उस का जो भी नाम था , वह जहाँ से भी थीं , हम उसे बचा नहीं पाए !
"हम ब्यूँस की टहनियाँ हैं
जितना चाहो दबाओ
झुकती ही जाएंगी
जैसा चाहो लचकाओ लहराती ही रहेंगी
जब तक हम मे लोच है
और जब सूख जाएंगी
कड़क कर टूट जाएंगी. "
"हम ब्यूँस की टहनियाँ हैं
जितना चाहो दबाओ
झुकती ही जाएंगी
जैसा चाहो लचकाओ लहराती ही रहेंगी
जब तक हम मे लोच है
और जब सूख जाएंगी
कड़क कर टूट जाएंगी. "
दोस्तो यह गेंग रेप हम सब ने मिलकर किया है .
यह हत्या हमारे समाज ने की है .
हम शर्मिन्दा हैं !!
हम ब्यूस की टहनियाँ हैं,
ReplyDeleteजितना चाहो दबाओ,
हम झुकती ही जाएँगी,
जैसा चाहो लचकाओ,
लहराती ही रहेंगी,
जब तक हम में लोच है,
और जब सूख जाएंगी,
कड़क कर टूट जाएंगी।
हमें लेनी ही होगी इसकी जिम्मेदारी, हम इससे पीछे नहीं हट सकते, लेकिन अब सूख चुकी हैं भावनाएं ब्यूस की टहनियों जैसी ही, और टूट चुकी हैं, बिखरी हुई सड़कों पर, पसरी हुई लम्बी छाया।