[I]
जून
21 , 2013 . लाहुल की सब से अधिक दुर्गम और दूर दराज़ की घाटी
, मयाड़ नाला ! लोकसभा बाई
एलेक्शन …. मण्डी
लोकसभा कंस्टीचुएंसी से सीट खाली हो गई है । काँग्रेस की उम्मीदवार प्रतिभा सिंह
हैं और भाजपा के राम स्वरूप । दो
प्रत्याशी और हैं । मैं घारी गाँव में हूँ । इस गाँव की मेरी दूसरी यात्रा है । पहली बार 1996 में आया था । बी डी ओ , जे ई , एस ई बी पी ओ और मुख्यसेविका के साथ । हम शुरगो से
नीचे उतरे थे । ढीपी 1 पार
कर पैदल चल कर घारी पहुँचे थे और सब एक एक
वल्ज़ा ले के लौटे थे । वल्ज़ा
बरफ हटाने के लिए प्रयुक्त होने वाला लक़ड़ी
का बना बेल्चा है । दयार और काईल की लकड़ी यहाँ खूब है , और इस गाँव मे कारपेंटर भी बहुत है । सड़क पहुँच चुकी है फिर भी गाँव के
तीन ओर कुछ जंगल बचा हुआ है । अरसे से मन
था कि इस से पहले कि यह इलाक़ा सफाचट हो जाए इस जंगल की रैकी की जाए । क्या इस बार
यह इच्छा पूरी होने वाली है ?
लिंक रोड गाँव के बीच तक चला गया है । स्थानीय घरों की इमारतें बाहर से पहले जैसी
ही नज़र आ रहीं है । लेकिन भीतर के रखरखाव व स्वच्छता में सुधार आया है । स्कूल के बिल्डिंग, सामुदायिक भवन और शौचालय आदि पक्के बन गए हैं ।
हम स्कूल में ठहरे हैं । एक कमरे में पोलिंग स्टेशन बनेगा और दूसरे में हम सोएंगे
। ‘मिड-डे मील’ स्कीम के तहत अब हर स्कूल में एक किचन भी है। तो भोजन की कोई
समस्या नहीं है ।
दो
दिन क्या करेंगे ? नेटवर्क नहीं है। फोन,
इंटरनेट नहीं चलेगा। मेरे हार्ड डिस्क में कुछ फिल्में हैं । मैंने लैप टॉप पर Akiro Kurosava की चर्चित फिल्म ‘ Dersu
Ouzala ’ देखी । काकू 2 ने कहा था कि यह फिल्म अवश्य देखना । स्कूल का वाटर कैरियर बड़ी उत्सुकता से मेरे लैप
टॉप को देखता रहा । उसे फिल्म में भी दिलचस्पी हो गई थी शायद । वो बीच बीच में मेरे
लैप टॉप के पोर्ट भी जाँच रहा था। फिल्म खत्म होने के बाद रोमांचित हो कर बोला -- लौह्ल 3 का आदमी !
नहीं
भाई -- साईबेरिया का आदिवासी है ।
अच्छा
जी ? पर बाऊ जी , बिल्कुल हमारे उड़गोस वाले मामू जैसा था ।
हाँ
वो हमारा ही कोई भग्याड़ 4 था भाई ।
और
देश भी -- क्या नदी नाला , दरख्त, बरफ सब कुछ हु -बा -हुब याँह की तरह !....यह डोनलोट हो जाएगा ?
हाँ
, कॉपी हो जाएगा । किस में करना है ? मुझे उस की भाषा और उस का टोन सुन कर बड़ा मज़ा
आ रहा है। अपनेपन का भाव ।
उस
ने मोबाईल से मेमरी कार्ड निकाला ।
यह
नहीं चलेगा । कोई बड़ा चिप चाहिए । पेन
ड्राईव नहीं है ?
वही
तो मैं देख रहा था । मैं बोला, आप का वो सोक्ट तो बड़ा है । चलो कोई बात नहीं... मैं सोचा ..... चलो
हौर कभी दे देणा आप ने मेरको ।
उस
ने निराश हो कर चिप वापिस मोबाईल में इंसर्ट कर दिया । इसे कुरोसावा की सफलता ही
माननी चाहिए कि फिल्म गाँव के एक अनपढ़
आदमी को भी समझ आ गई ।
[II]
मन उचाट हो रहा है । एक समय था इलेक्शन ड्यूटी
बड़े जोश और रोमाँच से निभाते थे । एक ज़िम्मेदारी का अहसास होता था । हम फेयर
एलेक्शन करवाएं गे । चार बार सेंसिटिव बूथ पर ड्यूटी दी । एक बार हमारी टीम को रिटर्निग ऑफिसर शुभाशीष पाँडा जी ने “लेटर ऑफ अप्रीसिएशन दिया” था । कितनी खुशी होती थी !! अब इस में मज़ा नहीं
आता । अब इलेक्शन के सिस्टम में कमियाँ
नज़र आती हैं तो मन क्षुब्ध हो जाता है ।
वोटर के पास सीमित विकल्प हैं । बड़ी हद कम
बुरे उम्मीदवार को वोट दे दो । लेकिन
अच्छा उम्मीदवार कौन है ? इस सवाल का जवाब किसी के पास नहीं है। आप की पार्टी को
पचास प्रतिशत से कम वोट मिले हैं , लेकिन सीटें दो तिहाई बना दी जोड़ तोड़ कर के या
चाहे वैसे ही , तो आप सरकार बना सकते हो ।
यह कौन सा जनादेश हुआ ?
