Sunday, June 27, 2010

कविता मे एक और सुरंग

कल सोनिया गाँधी मनाली आ रहीं हैं। रोह्ताँग सुरंग का शिलान्यास (दूसरी बार) करने। लाहुल की जनता प्रफुल्लित है. इस फील गुड अवसर पर भारत सरकार और लाहुल वासियों को बधाई देते हुए मुझे 1996 और 2001 मे लिखी अपनी कुछ कविताएं याद आ रहीं हैं...

पहाड़ क्या तुम ..... ?
(चित्रकार सुखदास की पेंटिंग्ज़ देखते हुए )

अकड़
रंग बरंगे पहाड़
रूह न रागस
ढोर न डंगर
न बदन पे जंगल
अलफ नंगे पहाड़ !
साँय साँय करती ठंड में
देखो तो कैसे
ठुक से खड़े हैं
ढीठ
बिसरमे

चुप्पी
काश ये पहाड़
बोलते होते
तो बोलते
काश
हम बोलते होते

सुरंग
पर ज़रा सोचो गुरुजी
जब निकल आयेगी
इस की छाती मे एक छेद
और घुस आएंगे इस स्वर्ग मे
मच्छर
साँप बन्दर
टूरिस्ट
और ज़हरीली हवा
और शहर की गन्दी नीयत
और घटिया सोच गुरुजी,
तब भी तुम इन्हे ऐसे ही बनाओगे
अकड़ू
और खामोश ?
1996


रोह्ताँग टनल
पहाड़?,
क्या तुम छिद जाओगे ?
2001