गत वर्ष रेग्युलर हिन्दी * साहित्य* के पाठकों , सम्पादकों और आलोचकों को स्नोवा बॉर्नो नामक मनाली की युवा लेखिका ने खूब चौंकाया , छकाया, तड़्पाया , और माशा अल्ला प्रभावित भी किया।
एक हिन्दी साहित्यकार के रूप मे स्नोवा की कुछ खूबियां सचमुच अजीबो गरीब और ध्यानाकर्षक थीं...... मसलन ;
* वो युरोपी मूल की *हिमालयी* *हिन्दी* *लेखिका* थी।
* उसे बहुत कम लोगों ने देखा था।
* उस की भाषा मे नया पन था
* उस की रचनाएं एक साथ रूहानी, जिस्मानी और सियासी थीं
* उस के कथा चरित्र इश्क़ ए मजाज़ी और इश्क़ ए हक़ीक़ी के बीच सहज यात्राएं करते हुए मिलते थे
* उसका काव्य नायक उक़ाब की तरह ढाका से ले कर अम्स्टर्डम तक की घटनाओं पर नज़र रखे हुए था
बहुत कम लोगों को पता था कि स्नोवा ने कुछ गूढ़ रूहानी कविताएं भी लिखीं हैं। पहल के सम्पादक श्री ज्ञान रंजन को उस की कुछ कविताएं बेहद पसन्द आईं थीं. पहल यदि असमय बन्द न हो जाती तो हिन्दी के मूर्धन्य पाठकों तक स्नोवा की कुछ कविताएं ज़रूर पहुँचतीं।
स्नोवा की ऐसी ही कुछ कविताएं गत दिनों पुरानी मनाली मे एक माऊंटेन हट की सफाई करते हुए मिलीं. आप सब के लिए :
अभाषा
उस आहट से दिल कम्पा
दिल पर उस छुअन से प्राण कम्पे
प्राणों ने अग्नि भर दी
अग्नि ने शान्ति...
स्वाहा!
समन्दर में घुल गई देह
रूह हो गई आकाश!
मुसिव्वर हैरान है
पुनरागत
जब बहाव भंवर बन गया
मैं डूब जाने से नहीं डरी
न बांहों में न होंठों में
न धड़कन में न परकाया प्रवेश में
चाहती रही कि डूबें और मिट जाएं
पर तुम्हें क्या हुआ......
दोहरावों की लाइफ़ जैकेट पहने
तुम न डूब सकोगे
न उड़ पाओगे!
ओम मणि पद्मे हुम
एक शब्द बोती हूं
और
उसी के साथ गल जाती हूं
पृथ्वी घूम कर लौटती है
मैं कोम्पल बन कर निकल आती हूं
ajey. kavita kise mili?
ReplyDeleteप्रमोद, तुम मनाली आ जाओ, मौसम बहुत शानदार है. ;-)
ReplyDeleteroohani kavitayen rooh men utarati lag rahi hain.
ReplyDeleteThanks for sharing
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