लंच हम उदयपुर से कर के निकले थे । सो फिल्म के
बाद दिन भर लेटे रहे । बढ़िया नींद आई । गाँव में नींद बची हुई है अभी भी । और शायद
सपने भी। शाम को हम नदी के उस पार ‘गोठ’
की तरफ चल पड़े हैं । वो जगह जहाँ
पुराने दिनों में गद्दी चरवाहे रात को अपने
मवेशी एकत्रित करते थे । आज कल वहाँ कुछ दुकानें हैं और ढाबा भी हैं ।
पशुओं के पड़ाव वाली समतल जगह पर सड़क
मज़दूरों के तंबू लगें हैं । ये सभी नेपाली
मज़दूर हैं । ठेकेदार की बीबी भी एक टेंट
में ढाबा करती है ।उस के यहाँ खूब चहल पहल है । मैगी, थुकपा , मोमो , अंडा, माचिस ,बीड़ी ,गुटखा
। साथ में दारू और ताश चलती है । तंबू की रौनक
को स्थानीय दुकानदार ईर्ष्या भरी नज़र से देखते रहते हैं । हालाँकि उन की अपनी
दुकानें पक्की हैं और अंदर बेंच टेबल आदि
का भी प्रावधान है । पर उन के पास कोई गाहक नहीं फटक रहा। अब क्या करें, ठेकेदारनी
के पास जो आकर्षण है वो उन के पास नहीं है ।
वे टोपी सरकाते हुए सर खुजाते हैं , बीड़ी फूँकते
हैं। पुराने एम. एल. ए. और प्रधान को गालियाँ देते हैं । खंखार कर थूक देते हैं और
बेंच पर लेट जाते हैं ।
[III]
वार्ड पंच ने हमें पहचान कर महाराज
सरजी की है और चा पिलाई है । चलो जी , अब आने दो प्रोजेक्ट 5
।कुछ तो बदलेगा। देखो बाऊ जी ये बुर्जियाँ
लग गई हैं । ये टेंट और ढाबे सब नजायज है । यह सारा एरिया कंपनी को जाएगा। उन के क्वार्टर
बनेंगे। दफ्तर बनेगा। मशीनों और गाड़ियों के लिए पार्किंग बनेगी। शेड बनेंगे।
मटीरियल के लिए साईट बनेगा।
आपत्ति
नहीं की किसी ने ?
--किस
ने करना ? और किस बात का आप्ति ? जद्दी
थोड़ी नापा है किसी का ? सारा फारिष्ट का है ... बिला पैमूदा । पकड़ के बैंठो आप्ति
का पर्चा । रिंज़र साब ने खुद अपने दस्खत
से नो सी दिया । मालिक है महा राज !
ओ त्तेरी ! इस बंदे की भाषा से तो सत्ता की बू आ रही है । पार्टी
का आदमी लगता है ।
--और लेबर आएगा अब टोटल बिहारी।
नेपाल में लेबर नहीं मिलता अब ।
--लेबर का टोटा तो बिहार में भी है
।
-- अरे यार वो तो मनरेगा कर के है ।
देखो कब तक चलता है ? बिहार की भुखमरी का
अंदाज़ा नहीं आप को । वहाँ के बंदे ही कामचोर हैं । पैसा कमाने का शॉर्टकट ढूँढते
हैं । गोरखा 6 आदमी मेहनती और ईमानदार है ।
-- हाँ ..... अब तो गोरखे सब कुवैत
और दुबई भाग रहे हैं । बड़ी डिमांड है गोरखों की । टेक्नीकल काम में तेज़ हैं साले।
बोले डबल पेमेंट मिलता है ।
-- कुछ भी कर लो बचाना गोरखा को भी
नहीं आता । बचाने के लिए तो ये मंडियाड़ और काँगड़िये 7 ।
सारा कमाई पूरा पूरा घर पहुँचा देता है ।
वार्ड पंच साब गाँव के उन चंद लोगों
में से हैं , जो नियमित टी वी देखते हैं और ‘सब कुछ’ जानते है ।
[IV]
एक मुर्गी अपने चूज़ों के साथ बार
हमारी बेंच के नीचे घुसी चली आ रही है ।वहाँ गिरा जो भी उच्छिष्ठ था वे सब उसे
फुर्ती से चुग रहे थे । हमारे एक साथी ने
कहा कि आज शाम को चिकन बनाया जाए। उन माँ
बच्चों को देख मन करुणा से भर गया । फिर ध्यान से सोचा तो पाया कि वो करुणा जैसी
भावना असल में उबकाई थी । मैं अपनी इस
फीलिंग पर बेहद शर्मिंदा हूँ कि करुणा वास्तव में एक परिष्कृत उबकाई है ।
गाँव की ओर चढ़ते हुए मैं सोच रहा था कि
क्या हमें अपने इंस्टिंक्ट पर शर्मिंदा होना चाहिए?
गाँव
में प्रवेश करते ही एक व्यक्ति ने नमस्कार सर जी करते हुए हम से हाल चाल पूछा । हाव भाव से वह
सरकारी कर्मचारी लग रहा था । उस ने हमें चाय ऑफर की । मेरे सहयोगी चाय के मूड में
नहीं लग रहे । लेकिन मैं चढाई पार करने के बाद थक गया था और चाय की ज़रूरत महसूस हो रही है । ............. भाई मैं तो पिऊँगा एक कप । आप लोग चलिये तब तक
रेस्ट कीजिए। गृहणी ने आदर भाव से चाय के साथ उबले हुए अंडे प्रस्तुत किए हैं
। मुझे वो चूज़े और उन की माँ फिर से याद आ
गई। मैं वो अंडे न खा सका।एक बार फिर से सोच में पड़ गया कि यह करुणा थी या कि
उबकाई ?
