- केलंग में पानी का यह रूप आप द्रष्टाओं को रोमांचक लग सकता है. लेकिन भोक्ताओं के लिए यह भयावह है ! यह नज़ारा अभी हाल ही के हिमपात के दिनों का है।जब पारा माईनस 7*c पर पहुँचा था . सोचिए, आने वाले कुछ दिनों में इसे माईनस 25* c तक उतर जाना है......
मेरी खिड्की से ( जून 2009)
रोह्तांग जोत, (सितम्बर 2009.) निःसर्ग की इस छटा का आनंद लेने देश के मैदानी इलाक़ों से प्रति वर्ष लाखों सैलानी यहाँ आते हैं. और इस स्वप्न लोक की अनूठी स्मृतियाँ लिए लौट जाते हैं. कौन सोच सकता है कि सर्दियों में पीर पंजाल शृंखला पर स्थित यह मनोरम दर्रा साक्षात मौत का रूप धारण कर लेता है.
बस हल्का सा हिम पात और रोह्तांग के दोनों ओर वाहनों की ऐसी लम्बी कतारें लग जाती हैं. अच्छी धूप लगी हो तो इस से रोमांटिक कोई जगह नही रोह्तांग पर; लेकिन तूफान चल पड़े, तो ईश्वर ही मालिक है इन वाहनों और इन मे बैठी सवारी का।यह खूनी राहनी नाला का क्षेत्र है जो हर साल मानव बलि ले लेता है. कुछ दिन पहले ठीक इसी स्थान पर मौत ने अपना ताण्डव खेला था . सीज़न खत्म कर अपने देस लौटते झारखण्ड के मज़दूरों का पूरा समूह यहाँ तूफान मे फँस गया था. 60 लोगों की जान पुलिस रेस्क्यू टीम ने बचा ली. 9 लाशें मिलीं , बाक़ी सब लापता. मई जून मे बर्फ पिघलने पर ही पता लग सकेगा कि मृतकों की उनकी सही सही संख्या क्या थी।
बीसवीं सदी के आरम्भ मे इसी जगह तक़रीबन डेढ़् सौ सिराजी (कुल्लू की बंजार घाटी के निवासी) मज़दूर बर्फीली तूफान का ग्रास बन गए थे. ये लोग चन्द्र भागा संगम पर ऐतिहासिक तान्दी पुल बना कर लौट रहे थे. प्रत्यक्ष दर्शियों के हवाले से मेरे गाँव के बुज़ुर्ग बताते हैं कि इसी स्थान पर ये लोग अपनी औरतों, बच्चों, और खच्चरों के साथ भीषण शीत के चलते खड़े खडॆ ही जम गए थे. मेरे पास फोटो नहीं है, लेकिन मैं उस भयानक दृश्य की कल्पना कर सकता हूँ....
- अभी इस वक़्त जब मैं यह पोस्ट डाल रहा हूँ, रोह्तांग पर भारी बरफबारी हो रही है. अभी अभी मेरी बात गाँव के एक टैक्सी चालक प्रदीप से हुई थी. वह दोपहर अढ़ाई बजे रोह्तांग टॉप से वापस लौट आया। उस वक़्त तक वहाँ सड़क पर चार इंच बरफ जम चुकी थी . कोहरा घना था. उसे आगे जाने की हिम्मत नही हुई. उस पार पहुँच जाता तो सर्दियाँ मनाली में लगाता, कुछ धन जोड़ पाता खुद की गाड़ी खरीदने के लिए...लेकिन उस ने सोचा , जान है तो जहान है. पैसा फिर बन जाएगा. कई टेक्सियाँ खतरा उठा कर उस पार निकल गई हैं..... पता नहीकिस हाल में हैं क्रॉस हो गए, या फँसे हैं. एक टाटा सुमो राक्षसी ढाँक पर रुका था । एक्सेल टूट गया था. अन्दर कुछ मरीज़ और बुज़ुर्ग जन थे. गाड़ी 4बाई 4 थी, तो प्रदीप ने सोचा कि यह किसी न किसी तरह निकल ही जाएगी. पहले खुद को सेफ जगह पहुँचा दूँ। उस जगह मोबाएल पर सिग्नल भी नहीं था । रोह तांग पर अपनी जान सब से प्यारी होती है. जो खुद को न बचा सका, मर जाता है. पता नहीं उन्हें कुछ मदद मिली कि नहीं. लेकिन प्रदीप केलंग मे अपने मामा के क्वार्टर मे तंदूर सेक रहा है........ ज़िन्दा !
