Thursday, June 30, 2011

रात होते ही उतरूंगा तुम्हारे कंधो पर

हिन्दी(साहित्यिक) ब्लॉग्स पर आज कल शुरुआती दिनों जैसा उत्साह नही दिख रहा. इस का दोष प्रायः फेस बूक को दिया जा रहा है. एक हद तक यह सही भी लगता है . लेकिन ज़रूरी नहीं कि फेस बुक ने ब्लॉग्गिंग को नुकसान ही पहुँचाया हो. फेस बुक के माध्यम से इधर कुछ सशक्त ब्लॉग्गर्ज़ से मेरी मुलाक़ात हुई है . उन मे से एक हैं लीना मल्होत्रा राओ http://lee-mainekaha.blogspot.com/ ब्लॉग का नाम है अस्मिता . इस मे मुझे एक नई ताज़गी लिए हुए कुछ प्रेम कविताए मिली . एक आप के लिए:

प्यार.. बिना शर्तों के.


मै एक पारदर्शी अँधेरा हूँ
इंतज़ार कर रहा हूँ अपनी बारी का
रात होते ही उतरूंगा तुम्हारे कंधो पर


तुम्हारे बालो के वलय की घुप्प सुरंगे रार करती हैं मुझसे
तुम एक ही बाली क्यों पहनती हो प्रिये
आमंत्रण देती है मुझे ये
एक झूला झूल लेने का
और यह पिरामिड जहाँ से
समय भी गुज़रते हुए अपनी चाल धीमी कर लेता है
हवाओ को अनुशासित करते हैं
और हवाए एक संगीत की तरह आती जाती रहती हैं
जिसमे एक शरद ऋतु चुपचाप पिघल के बहती रहती है.


तुम्हारी थकी मुंदती आँखों में तुम्हारे ठीक सोने से पहले
मै चमकते हुए सपने रख देता हूँ
और अपनी सारी सघनता झटककर पारदर्शी बन जाता हूँ
ताकि मेरी सघनता तुम्हारे सपनो में व्यवधान न प्रस्तुत कर दे.
क्या तुमने सोते हुए खुद को कभी देखा है ?
निश्चिन्त ..अँधेरे को समर्पित,
असहाय ..पस्त ..नींद के आगोश में गुम
सपने भी वही देखती हो जो मै तुम्हे परोसता हूँ
और तुम्हारी देह के वाद्यों से निकली अनुगूंज को नापते हुए मेरी रात गुज़र जाती है
और मै तुम्हारा ही एक उपनिवेश बनकर गर्क हो जाना चाहता हूँ तुम्हारे पलंग के नीचे
.


तुम्हे उठना है सूरज के स्वागत के लिए तरो ताज़ा
भागती रहोगी तुम शापित हाय
सूरज के पीछे
और मै सजाता रहूँगा पूरा दिन वो सपने जो दे सकें तुम्हे ऊर्जा
देखा कितना सार्थक है मेरा होना तुम्हारे और सूरज के बीच में धरा


क्या तुम मुझे पहचानती हो
मै हर बार उतरा हूँ तुम्हारे क़दमों में और पी गया हूँ तुम्हारी सारी थकान
और अनंतकाल से मै सोया नहीं हूँ.
जबकि तुम अनंतकाल से भाग रही हो सूरज के पीछे
और तब जब भूल जाती हो मुझे एक स्वप्न की तरह
मै लैम्पपोस्ट के नीचे खड़ा होकर प्रतीक्षा करता हूँ तुम्हारी
प्यार करता हूँ बिना शर्तो के.

8 comments:

  1. पारदर्शी अँधेरा,चमकते हुए सपने ,अपनी सघनता,पिघलती सर्द ऋतु ....क्या बात है !
    अति सुन्दर .

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  2. ताज़ा हवा का झोंका हैं लीना की कविताएं.. आभार।

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  3. सचमुच खूबसूरत कविताएं।
    अगर एक पुरूष के लिए स्‍त्री मन को अभिव्‍यक्‍त करना कठिन है तो एक स्‍त्री के लिए पुरूष मन को अभिव्‍यक्‍त करना कठिन होना चाहिए। कम से कम मुझे ऐसा लगता है। बधाई।

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  4. हाँ प्रमोद, और ये भाव इतने प्रामाणिक हैं कि एकदम इन पर यक़ीन नही होता ......

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  5. बिल्‍कुल अजेय। और शायद यकीन न होना ही इनकी सफलता की निशानी है।

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  6. क्या तुम मुझे पहचानती हो (?) हाँ ! यह अश्चार्यभरा सुखद-सुन्दर सच भी हो सकता है या खुशनुमा-स्वप्निल आभास भी. क्या है सुनिश्चित नहीं कर पाया. भोर होने को है और उनींदा हूँ मैं.

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