[V]
शाम
घिर आई है । तो परंपरा के मुताबिक मेज़बान ने पूछा , सर जी ड्रिंक्स तो लेते होंगे आप ? टाईम हो चला है , पूरी टीम
को यहीं बुला लेते हैं । भोजन भी यहीं बन जाएगा । नहीं नहीं आप को नाहक कष्ट होगा। हमारा खाना स्कूल मे बन रहा है । मेज़बान
नहीं माना । उस ने देशी जौ की बढ़िया दारू सर्व की
है । सुरूर बनने लगा तो मुझे लगा कि अब वो अंडे खाए जा सकते हैं । देवी
देवता , पाप पुण्य, तीज त्यौहार, चमत्कार अनुष्ठान , जात पात , जड़ी बूटी , देसी
नुस्खे, चुढैल चरतरी ..... सारा कुछ कवर किया हम ने । यही सब चर्चाएं करते हुए एक बोतल लुढ़का ली । फक़त हाईडल प्रोजेक्ट , पर्यावरण
और पॉलिटिक्स को नहीं छेड़ा । मेज़बान के
शब्दो में – क्या बोलना जी अब , मै कहा
मुलाज़िम हो कर क्यों खामखा ..........सरकार जो चाहेगी कर के रहेगी ।
जी जी , चुप रहने में ही भलाई है ।
मेज़बान मेरा रिश्तेदार निकला । मेरे चचेरे भाई की पत्नी का
मामा । गाँव में दारू पीने का यही सुख है
कि बोतल खाली होने से पहले कोई न कोई रिश्ता ज़रूर निकल आता है । और दूसरी बोतल उस
रिश्ते को सेलिब्रेट करते हुए पीनी पड़ती है । और वाक़ई , यह एक सुखद अहसास होता है
। हम इनसान एक दूसरे से रिश्ता जोड़ कर बेहद खुश होते हैं । जानवरों में ऐसा
मुम्किन नहीं हो पाता होगा । या क्या पता , होता भी हो ! हम जानवरों के बारे बहुत
कम जानते हैं । टी वी चैनल पर देखिए तो लगता है हम जानवरों के बारे बहुत कम जानते
हैं ।
22.06.2013
नदी के शोर से नींद टूटी है । मयाड़ की
नदी खूब गरजती हुई बहती है। सुबह के साढ़े पाँच बजे हैं । मैंने खुद को उसी
रिश्तेदार के घर सोता हुआ पाया। रात को
खटमलों और पिस्सुओं ने खूब दावत उड़ाई है । देह में जगह जगह रैशेज़ पड़ गए हैं । कई
जगह तो खरौंचें भी लग गई हैं । बचपन में कहते थे
ये भूत के पंजों के निशान हैं । सुबह
उठने पर हमें शरीर पर जगह जगह लम्बी लाल लकीरें दिखती और हम घबरा जाते। माँ कहतीं
, कुछ नहीं भूत के पंजों के निशान हैं । दिन तक गायब हो जाएंगे । शाम तक खेल कूद
में हम मस्त रहते लेकिन रात को सोते समय खरौंचें मिट गई होतीं थीं ! और हम सोने से पहले विस्मित
हो कर भूतों के रहस्यलोक में विचरण करने लग जाते । अगली सुबह फिर वही लम्बी लम्बी
लाल लकीरें । इस तरह बचपन में भूतों से मैं कभी नहीं डरा ।मैं जानता था कि वे
ज़्यादा नुकसान नहीं करते थे । अलबत्ता मैं खरौंचने वाली उन रहस्यमयी चीज़ों से मिलना ज़रूर चाहता था ।
मेरे गाँव वाले घर में
मवेशियों का बाड़ा रिहायशी घर से अलग हट कर के होता था ।और घोप 8
भी । तो हमारा घर अपेक्षाकृत स्वच्छ
, हाईजिनिक और कीट मुक्त माना जाता
था। फिर भी खटमल और पिस्सू और घास के कुछ
कटीले रेशे माँ के ऊनी कतर 9 के साथ चिपक कर घर में आ ही जाते थे ।यह राज़ मैं
बहुत बड़ा होने के बाद ही जान सका था ।
[II]
गाँव जाते ही बचपन रह-रह कर याद आने
लगता है । मैंने खिड़की खोल दी है । ताज़ा हवा का एक झौंका भीतर आता है , जिस में काईल
, दयार और जुनिपर (सरू ) की खुशबू भरी है
। इस खुशबू से मुझे सन पचहत्तर का बर्गुल गाँव याद आ गया । मासी के साथ
बिताए वे दो साल मेरे जीवन के अद्भुत साल थे । मासी की वहाँ नौकरी लग गई थी , और
मुझे उन के साथ भेज दिया गया। गाँव के लोग इंडिविजुअली हम से संबंध बढ़ाने को
उत्सुक रहते थे लेकिन सोशियली हम से दूरी
रखने का दिखावा भी करते थे । शायद मुलाज़िम से दूरी रखने का दिखावा ज़रूरी समझा जाता
होगा । आबाल वृद्ध यह रवैया उन के व्यवहार में झलकता था । मुझे यह बड़ा असहज लगता । फिर भी गाँव में
‘शामिल’ रहने की मेरी हरचंद कोशिश रहती
। क्या उम्र थी तब मेरी ? महज़ दस वर्ष ।
राम, राजू, अमीर, देवी , निमू, प्रताप, राकेश, रमेश.... तमाम मासूम चहरे मेरी
स्मृति में घूम गए हैं । सन पचहत्तर के बर्गुल और
आज के घारी गाँव मे कोई फर्क़ नहीं है । सिवा एक सड़क के । आज का बर्गुल गाँव
कितना बदल गया होगा ? शायद बहुत कम । दूर से दिखता है ..... सड़क पहुँच गई है वहाँ भी , और मकान पक्के बन गए हैं । और लोग
? एक बार वहाँ जा कर लोगों से मिल आने की इच्छा
