गत दिनों तिब्बती बौद्ध धर्म के अवतारी गुरु एवम् तिब्बत की निर्वासित सरकार के राजा महामहिम दलाई लामा जी श्री कालचक्रतंत्राभिषेक के सिलसिले मे काज़ा आए. काज़ा स्पिति उपमंडल का मुख्यालय है.पश्चिमी सैलानियों की भाषा में स्पिति और लद्दाख को "मिनि तिब्बत" कहा जाता है क्यों कि इन भारतीय हिमालयी पठारों और तिब्बत में गहरा भू-सांस्कृतिक साम्य है. महामहिम को जब भी अपने देश की याद आती है, इधर का रुख कर लेते हैं. यहां की भोली भाली जनजातियों को वे टूट कर प्यार करते हैं. मानो उन की अपनी ही प्रजा हो.
इस बार अपने प्रवचनों मे महामहिम ने बड़ी अच्छी बातें की......
मसलन ,
अगला दलाई लामा लोकतांत्रिक तरीक़े से 'भी' चुना जा सकता है.वो एक स्त्री 'भी' हो सकती है.
इन आप्त - उदात्त वचनों को सुनने मेरे तमाम यार दोस्त वहां गये थे. मैं न जा सका. क्यों कि मुझे एक कविता मुझे याद आने लगी थी. सन 1994 मे जिस्पा (लाहुल) में हुए ऐसे ही आयोजन की तय्यारियों के दौरान लिखी गई ये कविता निकट भविष्य मे अवतार लेने वाले मैत्रेय बुद्ध को सम्बोधित थी.
मैत्रेय, क्या तुम राजा की तरह आओगे?
(दलाई लामा के जिस्पा आने पर)
मैंने भी सुना था मैत्रेय, तुम आने वाले हो
मैं भी आँखे बिछाए रहता था
आँगन में धूप तापता
फाट पे डंगर हांकता
खेत पे हल जोतता
लुगड़ी पीता, मेलों में ´ठुच्च` नाचता -
हर शाम
सोते बच्चे को तेरे आने की कहानियाँ सुनाता।
पर वह बच्चा आज क्या खबर लाया है
क्या तो राजसी इन्तज़ाम हो रहा है तुम्हारे लिए
पक्की चार दीवारियाँ
भारी भरकम दरवाज़े
बढ़िया लोहा
बढ़िया लकड़ी
बढ़िया सीमेंट !
खूब भव्य होना चाहिए सभागार
सोना , चांदी, मूंगा और फिरोज़ा!
महल जैसा-
क्या तुम्हें इन तैयारियों की खबर है मैत्रेय ?
और उस बच्चे को क्या जवाब दूँ
जो कहता है , बाबा
इस उजड्ड गाँव में क्यों आने लगा मैत्रेय ?
वह तो धूमता होगा जहाज़ों में
ताईवान , अमेरिका, स्विट्ज़रलैंड
इतना बड़ा आदमी ........
हमें भी निकल लेना चाहिए बाबा, अपने मैत्रेय की खोज में सिंगापुर।
मैत्रेय, क्या तुम सचमुच आओगे?
अगर आओगे
तो क्या राजा की तरह
घोड़े पे सवार हो के लावलश्कर के साथ्
कि एक गरीब भिक्खु की तरह
गाँव की मेरी झोंपड़ी में?
रारिक, जुलाई 1993
तुम्हारे ब्लाग का रंग भी किसी गोंपा की ही प्रभाव दे रहा है. मैत्रेय झोंपड़ी में आए तो बीड़ी भी पी लेंगे. चाय और लुगड़ी भी. भइया कई बार अकेले ही बीड़ी पीनी पड़ती है. गोदो का इंतजार बना रहता है.
ReplyDeleteइतनी भी क्या जल्दी थी बड़े भाई, अभी तो एडिटिंग चल रही है.
ReplyDeleteअनाड़ियों को आरक्षण न सही टाईम तो दीजिए. दलाई लामा पर पूरा लेख डालना चाह रहा था, जो ज्ञान जी के कहने पर पहल के लिए तय्यार किया था. काफी सारा टाईप भी कर लिया था .अनाड़ी हाथों ने डिलीट कर दिया. हाथ का लिखा है अभी मेरे पास . किसी और संदर्भ में पोस्ट करूंगा.
बहर्हाल, आभार.
और प्रसंग सहित पुनर्पाठ करें. रही रंग की बात, ये " थेर " रंग है. महायानी नही. लो, फिर से सेक्टेरियन हो गया मैं.
vahut ache hai aap ke spiti me Char Din, din tow teek hai raat ko kya kiya,? aap ka yaak ko chuna or aap ka yeh aienak jach rahi hai, HERO lag rahe ho voh bhi ACTION FILM KA.
ReplyDeleteTHANX 4 sharing ur visit it is always gud to know the land & people , their living condition,culture,traditions,rituals,and chal kabadi really exciting.