नवनीत शर्मा पालमपुर (हिमाचल प्रदेश) के युवा कवि हैं . और लम्बे अरसे से लिख रहे हैं .उन की कविता आप ने पहले भी यहाँ पढ़ी है . इधर इन्होने ने निरंतर रियाज़ से, बड़ी मेहनत से अपनी कविता को निखारा है . अभी कल ही उन की एक अच्छी कविता मुझे मिली है . सोचा उसे शेयर करूँ
ढूँढना मुझे
बावड़ी के किनारे रखे पत्थरों के नीचे
पीपल को बांधी गई डोर से कुछ दूर
खिलते गेंदे की कली में/
झरने से फूटते पानी के ठीक पीछे
या उस कांटेदार पौधे में जिसका दूध
हाथों-पैरों के मस्से ठीक करता है/
ढूंढ़ना मुझे
पहाड़ी पर खड़े हो कर गाए
किसी गीत के बोल के अंतिम हिस्से में/
मैं मिलूंगा तुम्हें
अधूरे छूटे किसी लोकगीत की संभावना में/
जंतर मंतर पर भी रहूंगा मैं
उन गुहारों में जो कुछ बदलना चाहती हैं/
मुझे पाना उन चीखों में
जो बहुत बार अनसुनी रह जाती हैं/
किसी संकरे पुल पर
पार से किसी के इंतजार में
शांत बैठा दिख सकूंगा मैं/
जरूरी हो तो मुझे खोजना
पहाड़ काटने में मसरूफ
किसी जेसीबी के ब्लेड को टेढ़ा कर चुके पत्थर में/
जो इस बार नहीं है कहीं
बस उसी सबके आसपास देखना मुझे।
ढूँढना मुझे
- नवनीत शर्मा
बावड़ी के किनारे रखे पत्थरों के नीचे
पीपल को बांधी गई डोर से कुछ दूर
खिलते गेंदे की कली में/
झरने से फूटते पानी के ठीक पीछे
या उस कांटेदार पौधे में जिसका दूध
हाथों-पैरों के मस्से ठीक करता है/
ढूंढ़ना मुझे
पहाड़ी पर खड़े हो कर गाए
किसी गीत के बोल के अंतिम हिस्से में/
मैं मिलूंगा तुम्हें
अधूरे छूटे किसी लोकगीत की संभावना में/
जंतर मंतर पर भी रहूंगा मैं
उन गुहारों में जो कुछ बदलना चाहती हैं/
मुझे पाना उन चीखों में
जो बहुत बार अनसुनी रह जाती हैं/
किसी संकरे पुल पर
पार से किसी के इंतजार में
शांत बैठा दिख सकूंगा मैं/
जरूरी हो तो मुझे खोजना
पहाड़ काटने में मसरूफ
किसी जेसीबी के ब्लेड को टेढ़ा कर चुके पत्थर में/
जो इस बार नहीं है कहीं
बस उसी सबके आसपास देखना मुझे।