बलवती हुई है ।
[III]
बाहर चरवाहे की हाक लगी है । और उस
का अनुसरण करती एक लंबी सीटी । यह लाहुली गाँव की प्रभात फेरी जैसी है । बच्चे ,
औरतें , युवक युवतियाँ बड़ी उत्सुकता से अपने अपने खुड्डों 10 से
मवेशी खोल कर ले जाते हैं । गलियों से होते हुए गाँव से बाहर मगम 11
तक छोड़ आते हैं । इस बहाने सभी को सुबह की दुआ सलाम करने का मौका मिल जाता है । और
संक्षिप्त बतकही और तथा थोड़ी सी चुहलबाज़ी
भी । यूँ यहाँ की लोक भाषाओं में औपचारिक
अभिवादनो के लिए शब्द नहीं है ।लेकिन
मवेशियों के बहाने परस्पर संवाद स्थापित
हो जाता है । कुछ कुशल प्रवीण लोग तो उन्ही के बहाने मन की खट्टी मीठी भावनाएं व्यक्त भी कर लेते हैं । कुरोसावा के देरसु उज़ाला की तरह ।
गाँव का आदमी जलते अलाव की टहनियों और जंगली बाघ से भी बात कर सकता है । उन्हें डाँट सकता है ,
हिदायतें भी दे सकता है । कुछ बच्चे चरवाहे की सीटी से पहले ही मुँह अँधेरे मवेशी ले कर गाँव से बाहर पहुँच
जाते हैं । इस सारी परम्परा को मुंजि पाड़ी कहते हैं । यानि सुबह की पारी
। अ रीयल गुड मॉर्निंग, वेरी ऑरिजिनल , वेरी
नेटिव एंड ऑर्गेनिक ! यह सब याद करते हुए तुरत फुरत बिस्तर छोड कर
बाहर निकल आया । लेकिन बाहर एक दम ऐसा नज़ारा न पा कर तनिक हताशा हुई । मानो मेरी
यादाश्त के साथ साथ ग्राम्य सम्बंधो की वो
निर्दोष गरमाहट भी मद्धम पड़ने लगी हो। मवेशी गाँव से बाहर जा चुके थे , और गलियों
में कोई इक्का दुका ही जन दिख रहा था । वो भी अपने में मगन । आँगन में नल पर हाथ मुँह धोए और जंगल को निकल
पड़ा । इस गाँव के मकान आम लाहुली गाँव की तरह एक क्लस्टर में नहीं हैं
। दूर दूर बिखरे हुए से हैं । हर रास्ता
एक आँगन में खत्म होता है । खेतों पर प्रोपरली फेंसिंग और पगडंडी पर चक्का तलाई हो रखी है । गाँव से बाहर निकलने
का रास्ता नहीं सूझ रहा है ।लौट कर बार बार मुझे स्कूल के प्राँगण में आना पड़ रहा
है । क्यों कि वहीं से सब रास्ते फूट रहे हैं । जंगल मुँह के सामने दिख रहा है पर
घासनियों और खेतों के बीच से हो कर नहीं जा सकता
। घास पर ओस इतनी ज़्यादा है कि मेरे जीन्ज़, जूते और मोज़े बुरी तरह भीग सकते
थे । जाँघों तक ऊँची घास है । काफी देर तक इस भूल भुलेय्या में घूम लेने के बाद थक
गया और स्कूल में आ कर लैप टॉप पर संगीत सुनने लगा ... tell
me about the good old days , Grandpa …. थकावट में मीठी झपकियाँ आने लगीं ।
[IV]
अब की नींद खुली तो दरवाज़े पर
सेक्टर ऑफिसर खड़ा है । आँखें मलते हुए उठा , साहब को विश किया और बैठने के लिए
कुर्सी ऑफर की । किचन में जा कर देखा तो वालंटीयर सक्रिय हो चुके थे । नाश्ते की
तैयारियाँ हो रहीं थीं । रोटियाँ किसी के घर से बन कर पहुँच चुकी थीं और टीम मेंबर
बीन्ज़ की सब्ज़ी पका रहे थे । हम ने चाय पी और बूथ का इंस्पेक्शन करवाया ।उस के
बाद दही, बींन्ज़ की सब्ज़ी के साथ रोटियाँ खाईं । पिकनिक का सा
माहौल था । मतदान कल है । आज करने के लिए
कुछ नहीं था । सेक्टर ऑफिसर ने कहा मेरे साथ खंजर तक चलो शाम तक लौट आएंगे । खंजर
मयाड़ घाटी का आखिरी गाँव है । उस के आगे थान पट्टन का पठार है और दुर्गम काँग ला ग्लेशियर्ज़
शुरू हो जाते हैं । जम्मू काश्मीर की प्रख्यात ज़ंस्कर घाटी का प्रवेश द्वार । साहब
को कंपनी चाहिये थी । गाड़ी में दो बंदों की जगह थी , पर हम तीन थे । मैं मयाड़ नाला
खूब घूम चुका हूँ । साल में तीन चक्कर तो लग ही जाते हैं । आप लोग घूम आईए । मैं
यहीं रुक जाता हूँ । मैं फिर अकेला रह गया ।
एक फिल्म देखी , स्टेशन एजेंट । वह एक नाटे कद के चरित्र पर बनी बढ़िया फिल्म थी ।और बहुत प्रेरक । यह फिल्म भी काकू
ने रिकमेंड की थी ।
[V]
फिल्म खत्म हुई तो मैंने महसूस किया
कि एक बच्चा बड़ी उत्सुकता से मेरे साथ बैठा उस फिल्म का आनंद ले रहा है । वो
बच्चा आदित्य था । जहाँ कल रात मैं सोया था , उन का बेटा । कैसी लगी यह फिल्म, आदित्य ? पूरी नहीं देखी मैं तो अभी अभी
आया था । वो मुस्काया । निश्छल मुस्कुराहट । मम्मी ने कहा है आप को नहाना होगा तो
पानी गरम है और खाना भी तैय्यार है । नही , अभी कुछ नहीं । न नहाना न ही खाना ।
