Monday, December 7, 2015

आज नेपाल के कवि मित्र ने ब्लॉग के बारे कजानकारी माँगी तो लगा कि मुझे कुछ कविताएं ब्लॉग पर भी सहेज रखना चाहिए । बहुत सारा तो मैं खो चुका कहूँ . पहल में छपी ये दो कविताएं मैं नहीं खोना चाहता : थेंक्स चन्द्र भाई 


                                      फोटो में विक्रम कटोच की की पीठ और हमारा गाँव 


मेरा गाँव गज़ा पट्टी में सो रहा था

वह आकाश की ओर देखती थी
गाँव की छत पर लेटी एक छोटी बच्ची
दो हरी पत्तियों और एक नन्हें से लाल गुलाब की उम्मीद में
जब कि एक बड़ा सा नीला मिज़ाईल
जिस पर बड़ा सा यहूदी सितारा बना है
गाँव के ठीक ऊपर आ कर गिरा है
जहाँ 'इरिगेशन' वालों का टैंक है
(यह मेरा ही गाँव है)
धमक से उस की पीठ के नीचे काँपती है धरती
(यह मेरी ही पीठ है)


अब क्या होगा?
उस बच्ची ने उम्मीद छोड़ दी है
वह इंतज़ार करती है


दस....
नौ....
आठ....

कच्चे डंगे
सड़ी हुई बल्लियाँ
ज़ंग लगी चद्दरें टीन की
ढह जाएंगी भरभरा कर पल भर में, उम्मीदें
(मैंने ही छोड़ दी थीं तमाम उम्मीदें)

जब कि एक और मिज़ाईल आया है
लहराता हुआ सफेद सफेद सा
वह नदी की ओर चला गया है
जहाँ आई.टी.बी.पी.1 का कैम्प है


और एक और, जिस पर बहुत सारे सितारे और धारियाँ हैं
वह केलंग के पीछे कक्र्योक्स2 के उस पार गिरा है
जहाँ बहुत बड़ा डैम बन रहा है
चारों ओर सन्नाटा है
न कम्पन है न धमाका है
सुनसान फाट पर इकलौती झाड़ी हिलती है/तूफान में
कल्याष3 का एक सूखा डंठल टिका खड़ा है
गाँव के नीचे हाईवे नम्बर इक्कीस पर
बड़ी बड़ी टर्बो इंजन निस्सान गाडिय़ाँ
घसीट ले जा रहे हैं बड़े बड़े बोफोर्ज़ हॉविट्ज़र

जब कि गाँव की छत पर अभी भी
एक छोटी सी उम्मीद सोती होगी
मिज़ाईलें बरसाता होगा गाँव का आकाश अभी भी
और एक छोटी बच्ची
अपने कलर बॉक्स में मिलान करती होगी
ऑलिव, मेटालिक, पर्पल, सिल्वर
मिज़ाईलें और पेंसिलें एक सी हैं

सात...
छह...
पांच... चार...

मेरे मन में उल्टी गिनती चल रही है
जब कि अभी तक कोई मिज़ाईल नहीं फटा है
अभी तक गाँव में ब्लैक आऊट नहीं हुआ
फिर भी वह बच्ची छटपटा रही है
सपने से बाहर आने के लिए
प्यारी बच्ची, मैंने तेरे लिए कितने खराब सपने बुन लिए हैं!


1. आई.टी.बी.पी (इंडो तिब्बत बॉर्डर पुलिस) : भारत तिब्बत सीमा पर नज़र रखने के लिए यह भारत सरकार के गृह मंत्रालय से सम्बद्ध एक पेरा मिलेट्री फोर्स है। इस के कैंप्स सीमांत हिमालय क्षेत्र के संवेदशील स्थलों पर स्थापित किए गए हैं। मेरे गाँव सुमनम के नीचे भी एक ऐसा एक कैंप है।
2. कक्र्योक्स : केलंग के ऊपर ज़ंस्कर पर्वत श्रृंखला पर स्थित ऊँची चोटी। जिसके पीछे तोद घाटी में भागा नदी पर एक मेगा हाईडल प्रोजेक्ट प्रस्तावित है। तोद घाटी के स्थानीय जन इस बाँध का विरोध कर रहे हैं।
3. कल्याष : एक कड़वी एवम कड़ी वनस्पति, जो पशु चारे में प्रयुक्त नहीं हो सकती। सितंबर के बाद जब घासनियों से सारी नरम घास काट कर समेट दी जाती है तब ढलानों पर इसके इक्के दुक्के डंठल खड़े दिख जाते हैं।



'उत्सव' देखने के बाद उदास था शूद्रक

वह घूमता रहा था मिट्टी की गाड़ी में
रात भर जासूस की तरह
गणिकाओं के आभूषण खोजता
थेरियों की कलाईयों पर भारी सोना टनक रहा था
डाकिनियों की फीरोज़ी आँखें
रह रह कर चमक रहीं थीं


चन्ना!
यह रथ फुली लोडेड है क्या?

पार्थ!
क्या निकट भविष्य में
एक और महाभारत लड़ा जा सकता है?
मुझे एक गाँडीव दो, मिट्टी का
और एक सुदर्शन चक्र, मिट्टी का
और मेरी दाहिनी भुजा में थोड़ा सा पुंसत्व भर दो, मिट्टी का

चारु दत्त!
ये रही तुम्हारी बाँसुरी
तुम छिपा लो इस में सब से बड़ा चन्द्रहार
और वसंत सेना को सशरीर
तुम मुझे उस पोखर तक ले चलो
जिसे कोक और पेप्सी की फैक्ट्रियों ने सोख लिया था
जहां सुजाता बाँट रही है लाल चावलों से बनी हुई खीर

मैं परिव्राजक न रहा
मुझे घर लौटना है
बताना मत किसी को
देवदत्त को भी नहीं
यशोधरा या राहुल को भी नहीं...


अँधेरे में सिद्धार्थ सा भटकता हुआ जहाँ पहुंचा था शूद्रक 
वह पाटलिपुत्र या राजगृह का कोई नुक्कड़ रहा होगा
उसे न कोई उजास मिली होगी
न ही वह बुद्ध हो पाया होगा
और वह आर्यक, जिस के साथ रात भर चाय पीता रहा
कुल्हड़ भर भर के

ज़रूर नेपाल से भागा हुआ कोई माओवादी रहा होगा