कमाल की फोटो हैं अजेय ! ख़ास कर नल के मुहाने से लटक रहे जमे हुए पानी की. जीवन भी ऐसा अजब होता है .....सम्मोहित हूँ. कभी उत्तराखंड आओ. देहरा में विजय और नैनीताल में मैं - ये दो छोर तो हैं ही....विजय तो उधर आ भी जायेंगे पर मेरा फ़िलहाल मुमकिन नहीं...तुम ही आओ इधर.. इन तस्वीरों वाले मुलुक से ....
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ReplyDeleteकोई दसेक साल पहले जुलाई के अच्छे मौसम में सपत्नीक मनाली यात्रा में रोहतांग जाना हुआ था,हर समय लगता था आज गाड़ी साथ ले गिरेगी.वापसी में भांग पर समतल ज़मीन दिखी तो सांस आई थी.
ReplyDeleteसच में दूर देश के लोगों को ये चित्र रोमांचक ही लगेंगे.अदभुत.
हाँ ...सम्मोहित हूँ... यानी इस जमे हुए पानी से भी अपनी प्यास बुझा सकने वाले जीवन संघर्ष से सम्मोहित हूँ....कैसे चलता होगा वहाँ सब कुछ...
ReplyDeleteअजेय रोहतांग का जब यह हाल है तो मित्र जांसकर कैसा जम रहा होगा, इसकी तो मैं कल्पना भी नहीं कर पा रहा हूं। मुझे अपने सहयोगी कारगियाक गांव के नाम्बगिल का स्मरण हो रहा है जो कहता है कि सर्दियों में जांसकरी नाला पूरी तरह से जम जाता है- ऎसा कि घरों को बनाने के लिए लम्बी बल्लियां उसी वक्त जमी हुई नदी के रास्ते खींच कर लाई जाती हैं। मन है अजेय कभी ऎसी सर्दियों में रोहतांग पार का जीवन देख सकूं। शिरीष ने जो कहा वह एकदम ठीक कहा, निकल आओ कभी तुम भी।
ReplyDeleteभाई लोगो, कोई कार्यक्रम बने तो मुझ गरीब को भी याद कर लेना। बर्फ़ तो बहुत दूर की बात है मैनें तो दस सालों में पहाड़ों की शकल नहीं देखी।
ReplyDeleteअजेय भाई, और कहीं जाना हो न हो, आपके यहां ज़रूर होगा वो भी सर्दिंयों में… देखते हैं बर्फ़ कितनी भारी पड़ती है इस पचास किलो के आदमी पर।
विजय तो आते ही रहते हैं, आप लोग भी आईए, स्वागत है. सर्दियों में यहाँ पहुँचना कठिन है,महेन, लेकिन अस्म्भव नहीं. बरफ बड़ी अजीब बला है. उस के भार के बारे अब क्या बताऊँ, यह कविता लिखी थी बहुत पहले:
ReplyDeleteवह आता है
जैसे तितलियों का झुण्ड
विराजता है
जैसे सम्राट
और खिसक जाता है
जैसे चोर .
इस बला को समझना पड़ता है. इस से लड़ा नही जा सकता. इसे चुनौती नहीं दी जा सकती.
mai to samjha tha aap kullu aa gaye honge....... Blog dekha. nal ke jamte paani ko dekhkar sihran hui par anya chitra dekh kar jee chaha ki ek baar phir Keylong ho aayen. Nishant ki kavitayen bahut bahut achhi lagin jo aapke naam hain. aap dono ko badhai....... Ratnesh
ReplyDeleteआपके ई मेल से आपके ब्लॉग पर पहुंची. आपको शुक्रिया कहना चाहती हूँ. ये फोटो देख कर सिहरन हो रही है. आप लोग कितनी ऊँचाई पर जीते हैं अजय जी. आपके ब्लॉग से देश का एक नया रूप सामने आ रहा है. अब इस ब्लॉग को हमेशा देखूँगी.
ReplyDelete# रत्नेश, मुझे केलंग का वह स्कूल हॉल याद आ रहा है, जब पहली बार आप सब के सामने मुझे एक कवि के रूप मे पेश किया गया था.
ReplyDeleteआभार श्री सी आर बी ललित साहब का. उन की बदौलत आप सब हिमाचल के साहित्य कारों से आमने सामने परिचय हुआ. उस दिन मेरे रोमाँच की सीमा नहीं थी.मैं अभिभूत और विस्मय विमुग्ध था. एक बच्चे की तरह.
आज अपने भीतर झाँकता हूँ तो पाता हूँ कि उस बच्चे को तब से ही लगातार खोता गया हूँ. मैं उसे ज़िन्दा रखने के लिए साहित्य की दुनिया में आना चाहता था रत्नेश भाई, खोने के लिए नहीं. कहाँ भटक गया मैं?
.....और,कैसा है मेरा चण्डीगढ़ ?