अभी हम जंगल घूमेंगे । तुम घुमाओगे मुझे ? बालों में हाथ फेरते हुए पूछा मैंने ।
बच्चे की आँखें खुशी से चौड़ी हो गईं । हाँ मुझे सभी रास्ते पता हैं ।
इस
गाँव में , वस्तुतः मयाड़ नदी के सम्पूर्ण वाम तट पर ; अच्छी वेजिटेशन है । क्वाँह्टि , कुछोणा ,
शकरग, अल्फफ, ञ्यो , ह्र्वसल, पेठड़, भुत्शुर , ल्हेबला, शेबला । मैं इन फूलों
और पेड़ - पत्तियों के नाम पूछता चल रहा
हूँ । आदित्य यथा सम्भव उत्तर दे रहा है । कल उस के पापा के साथ इन सब वनस्पतियों
के भैषजीय गुणो पर लम्बी चर्चा हुई थी । बहुत कम नाम पटन की नामावली से मैच करते
हैं । लेकिन रोचक बात यह है कि यहाँ के बच्चों ने कुछ पौधों और पक्षियों का अपना अलग
ही नामकरण कर रखा है । उन के नाम उन के रंग रूप आकार और ध्वनियों के अनुसार बेहद सटीक हैं और
दिलचस्प भी । इस नामकरण से गाँव के बच्चों या उन की माँओं की दृष्टि का भी पता चलता है । यह भाषावैज्ञानिक
अनुसंधान मेरे अंतर्मन के लिए एक सुंदर सुखद
केलि है । नामकरण की
इस प्रक्रिया को भाषा और संस्कृति की ताज़गी और जीवंतता से जोड़ता हूँ । ये
प्रवृत्ति मयाड़ के लोक गीतों में भी मिलती है । असल में यहाँ की तमाम परम्पराएं
स्थिर पोखर न हो कर सतत परिवर्तनशील
गतिमान नदियाँ हैं , और यही मयाड- घाटी का मुख्य आकर्षण है मेरे लिए ।
हमें बहुत से पक्षी मिले हैं जो बचपन
के बाद आज ही देख रहा हूँ – चिक चिक प्या , चर्किटिग, भुतुतु , शु-टग-टग
.....।मेरे गाँव से ये सारे पक्षी क्यों
भाग गए होंगे ? क्या इस लिए कि वहाँ सड़क
बहुत पहले पहुँच गई थी ? क्या हम ने उन के संसाधनों पर कब्ज़ा कर लिया है ? क्या इस
गाँव से भी ये सारे जीव भाग जाएंगे और
वनस्पतियाँ एक एक कर के लुप्त हो जाएंगी ? भीतर टीस सी उठ रही है । पेड़ों से सूड़ी
12
( सदाबहार वनो के सूई नुमा पत्ते ) गिरने से जंगल
की मिट्टी नम और नरम हो गई है । उस पर पालथी मार कर बैठ जाता हूँ । सिर भन्ना रहा
है ।
पानी कितनी दूर मिलेगा ?
बस थोड़ी ही दूर जाने पर मिल जाएगा ।
मेरी आँखों के आगे अँधेरा छा रहा है
। मुझे थोड़ी देर लेटना है यहाँ । पास ही कहीं ककशोटी 13
की सुमधुर कूक गूँज रही है । घाटी
इस पोलिफॉनिक ध्वनि से भर रही है । मैं बेसुध लेटा हूँ ।
[VII]
पता नहीं कितनी ही देर लेटा रहा ।
नींद टूटी तो वह बच्चा मुझे झिंझोड़ रहा है
। उस के हाथ में छाछ की एक कटोरी है । और सत्तू का एक डब्बा ।
अंकल आप को भूख लगी है शायद ।
हाँ शायद । लेकिन तुम ये कहाँ से ले
आए ?
मैं खेत पर गया था । मम्मी ने कहा
ये ले जाओ अंकल को जागने पर ये खिला देना ।
छाछ बहुत मीठी थी । मैं उस में
सत्तू घोल घोल कर खाने लगा । बड़ी ऊर्जा मिली और ताज़गी महसूस हुई ।
आदित्य , तुम्हे कुछ और काम नहीं है
तो कुछ देर और घूमें हम ?
हाँ घूमेंगे । मुझे भी जंगल में
घूमना अच्छा लगता है । और आप से बात करना भी ।
मैं खुश हुआ । लेकिन साथ ही उदास भी हो गया । मेरी बातें अच्छी हैं
, लेकिन किस काम की ? क्या इस बच्चे और उस की पीढ़ी के सपनों में कुछ जोड़ सकती हैं
मेरी ये मन भावन बातें ? मैं इस विनम्रता , कोमलता और इन नॉस्टेल्जिक संवेदनाओं के साथ कितना आगे जा सकूँगा ? पर मैं ये तमाम चीज़ें छोड़ कर भी कहाँ
तक जा पाऊँगा ?
[VI]
चकोर पक्षियों का एक जोड़ा ठीक हमारे
बगल से उड़ा है । इस सीज़न में चकोर के अंडे मिलते हैं ?
हाँ जी अंकल ।
बच्चा रोमाँचित था ।
लेकिन मम्मी ने बताया था कि उस के अंडे नहीं खाने चाहिए ।
अंडे में उस के बच्चे होते हैं ।
तो तुम ने कभी चकोर के अंडे नहीं
खाए ?
खाया था एक बार । केवल एक अंडा । वो
मिट्टी में पड़ा मिला । ऐसे ही बाहर । मम्मी ने कहा था उस का पाप नहीं लगता । उस मे बच्चा नहीं
होता । उसे सूरज का अंडा कहते हैं ।
वाह! सही कहा तुम्हारी मम्मी ने । पर
क्या तुम जानते हो , कुछ बच्चे भी सूरज के
होते हैं । सूरज उन्हें तपा कर बड़ा करता है । बर्फ की हवाएं उन की चमड़ी को कठोर बना देती हैं । फिर उन के साथ कुछ भी करो , पाप
नहीं लगता ।
बच्चा विस्फारित नेत्रों मुझे देख रहा है । चकोर के बच्चे , अंकल ?
