Monday, January 25, 2010

गणतंत्र और लोसर


तिब्बत के एक्टिविस्ट कवि तंज़िंन त्सुंडॆ की कुछ अनूठी कविताएं मुझे कृत्या से प्राप्त हुईं. ये कविताएं इतनी सम्प्रेषणीय थीं, कि मेरे कुछ गैर कवि दोस्तों ने तुरत फुरत इन के अनुवाद कर डाले. तिब्बती नव वर्ष उत्सव लोसर तथा भारत के गणतंत्र दिवस के अवसर पर ......... तिब्बत की स्वतंत्रता एवं प्रभुसत्ता की बहाली एवं हिमालय की चिर शांति की कामनाओं के साथ ......
हिमालय के सभी अनाम लोक् कवियों को यह अनूदित कविता समर्पित कर रहा हूँ.





लोसर की शुभ कामनाएं
टशि देलेग !

खूब अच्छे से फूलो फलो मेरी बहना
यद्य़पि एक उधार के बगीचे में .
इस लोसर पर
जब तुम सुबह की प्रार्थना पर होगी
एक दुआ अतिरिक्त माँग लेना
कि अगला लोसर हम ल्हासा में मनाएं

जब तुम कक्षा में होगी
एक पाठ अतिरिक्त पढ़ लेनाकि तुम तिब्बत जा कर बच्चों को पढ़ाओगी

पिछले वर्ष लोसर पर
नाश्ते पर मैं ने इडली –साँभर खाया
और स्नातक तृतीय वर्ष की परीक्षा दी
मेरे दाँतेदार इस्पाती फोर्क पर
इडलियाँ ठीक से टिकती नहीं थीं
पर मैंने अपने पेपर ठीक से लिख लिए.

तुम खूब अच्छे से फूलो फलो बहना
अपनी जड़ें उतारो
ईंट , पत्थर, टाईल और रेत में
खूब फैलाओ अपनी टहनियाँ
मुडेरों पर
और
ऊँचा उठो.

टशि देलेग !
लोसर- तिब्बती नव वर्ष का उत्सव्
टशि
देलेग् - शुभ कामना का तिब्बती संबोधन.
ल्हासा- तिब्बत की राजधानी

10 comments:

  1. बेहतरीन कविता। बहुत ही नरम और संवदेनशील।

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  2. # सुशीला पुरी . सॉरी, जी. शायद मुझे फुट्नोट देना चाहिए था. वैसे टिप्पणी में बता दिया है मैंने कि लोसर तिब्बती नव वर्ष का उत्सव है.फिर भी फूट नोट दे देता हूँ.

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  3. ओह अजेय!
    कितनी मासूम कविता
    बहुत अच्छा अनुवाद किया है तुमने
    उस अनाम कवि को मेरा भावुक सलाम!

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  4. # अशोक, कवि तंज़िन त्सुंडुए उतना अनाम नहीं है. अंग्रेज़ी में उस के दो संग्रह आ चुके हैं. विश्व की अनेक भाषाओं में इन का अनुवाद हो रहा है. दुनिया भर के काव्योत्सवों में इस युवा सेंसेशन की माँग रहती है. कारण है , उस की मासूम प्रतिबद्धता, और स्पष्ट एजेंडा. आप को लिंक देता हूँ. इस कवि के बारे जान कर आप को ऊर्जा मिलेगी.

    अनाम तो मेरे वे अनुवादक मित्र हैं . जो कवि न होते हुए भी तंज़िन को समझना और उसे हिन्दी पाठक तक पहुँचाना चाह रहे हैं. बिना अपना नाम ज़ाहिर किए...ये अनुवाद उन्ही मे से एक का है. यह मेरा काम नहीं है.

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  5. अरे यार शायद कविता में ऐसा डूबा कि कवि के नाम और अनुवाद के बारे में तुम्हारी टीप पर ध्यान नही गया.
    वैसे अपने में डूबे हम हिन्दी वाले अन्य भारतीय भाषा के कवियों के बारे में कम ही जानते हैं. लिंक का इंतज़ार रहेगा.

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  6. u r right brother. par ham hindee waalo ko yah sach sweekaarane me
    takaleef bahut hotee hai. shaayad isee vajah se ham apanee kavitaa ko
    aage nahee le jaa paa rahe. bhaashaa kee samasyaa ke chalate main bhi
    bahut zyada baahar nahee jhaank pata. lekin aap kee tarh mujhe is sach
    ko sweekarane me^ koi jhijhak nahi hai. achchhaa lagaa aap kaa comment
    padh kar. yahan khojie. kuchh milegaa. aur bhi link doonga:

    http://www.tibetwrites.org/?_Tenzin-Tsundue_

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  7. कलेजे को चीरकर निकलते हैं ऐसे शब्‍द/रचना/कविता

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  8. इस बेचैन आत्मा से मैं कइ बरस पहले मुंबई के मैक्स मूलर भवन में हुए एक सेमिनार में मिला था. सेमिनार का विषय ही आइडेंटिटी था. उसमें निर्मल वर्मा और के. सच्चिदानंदन भी थे. तब तंजिन ने भी अपनी पहचान के संकट को लेकर बात की थी. अपने देश को लेकर बहुत हूक उठती थी उसके मन में. तिब्बत, धर्मशाला, मनाली कनेक्श्न के कारण मैंने भी सेमिनार के बाद जरा देर इससे बात की थी. अब तो यह शायद कुछ वर्कशाप भी करते हैं. दो साल पहले तिब्बीत जाने वाले जत्थों के संघर्ष में जेल भी जा चुके हैं. सुनते हैं यह उस युवा पीढ़ी के नुमांइदे हैं जो इलाई लामा की हथजोड़ नीति पर भी सवाल खड़े करते हैं.

    दूसरी बात, जिनके पास अपना देश, अपनी जमीन नहीं है, उनके मन में अपने देश को पाने की बहुत बेचैनी, ललक, और तड़फ होती है, चाहे तिब्बत हो चाहे फिलीस्तीन. इसके विपरीत जब हमें मातृभूमि में रहने का सौभाग्य मिल रहा होता है तो हम धीरे धीरे उसका मूल्य खोते जाते हैं. अपनी पहचान के प्रति लापरवाह‍ होते होते प्रमादी होते जाते हैं.

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