मैं इस आदमी को नहीं जानता था.अब जानने लगा हूँ । क्यों कि इस आदमी ने एक सनसनी खेज़ टिप्पणी दे डाली है। जानना भी क्या, प्राय: हम किसी लेखक को उस के लिखे हुए से ही जानते हैं। लेकिन कुछ को हम इतर कारणों से भी जानते हैं.... मसलन.... बहुत से नाम याद आते हैं। खैर सब को क्यों लपेटना। एक किसी राम शरण जोशी को तब से जानता हूँ जब हंस में विश्वास घात सीरीज़ के अंतर्गत उस ने आदिवासी स्त्रियों की पूरी क़ौम को इसी तरह गरिआया था। बस इसी तरह से विभूति नारायण राय को भी जानने लगा हूँ जब नया ज्ञानोदय के में सुपर बेवफाई विषेशांक में उस ने लेखक स्त्रियों की पूरी क़ौम को गरिआया है। अब मैं किसी स्टॉल पर यह नाम देखूँगा तो ज़ाहिर है, अतिरिक्त उत्सुकता से वे क़िताबें खरीदूँगा.
यह अच्छी बात है कि मुझ जैसे युवा लेखकों के लिए ये महान विभूतियाँ बहुत अच्छे टिप्स दे जा रहीं हैं। हिन्दी में पहचान बनाने का य् ही तरीक़ा है...... शर्म की बात तो यह है कि इस गंगा मे हाथ धोने के लिए हम सब उतर पड़े. देखिए खुद मैं भी. बेह्तर होता इस प्रकरण को नज़र अन्दाज़् कर हम अपनी ऊर्जा रचनात्मक कामो मे लगाते.
बदनाम भी जो हुए तो क्या नाम न होगा!!
ReplyDeleteये बहुत पुराना तरीका है।
ReplyDeleteवैसे कालिया ‘जी’ ने जो इंटरव्यू नया ज्ञानोदय में रचा है, वह तो अपनी पीठ थपथपाने के लिए ही रचा है। नया ज्ञानोदय की बढ़ती लोकप्रियता को उसका श्रेष्ठतर होना घोषित किया गया है। हम विभूति नारायण ‘जी’ को मानें न मानें, कालिया ‘जी’ ने तो उन्हें श्रेष्ठतम रचनाकार माना ही है। खैर, रूमाल से नाक ढाँपने का पक्षधर तो नहीं हुआ जा सकता था, सो लोग उनका परिचय पाकर चिल्ला रहे हैं। और रही बात रचनात्मकता की तो अजेय भाई, कभी-कभी संहार रचने के लिए जरूरी होता है। जगह को सजाने से पहले झाड़ू से बुहारना भी जरूरी है।
ReplyDeleteKya Yah ek sanyog hai
ReplyDeleteKi apne blog me maine bhi Kah diya hai
Ki hamaari duniya nahin hai ye
Ek had tak hi tamaashe Achhe lagte hain shabdon ke
Ek had tak hi
kisi baahri mudde
Aur murde ke sath chala ja sakta hai
Sngthit nahin
Samkaksh hokar hi ham kisi ke sath
Kahin ja sakte hain
Doosron ki banayi badhawaas duniya ko
Sachhi duniya maan lena
Aur usi me jeena-marna
Palaayan hai
Waastvik aur gahri duniya se
Saahukaar aur sarkaar ke khoonte par koodne aur
Aur us koodamkood men shaamil
Paidaayashi murda Yuwaaon se door
Ek duniya hai
Jahaan jeewant jeewan palte hain
Aaj maine likha hai :
Chalo, ham kahin aur chalte hain
आपकी अंतिम पंक्ति में बहुत सार है.पर बात कभी कभी लेखकीय धर्म की भी हो जाती है.अब जब सभी ने इसे उठा ही लिया है तो इसे बड़े विमर्श में बदल ही लिया जाना चाहिए.एक वीकेंड गाल बजाऊ गोष्ठी की तरह कहीं ये सोमवार को समाप्त न हो जाय.
ReplyDeleteRajendra Yadav khud likh chuke hain- hona sona ek sunada stree ke sath
ReplyDeleteवो पूछते हैं कि गालिब कौन है ,
ReplyDeleteतुम्हीं बतलाओ कि हम बतलायें क्या !
Vibhuti Narain Rai sach kahne ki sajaa bhugat rahe hain.
ReplyDeleteआप सब सही कह रहे हैं. लेकिन # सिधेश्वर भाई, 'उर्दू' ग़ालिब को तो हिन्दी का बच्चा बच्चा जानता है लेकिन हिन्दी की इस विभूति को हिन्दी का यह बच्चा सच में नही जानता था. कोई शे'र इन का लिखा याद नहीं पड़्ता. # ओशिया , कहीं और क्यों जाएं ? यहीं रह कर सफाई करेंगे पर्मेन्द्र भाई के साथ. यहीं अपने लायक जगह बनाएंगे # रत्नेश भाई, सज़ा है या मज़ा यह तो भोक्ता ही बता पाएगा. लेकिन मुझे यह टिप्पणी 'आयोजित' लग रही है. कल ही अरुण देव ने इस मुद्दे फेस बुक पर विष्णु खरे का विस्तृत लेख लगाया है.खरे जी की भड़ास जो भी हो, लेख मे कुछ महत्वपूर्ण सूचनाए मिल्ती हैं जो हिन्दी के नाम पर मलाई खाने के इस परिदृष्य को और स्पष्ट करतीं हैं.
ReplyDeleteनज़रअंदाज करने लायक नहीं है...
ReplyDelete...गंभीरता से ही इनका आसन डोलेगा!