अरे नहीं , इनसानी बच्चों की बात कर
रहा हूँ ।
हाँ जी अंकल , पर दर्द तो होती होगी
उन को भी !
पता नहीं यार ! यह जानने के लिए
हमें भी उन में से एक होना पड़ेगा । चलो
अगले नाले तक घूम आते हैं । शायद वहाँ खूब पानी है ।
[VII]
इस जंगल में बड़े मोटे मोटे मच्छर
भिनभिना रहे हैं । मेरी जानकारी के मुताबिक रोह्ताँग के इस पार मच्छर नहीं होते । मैंने
बच्चे से पूछा लेकिन उस के ध्यान में यह बात कभी आई ही नहीं । आगे जा कर एक
बुज़ुर्ग मिले । उन्हों ने बताया कि वैसे तो यहाँ मच्छर नहीं होते , पर इस मौसम में
गद्दियों के भेड़ बकरियों के साथ ये आ जाते हैं । कुछ दिन जीते हैं बाद में मौसम
बदलने पर मर जाते हैं । वे यहाँ प्रजनन नहीं करते । हवा पानी माकूल नहीं है । मैं
विस्मित था कि छोटी छोटी प्रजातियाँ इस
तरह से ट्रेवल करती हैं । और कोई आश्चर्य नहीं कि कभी ये यहाँ पर मल्टिप्लाई भी
करने लग जाएं ! क्यों कि हिमालयी जलवायु
का रुझान निरंतर बदल रहा है और इन जीवों के गुणसूत्रों में अनुकूलन की अद्भुत
क्षमता होती है ।
[ VIII ]
नाले के किनारे एक जगह मैंने कल्याष के छोटे छोटे पौधे देखे । मैं खुश हुआ । यह
पौधा लाहुल में बहुत कम स्थानो पर मिलता है । मेरे गाँव में बहुतायत में है । सूखा
पड़ जाए तो हमारी सारी घासनियाँ इस से भर
जाती हैं । मैंने सल्ग्राँ जाते हुए जंगल में ये पौधे देखे हैं ।वहाँ भी इस का नाम
कल्याष ही है । लोक में मान्यता है कि इस पौधे के आस पास खुम्भ
उगते हैं । आदित्य ने बताया कि बारिश होने पर यहाँ खूब खुम्भ उगते हैं ।हर तरह के
- दवाई वाले , ज़हरीले और सब्ज़ी बनाने वाले
भी । लेकिन उसे खुम्भ और कल्याष के अंतर्संबंधों की जानकारी नहीं थी । हम लम्बी
हरी घास में घंटों खुम्भ खोजते रहे । लेकिन कुछ हाथ न लगा । फिर हम एक टीले पर चढ़
गए । वहाँ एक तरफ को सुंदर खेत बने हुए थे ।और
एक छोटी सी गौशाला । जंगल घना नहीं था ।नाले का शोर नीचे छूट गया था । यहाँ
चारों ओर सन्नाटा फैला था । खेत के
किनारे एक युवती मोबाईल पर बात कर रही थी
। अरे वाह ! सिग्नल !!
उस युवती ने हमें बताया है कि वह मायके आई हुई है और यह भी
कि इस टीले पर मोबाईल सिग्नल पकड़ता है। हम कोशिश करते रहे लेकिन मेरे मोबाईल में
सिग्नल नहीं आया । मुझे निराश देख कर उस ने
अपना मोबाईल हमें सौंप दिया और घर
लौट गई। मेरी बात हो गई है, आप इस सेट से ट्राई करें । इस का सिग्नल अच्छा है । बहुत
देर तक कोशिश करने के बाद एक घंटी गई । सवि ने फोन उठाया भी , लेकिन बात नहीं हो
पाई। फोन साईलेंट हो गया । और मन क्षुब्ध
। सुनसान पहाड़ों का यह निपट नैसर्गिक
सन्नाटा मैं सविता के साथ शेयर करना चाह
रहा था । मनहूस मशीन ने कहाँ साथ देना था ? बच्चे की फीस , पढ़ाई , करियर , मकान,
प्रॉपर्टी आदि की बात होती; पोस्टिंग
,ट्रांस्फर का इश्यू होता या कोई पारिवारिक बहस या झगड़ा ही करना होता तो तुरत फोन लग जाता ! जंगल से गाँव लौटते हुए मैंने उस युवती को
मोबाईल लौटाया और तहे दिल से धन्यवाद दिया । मेरा धन्यवाद दरअसल उस युवती के लिए न
हो कर उस गाँव के लिए था जिस ने अभी तक वो
सादगी कायम रखी हुई थी जिस के चलते कोई
अपना पर्सनल मोबाईल किसी अजनबी को बिना किसी दुविधा के सौंप देता है । गाँव, तुम ऐसे कैसे हो ...... ?
[IX]
आदित्य को थेंक्स कह कर जब स्कूल
लौटा तो देखा कि वहाँ पीतल के व्हारू में मटन पक रहा था । क्या है , बकरा या भेड़ ?
