बची रहे इतनी सी विनम्रता
बचा रहे इतना सा साहस
चिट्ठियां बचीं रहें..... तो बची रहेगी कविताएं भी शायद......
पूर्वा के नाम
‘पूर्वा’ मुझे दुख है कि आकण्ठ में छपी तुम्हारी कविता में जो परिवर्तन मैंने किया है उससे तुम आहत हो ... तुम्हारा आहत होना जायज है। गलती मेरी है। मुझे तुम्हारे पापा से नहीं तुमसे बात करनी चाहिए थी। किसी भी रचना की पंक्तियों को बदलने का अध्किार उसके रचनाकार को ही है, जो उसका रचयिता होता है। मेरी कविता को कोई भी सम्पादक अगर बदले तो शायद मैं उसे कभी क्षमा नहीं करूंगा। यह जानते हुए भी मैंने यह अपराध् है, जो जरा भी क्षमा योग्य नहीं है। मैं शार्मिंदा हूं ... तुम में एक बड़ा कवि बनने के गुण व स्वाभिमान है और मैंने तुम्हारे उसी गुण को ठेस पहुंचाई है। मैं सचमुच अपने इस कृत्य पर शर्मिंदा हूं। मैंने ऐसा पता नहीं किस मनःस्थिति में किया है। अगर मैं तुमसे मापफी भी मांगू तब भी मेरे इस अपराध् का ताप कम होने वाला नहीं है।
वैसे मुझे यह कहने का अध्किार तो नहीं है पिफर भी मैं कुछ बातें कविता के बारे में तुमसे कहना चाहूंगा। स्कूली पढ़ाई के साथ-साथ तुम्हें समकालीन कविता का थोड़ा-थोड़ा अध्ययन करते रहना चाहिए। तुम में प्रतिभा के संग-संग स्वाभिमान भी है। जो तुम्हारी राह की सभी बाधओं को हटाता रहेगा। कविताएं लगातार पढ़ने से तुम में अभिव्यक्ति का विकास होगा। बिम्बों और प्रतीकों का इस्तेमाल करने के साथ-साथ शब्दों के प्लेसमैंट का तौर-तरीका भी जान जाओगी, जो तुम्हारी कविताओं को सुन्दर और आकर्षक बनाएगा। तुम कोशिश करना कि भावों को सरल से सरल भाषा व शब्दों में किस तरह अभिव्यक्त करना है। तुम्हारी यह कोशिश तुम्हारी कविता को सबसे साधरण व सरल आदमी तक पहुंचाएगी। बड़ा होने पर तुम देखोगी कि कहीं न कहीं यह गुण हमारे कबीर और तुलसी में भी रहा है। उनके इसी गुण ने उन्हें जन-जन तक पहुंचाया है। खाली वक्त में कविता जरूर लिखते व पढ़ते रहना। कविता तुम्हें एक नए ढंग से इस दुनिया को देखने व समझने का नजरिया देगी। तुम में दूसरों के दुख व दर्द को समझने की काबलियत पैदा करेगी, तुम्हें एक अच्छा इन्सान बनने में मदद करेगी। पूर्वा ... तुम उम्र में मेरे बच्चों से भी छोटी हो, पर जब तुम किसी को क्षमा करोगी तो तुम अपने मन में झांकना, तुम सचमुच अपने आपको बहुत बड़ा समझोगी, तुम देखोगी कि कविता सचमुच आदमी को कितना विनम्र बनाती है ... वह हमें क्षमा करना सीखाती है ... हमें क्षमाशील बनाती है।
सुरेश सेन निशांत