साफगोई झलकती है....अगली किस्त...प्रतीक्षा
ReplyDelete