पता नहीं सर जी , कसाई भी आज कल चालू हैं । नीचे का आदमी पूछे तो कहेगा बकरा है , लोकल को तो भेड़ ही बताएगा ।
लाहुल के आदमी को भेड सूट करता है । परदेसी तो बकरा ही खाता है । मसाले खूब महक
रहे हैं । मयाड़ में चौंरा होता है क्या ? किसी को पता नहीं । कल इस जड़ी के बारे
बात भी नहीं हुई । चलो कोई बात नहीं , हरे धनिए तो मिल जाएंगे ... ऐन बारीक़ काट
के मीट के ऊपर टिच सजा के खाएंगे भाईयो ....... मैं ने देसी भाषा का तडका
लगाया तो होम गार्ड वाला जीभ चटकाता बोला --
क्या बात कही है सर जी ! आज वाटर कैरियर ने दो बोतलें लाईं हैं । कल की
आधी बची थी । हम ने रात भर जम कर पी और
बतियाते रहे। कुछ लोग पत्ते भी खेले । दारू और जुआ भीतर की कुंठाएं उलीचने
का सब से आसान तरीक़ा हैं । सुबह बंदा फ्रेश उठता है । एकदम निवृत्त । अगली ड्यूटी के लिए फिट । यही वजह है
कि प्रायः शराबी जुआरी टाईप आदमी मेरी तरह काम के समय भी फालतू विचारों में खोया
नहीं रहता। फक़त काम करता है और पूरी सक्षमता दिखाता है ।
23.06.2013
[I]
आज पोलिंग है । हम ने छह बजे उठ कर तैयारियाँ
करनी शुरू कर दी हैं । सिक्यॉरिटी वालों
के वायरलेस सेट चीखने शुरू हो गए हैं । हम ने ठीक साढ़े सात बजे मॉक पोल करवाया ।
एक एजेट काँग्रेस का है और और एक ही बी जे पी का । दोनों में बहुत प्रेम भाव है ।
सच्चे मन से दोनो अपनी ड्यूटी कर रहे हैं । गाँव का आदमी अपनी बॉडी लेंग्वेज और
फेस एक्स्प्रेशन नहीं छिपा पाता । कोई भी आसानी से जज कर सकता है कि किस को वोट
दिया है बंदे ने । कुल 116 वोटर हैं , और पोलिंग पार्टी में चार जनों के पास ई डी
सी है। मैंने भी अपनी ई डी सी नहीं बनवाई।
आज नाश्ते में पूरी, चने और दही मिले हैं । मतदान कछुए की गति से हो रहा है
। हर दस बारह मिनट पर तीन चार लोग आ कर वोट डाल जाते हैं । कुछ लोग बूथ में आ कर
हँसी ठट्ठा भी कर जाते हैं । कुछ गम्भीरता पूर्वक मतदान करते हैं ।
[II]
शाम पाँच बजे ई वी एम क्लोज़ हुआ
, 82 वोट पड़ चुके हैं । ई डी सी के साथ 86 हुए . कुल मिला कर यह
सत्तर प्रतिशत बना जो कि लाहुल के लिए ज़बर्दस्त पर्सेंटेज है । हमें लेने एक बुलेरो कैंपर आया है । उस मे केवल चार आदमी आ सकते थे ।
सिक्यॉरिटी स्टाफ को सामान के साथ पीछे
बैठना पड़ा । साढ़े सात बजे गोठ से हम ने
मुख्य बस पकड़ी है और केलंग के लिए रवाना हो गए। आठ बजे उदयपुर पहुँचे तो हम थक भी गए थे और अच्छी खासी भूख लगने लगी थी । बस में तकरीबन आठ पोलिंग टीम्ज़ थीं । और उन सब के ई वी
एम और अन्य मतदान सामग्रियाँ । भूख के बावजूद सभी ने फैसला लिया कि सब कुछ निपटाने के बाद डिनर केलंग मे ही किया जाए। तंदी संसारी नाला
सड़क पर वाईडनिंग हो रही है । रास्ता खूब ऊबड़ खाबड़ और धूल भरा है । जम्प लग
लग कर खोपड़ी और जबड़े सुन्न हो रहे हैं , और बस है कि 15 कि मी. की गति से चली जा रही है । रात साढ़े दस बजे हम बारिंग गाँव के नीचे हॉप्स
किल्न 14 पहुँचे हैं । अचानक तेज़ आवाज़ से कोई धातु की चीज़ सड़क पर
गिरी । घड़ घड़ करती बस थोड़ी दूर जा कर रुक गई । घुप्प अँधेरा । आस पास कोई बस्ती
नहीं । सुनसान सड़क । टॉर्च की रोशनी से ड्राईवर ने जाँच की। पिछले टायरों की कमानी
टूट गई है । बस आगे नहीं जा सकती । मोबाईल पर कोई सिग्नल नहीं । वायर लेस से संदेश
भेजने की कोशिश हो रही है , लेकिन फ्रीक्वेंसी नहीं पकड़ मे आ रही। केलंग यहाँ से
तीस किलोमीटर दूर होगा ।
[III]
किसी ने बताया कि पिछली किसी मोड़ पर
सिग्नल दिख रहा था । पता करने के लिए कुछ लोगों को पीछे भेज दिया गया और मैं कुछ लोगों के साथ आगे की ओर निकल
गया हूँ । चाँदनी नहीं है , हाथ को हाथ
नहीं सूझ रहा । मौसम खराब है । हवा का कोई तेज़ झौंका आता और हम पर खूब सारी धूल और रेत उंडेल जाता । लोग मोबाईल की टॉर्च
जला कर रोशनी किए हुए हैं । सभी लोग टॉर्च न जलाएं। बारी बारी से बैटरी खर्च करें । क्या पता अभी कितनी देर और रुकना पड़ता है
? डेढ़ दो किलोमीटर तक कोई सिग्नल नहीं है ।
मेरा अनुमान है कि एकाध किलोमीटर पर कोई लेबर कैम्प मिलना चाहिए, जहाँ हम
कुछ खा सकते हैं । लेकिन दूर दूर तक
