28 मार्च 1995 . मेरी नियुक्ति हिमाचल सरकार के उद्योग विभाग में हो गई है और मुझे अपने ज़िला मुख्यालय केलंग में ड्यूटी ज्वाईन करने के आदेश हुए हैं. रोह्तांग बन्द है. मुझे हेलिकॉप्टर से जाना है . भूंतर एयरपोर्ट पर यह एक चमकीली सुबह है. चार दिनों की लगातार बारिश के बाद वातावरण साफ सुथरा लग रहा है. धुला-धुला और खुला-खुला सा. तो आज फ्लाईट मेच्योर हो ही जाएगी.. दोस्तों ने सलाह दी कि कहीं और एडजस्ट्मेंट करवा लो. ‘ट्राईबल’ में जा कर फँस जाओगे. लेकिन जन्म भूमि के लिए भीतर कुछ मचलता है. कोई परवाह नहीं. मै सोचता हूँ, आखिर किसी को तो वहाँ जाना ही है. तो फिर मैं ही क्यों नहीं? कुछ दोस्तों ने मोटिवेट किया. अरे ज़रूर जाओ यार , कैसी मस्त जगहें हैं वहाँ घूमने के लिए— स्पिति देख लो, मयाड़ घाटी की तरफ निकल जाओ घूमने !
स्पिति दो वर्ष पूर्व घूम आया था. लेकिन मयाड़ कभी नहीं. कितने ही विदेशी पर्वतारोही उधर जाते हैं ….. मेंतोसा, फोबरंग , थानपट्टन , कांग-ला. इन सब का केवल ज़िक़्र सुन रखा था. मयाड़ घाटी मेरी स्मृतियों में उन दो ‘दीदियों’ से सुने क़िस्सों के रूप में भी ज़िन्दा है , जो बचपन में हमारे घर पर रहतीं थीं. उन के लोकगीतों और कथाओं में मयाड़ की एक तिलस्मी छवि बनती थी।
हमारा हेलिकॉप्टर तान्दी संगम के ठीक ऊपर पहुँचा है. सामने अपना गाँव सुमनम दिखाई दिया है . शर्न के आँगन में मवेशियों को धूप तापते देख कर बहुत रोमांचित हुआ हूँ. भागा घाटी की ओर मुड़ने से पहले पीर पंजाल के दूसरी ओर ज़ंस्कर रेंज के सिर उठाए भव्य पहाड़ों की झलक मिली है . मैं अनुमान लगाता हूँ कि इन्हीं धवल शिखरों के आँचल में कहीं मयाड़ घाटी होगी. केलंग पहुँचते पहुँचते पक्का मन बना लिया है कि चाहे जो हो, मयाड़ घाटी ज़रूर जाना है.
केलंग में मेरा स्वागत भारी हिमपात से हुआ है . लाहुल यूँ तो मॉनसून के हिसाब से रेन – शेडो क्षेत्र मे स्थित है. मॉनसून पीर पंजाल को प्राय: पार नहीं कर पाता. लेकिन पश्चिमी विक्षोभ (western disturbances) के लिए कोई रुकावट नहीं. सर्दियों में ये बर्फीली हवाएं सीधी घाटी में घुस आती हैं और निकासी नही होने के कारण हफ्तों बरसती रहतीं हैं.
उस रात को लगभग दो फीट बरफ पड़ी और अगले सात आठ दिन बादल छाए रहे. फिर एक दिन बढ़िया धूप निकल आई. छत पर निकल कर कस्बे को निहारने लगा हूँ ।
पूरब की ओर विहंगम लेडी ऑफ केलंग चोटी ताज़ा गिरी बरफ में छिप गई है . रङ्चा दर्रे के नीचे से बरबोग, पस्परग और नम्ची गाँवों को धमकाते हुए तीन चार एवलांश निकल गए हैं ।
ड्रिल्बुरी खामोश खड़ा है . पश्चिम मे गुषगोह के जुड़वाँ हिमनद मानों दो खाए अघाए बैल जुगाली करते अधलेटे पसरे हों।
केलांग टाऊन मुझे कमोवेश वैसा ही दिख रहा है जैसा पन्द्रह साल पहले छोड़ गया था. सुबह उठने पर नथुनों में धुँए की वह चिर परिचित गन्ध घुसी रहती है . यह धुआँ जो कस्बे के ऊपर बादल सा छाया रहता, घरेलू चूल्हों और सरकारी भक्कुओं से निकलता था, तक़रीबन 11 बजे छँटना शुरू हो जाता और यही सरकारी बाबुओं के दफ्तर पहुँचने का समय भी होता. दफ्तरों में स्टीम कोल के भक्कू जलते . उन्ही के ऊपर अल्युमीनियम की केतलियों में चाय उबलती रहती. हिमपात के दिनों में घरों और दफ्तरों में सब से प्राथमिकता वाला काम होता है खुद को गरम बनाए रखना. बहरहाल, मेरी प्राथमिकता है मयाड़ घाटी की यात्रा.
बहुत सुन्दर ,, फोटो भी संस्मरण भी , धन्यवाद
ReplyDeleteDear Ajay,
ReplyDeleteIt is really good to read about Mayad in your blog. I had been to Mayad in summer. I still remember my short visit to my roots. But when I visited Mayad I was worried about to get out of the Valley as soon as possible to make sure I wont become victim of unpredictable autumn snowfall. But I found the photographs of Mayad covered in Snow so beautiful. I wish to be there but alas coz I can't dare to fight against the freezing cold weather.
I really appreciate your postings,
I am sorry for unable to write in Hindi. With my prayers and blessings for good and prosperous year of Iron Hare. May you achieve great heights in your profession and enjoy happiness.
Gaden Shartse Khen Rinpoche
From Karnataka
thanks rimpochhe, thanks Sunita.......this was my first visit to Miyar valley.
ReplyDeleteive just started, geshe la. keep in touch. it will take a couple of more episodes to reach CHANGUT .....and OGOLUNG !
chaar saal pahle rohtang jana hua tha. ajay ji aapne kafi kuch yaad dila diya. thank u.
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