
साईबेरिया से तेज़ हवाएं चल रही हों, सूरज ने अपना रास्ता छोटा कर दिया हो, कोण तिरछा कर दिया हो, पश्चिमी विक्षोभ ने आकाश को ढँक दिया हो, शीत देवता ने नदियों को स्थिर कर दिया हो तो सोचिए आप के सपनो में कौन आता है?

आधी रात है
और सूनी गली में हांक लगाता कोई -
``आग ले लो,.......... आग ! ´´
पोटली में से निकाली हैं
छोटी-बड़ी सन्दूकचियां
और बिछा दिया है सौदा -
``ये एक दम सुच्चा माल
देवताओं के देश से आया
बस यही आखिरी चीज़ बची है
शुरु से ही ज़िन्दा
अपने आप फैलती
और सिमट जाती आप ही
कोई गुंजाईश नहीं मिलावट की
यह होती है या फिर होती ही नहीं
इसका ताप
गुपचुप पहुंच जाता चीज़ों में अपने आप
आज़मा कर देखो तो ज़रा ।´`
झुर्रियों वाला एक चेहरा है ताबदार तना हुआ
मुटि्ठयों से झर रहे थक्के पिघलती रोशनी के
ठोस हो जा रहे गिरते ही मिट्टी पर .............
ज़ंग खाई उन खखरी पिटारियों में
कैसे सहेज कर रखी हुई है आग
छेदों और झिर्रियों में से
उफनती लपटें पुकार रही मुझे
और लेटा हुआ अनमना, अधमरा सा
निश्चेश्ठ मैं ............
दौड़ा हूं बदहवास
सपनों के उस अधरंग से उठकर
एकाएक बाहर
ठिठक गया लेकिन दहलीज़ पर
सहम कर खड़ा हूं
बचता हुआ उन असली चिनगारियों से
देख रहा यह अद्भुत कारोबार........
कोई लेन-देन नहीं हो रहा
और घेरे हुए उस नायाब ताम- झाम को
कितने ही गाहक
उतावले और आशंकित
देर रात की दहशत में
बेबूझ , तिलमिलाए हुए
कि सभी को चाहिए मुट्ठी भर आग
इस ठण्डे अंधेरे में
क्या करें..........!