# रागिनी, मुझे खुशी है कि आप अपने इस देश को समग्रता में देखने समझने की ख्वाहिश रखतीं हैं. भारत का यह दुर्भाग्य रहा है कि यहाँ हर छेदी लाल अपने पीलीभीत को ही भारत मानता है.
देश की ओर से आभार प्रकट करता हूँ. जुड़े रहॆं, भारत को एक देश बनाएं.
पहली बार यह ब्लॉग देखा और इसे देखना अच्छा लगा. ये सारी फोटो दरअसल एक विचार हैं, जिसे स्थान, समाज और सहन से समझा जायेगा. मेरी पकड़ में आया ये विचार- हिंदी में एक शब्द है इसके लिए -शायद - जिजीविषा .....किसी लेख में पढ़ी चंडीदास की लाइन याद आती है - सबार ऊपर मानूस सत्य तहार ऊपर नाईं ...और क्या कहूं.
ReplyDeleteस्वागत. आप ने संजीदगी से ये तस्वीरें देखीं. थेंक्स.
ReplyDeleteआप ने खूब अच्छा कहा .थोड़ा सा मैं भी कहूँ... जिजीविषा महज़ एक विचार नहीं है. वह प्राणी मात्र का प्राकृतिक इंस्टिंक्ट है.इस में मोटे तौर पर यह फर्क़ है कि विचार व्यक्तित्व का अर्जित हिस्सा है. अतः परिवर्तन शील.यानि उसे कपड़ों की तरह आल्टर किया जा सकता है. जैसे कल तक हम दोनो का एक दूसरे के प्रति जो विचार था, आज वही नही रहा. क्यों कि आज हम ने एक दूसरे के बारे कुछ और सूचनाएं अर्जित कर लीं. इस लिए विचार बदल लिए. जब कि जिजीविषा व्यक्तित्व का अविभाज्य हिस्सा है . वह बस है.बदलना तो दूर की बात , उस का आप कुछ भी नही कर सकते.ठीक वही है सब से ऊपर मानूस सत्य. जिस की पोटली बाँध कर के आप गंगा में नहीं फेंक सकते.
# अनुनाद मे रघुवीर सहाय वाली पोस्ट पर व्योमेश की कविता का तल्ख ज़ुबान द्वारा खुलासा.
ReplyDeleteप्रियवर , आप की तल्खी और शालीनता दोनों ही की क़द्र करता हूँ.इसी से आप से बात चीत कर के सुकून मिलता है. इन पर् सहमति - असहमति कैसी? और यह बार बार मुआफी माँग कर शर्मिन्दा न करें. आप की व्याख्या ध्यान से पढ़ रहा हूँ.दिलचस्प है. अभी पाँच सात पाठ और करूँगा कविता के साथ जोड़ कर. कहीं आप चीज़ों को ज़्यादा ही तो नहीं सिकोड़ गए मेरी समझ का लिहाज़ करते हुए?
2.हमें वैचारिक रूप से लद्दड़ और जड़ आदमी की ही सब से अधिक परवाह होनी चाहिए.क्यों कि वहाँ हमेशा कुछ बदलने सुधरने की उम्मीद रहती है. हाँ यदि आदमी सम्वेदना के स्तर पर लद्दड़ और जड़ हो जाए , उस की परवाह कर के कोई फायदा नहीं.
3. आप की हिन्दी माशाअल्लाह बडी नफीस और साफ सुथरी है. आप बेशक हिन्दी के आदमी नहीं होंगे,(मैं भी नहीं हूँ, आप हिन्दी से पूछ कर कंफर्म कर सकते हैं) पर हिन्दी आप की प्रेमिका लग रही है. (मेरी भी है.)आप से हिन्दी मे बतियाना अच्छा लग रहा है.
भाई, मेरे लिए लाहुल के विवरण सामान्य होते हुए भी आप के नज़र से देखना अलग अनुभूति दे रहा है। में सोच रहा हूँ कि आपके पास ऐसी बहुत सारी बातें हैं जो आपके ब्लॉग को ही रोचक नहीं बनाएगा बल्कि जानकारियों का नया पिटारा खोल कर रख देगा। शुभकामनाओं सहित ।
ReplyDeleteअजय भाई,
ReplyDeleteफोटोग्राफ्स और विवरण असामान्य है....आप की खिड़की का नज़ारा भी....और फोटो देना..ढेर सारे.....खूब क्लिक करना...और खूब लिखना......
thisishell said...
ReplyDeletechilly pic. the one with the frozen tap n nice post
Dec 22,2009
Kya shandaar pictures lagayi hai apne...khaskar ki apki khidaki se jo nazara dikhta hai wo to behad khubsurat hai...
ReplyDeleteab to man hone laga hai is sunder jagah aa ker use dekhne ka...