इंग्लैंड की महारानी विक्टोरिया
के राज में किसी जवान लड़की के सामने अपनी पैंट दिखाना सख्त मना था।
आजकल भी कुछ बातें ऐसी हैं जिन्हें
खुले रूप में कहना और पेश करना अच्छा नहीं समझा जाता है।
पूंजीवाद को बाजार का लुभावना चेहरा और नाम
दिया जाता है।
उपनिवेशवाद को ग्लोबलाइजेशन (वैश्वीकरण) कहा जाता है।
विकसित देशों का उपनिवेशवाद
झेलते देशों को विकासशील कहा जाता है।
यह वैसे ही है जैसे कि बौने रह गए लोगों को बच्चा कहा जाए।
सिर्फ़ अपने बारे में सोचने को अवसरवाद नहीं बल्कि व्यावहारिकता कहा जाता है। धोखेबाजी को समय का तकाजा बताया जाता
है।
गरीबों को कम आय वर्ग के लोग कहा जाता है।
गैरबराबरी बढ़ाने वाली शिक्षा व्यवस्था
जब गरीब बच्चों को
शिक्षा
से बेदखल करती है तो इसे उनका पढ़ाई-लिखाई छोड़ना बता दिया जाता है।
मजदूरों को बिना किसी कारण और मुआवजे के काम
से बेदखल किये जाने को श्रम बाजार का उदारीकरण बताया जाता है।
सरकारी दस्तावेजों की भाषा औरतों के अधिकार
को अल्पसंख्यक अधिकारों में
गिनती है मानो आदमियों का आधा हिस्सा ही सबकुछ हो।
तानाशाही को अखबारों में सामान्य उठापटक की तरह पेश
किया जाता है।
व्यवस्था जब लोगों को यातनाएं देती है तो इसे
पुलिसिया प्रक्रिया की गलती या शारीरिक- मनोवैज्ञानिक
दबाव बनाने की कोशिश बता दिया जाता है।
जब धनी परिवार का कोई चोर पकड़ा जाता है तो
इसे चोरी नहीं
बल्कि एक बुरी लत बताया जाता है।
भ्रष्ट नेता जब जनता का पैसा हड़प जाते हैं
तो इस उनकी अवैध कमाई बताया जाता है।
मोटरकारों से सड़क पर बरसती मौत को दुर्घटना
कहा जाता है।
नेत्रहीनों को दृष्टिहीन कहा जाता है। काले
लोगों को अश्वेत कहा जाता है।
कैंसर और एड्स न कहकर लंबी
और कष्टदायी बीमारी कहा जाता है। हृदयाघात को अचानक जोर से पैदा होने
वाला दर्द बताया जाता है।
कभी भी लोगों का मार दिया जाना नहीं बताया
जाता, वे तो गायब बताए जाते हैं। मरने वाले उन इंसानों को भी नहीं गिना जाता जिनकी हत्या सेना की कार्यवार्ईयों में होती है।
युद्ध में मारे गए लोग युद्ध से हुए नुकसान
में गिन लिए जाते हैं। जो आम जनता इन युद्धों का शिकार
होती है, वह तो महज टाले
जा सकने वाली मौतें होती है।
1995 में फ्रांस ने दक्षिणी प्रशांत महासागर
में परमाणु विस्फोट किये। तब न्यूजीलैंड में फ्रांस के राजदूत ने आलोचनाओं को खारिज करते हुए कहा ‘‘मुझे यह बम शब्द अच्छा नहीं लगता, ये फटने वाले
कुछ उपकरण ही तो हैं।’’
कोलंबिया में सुरक्षा के नाम पर लोगों की हत्या
करने वाले सैन्य बलों का नाम ‘सहअस्तित्व’ था।
चिली की तानाशाह सरकार द्वारा चलाए गए यातना
शिविरों में से एक का नाम ‘सम्मान’
था। उरुग्वे में तानाशाही की सबसे बड़ी जेल को ‘स्वतंत्रता’
का नाम दिया गया था।
मेक्सिको के चियापास क्षेत्र के आक्तेआल
में प्रार्थना कर रहे पैंतालिस किसानों, ज्यादातर महिलाएं
और बच्चे, की हत्या करने वाले अर्धसैन्य बल का नाम ‘शांति और न्याय’ था। उन सभी
को पीठ में गोली मारी गई थी।
बड़ी झांसेबाज भाषा है!
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