इनसानी बस्ती का नामोनिशान नहीं । अँधेरों और धूल की आँधियों के सिवा कुछ नहीं है । भूख और ठंड से
मेरा बुरा हाल है । एक कप काली चाय ही मिल जाती , कुछ जिस्म में गरमाईश आती । तीन दिन जो पिकनिक मनाए थे , सारी कसर निकल गई। एक साथी ने अपनी जेब से काजू
के चार दाने निकाल कर पेश किए हैं , मेरी जान में जान आ गई। इस समय वह आदमी मुझे ईश्वर सा लग रहा है । मैने पहले धूल भरी लार थूकी, फिर रुमाल से
दाँत जीभ आदि पोंछ एक दाना मुँह में डाल
कर आहिस्ता आहिस्ता उसे चबाने लगा । बाक़ी के तीन दाने मैंने जेब मे डाल लिए, बुरे
वक़्त के लिए । हम ने आगे जाने की बजाय बस की ओर लौटना उचित समझा ।
[IV]
आधा घंटा बाद उदयपुर की ओर से एक
युटिलिटी वैन आई और बस के ठीक पीछे लग गई। इस मे कोई सेक्टर ऑफिसर है, जिसे हमारी बस को एस्कॉर्ट करने के आदेश हुए
हैं ; लेकिन अँधेरे में पहचाने नही जा
रहे। ऑफिसर दुबक कर भीतर बैठा रहा , बाहर आ कर हाल चाल पूछने की हिम्मत नहीं की उस ने । जनता खीझ गई इस
हरक़त से । अभी हवा कुछ कम हुई है और लोग
सड़क पर जहाँ तहाँ बैठे छोटी छोटी मंडलियों में बतिया रहे हैं । कोई प्रशासन को कोस
रहा है तो कोई बी एस एन एल को । कोई प्रेत चुड़ैलों के क़िस्से सुना रहा है , कोई मणि
महेश 15 यात्रा के संस्मरण । पुलिस के नए लड़के और दफ्तरों के नए
बाबू कानो में ईयर फोन फँसाए म्यूज़िक सुन रहे हैं ।
[V]
तक़रीबन साढ़े ग्यारह बजे हमारा
सेक्टर इंचार्ज केलंग से पहुँचा है । प्रशांत सरकैक विनम्र और सुलझा हुआ प्रशासक
है । उस के बुलेरो का एंटेना सड़क पर
घिसटता आ रहा है । साथ बैठे हवल्दार का गेट अप देख कर मुझे फिल्मो वाले बिहारी पुलिस मैन याद हो आए । शर्ट के बटन खुले हुए , और तोंद शर्ट से बाहर छलकती हुई । टोपी उस ने
पतलून की बाईं जेब में खोंस रखी है । बंदा किसी ढाबे में खा पी रहा होगा वहीं से
कोई उठा कर लाया है ।
हिमाचल मे इतना सा बिहार तो आ ही गया है ... यह सोच कर मेरे भीतर कुछ काँपा
। उन का वायरलेस सेट ज़ोर ज़ोर से चीख रहा है – चार्ली वन से क्यों कॉंटेक्ट करना
चाहते हो ..... चार्ली वन से क्यों .......... !
अबे बंद कर इसे, क्यों कान खा रहा है ! अँधेरे का लाभ उठा कर कोई
बोला । सेक्टर साब सहम कर रह गए। हवलदार ने वायरलेस सेट ऑफ करने के बाद एंटेना सम्हालते
हुए कहा -- सर जी कीप पेशेंस , जनाब लोगों
की बस आ रही है । ऐसी कोई बात नहीं है । सिक्यॉरिटी
भी पहुँच रही है । सड़क पर कुछ पल सन्नाटा छाया रहा । दोनों जन गाड़ी
में बैठे रहे । “चार्ली का बच्चा न होवे .....”
कोई ज़ोर से हँसा । अँधेरी सड़क पर ठहाका फैल गया । कुछ लोग जो बैग में दारू बचा
लाए थे बेसब्र हो कर सड़क पर ही बोतल खोल कर के पीने लग गए थे शायद । एकाध और गाड़ियाँ आ गईं हैं
। बुलेरो हमारी बस के आगे लगा दी गई है । एक और मोबाईल सिक्य़ॉरिटी वैन बस के
दाहिनी तरफ को खड़ी कर दी गई है । बाईं ओर तो पहले ही पहाड़ खड़ा था । अब हमारे ई वी
एम और सभी दस्तावेज़ चारों ओर से सुरक्षित हो चुके है । फिर भी सिक्य़ॉरिटी वाले और मेजिस्ट्रेट
घबराए हुए हैं । और पोलिंग टीम्ज़ की
बद्तमीज़ियाँ सहन कर रहे हैं । कहीं
चिड़चिड़ाहट में स्थिति नियंत्रण से बाहर न हो जाए । आधी रात के इस बियावान में न तो पर्याप्त सुरक्षाकर्मियों का
सहारा है, न ही आस पास के गाँव से कुछ कुछ
मदद की उम्मीद ।
[VII]
ठीक साढ़े बारह बजे एक और बस आई है ।
अब प्रस्थान के आसार नज़र आने लगे थे । हम सब सामान सहित नई बस मे शिफ्ट हो गए हैं
। बस में तनाव भरा सन्नाटा है । फूड़ा गाँव में केलंग डिविज़न के ए आर
ओ मिले । उस ने हम सब की खैरियत पूछी और
असुविधा के लिए खेद प्रकट किया । तनाव कुछ कम हुआ । हम आश्वस्त हो कर सीटों
पर पसर गए । अढ़ाई बजे हम केलंग टाऊन के प्रवेश द्वार पर मंदिर के
पास रुके हैं । क्लेक्शन सेंटर स्कूल में है । हॉस्पिटल और स्कूल के बीच इकलौता
सोडियम लाईट जल रहा है । पूरी ढलान पर यही एक रोशनी है । नीम अँधेरे में हम सामान उठाए लगभग लुढ़कते हुए स्कूल तक उतरे
हैं । उपायुक्त महोदय ने मुस्कराते हुए हमें वेल्कम किया है । हेंडिंग ओवर की औपचारिकताएं करते करते तीन बज गए हैं । इलेक्शन कानूनगो नया लड़का था ।
एक एक लिफाफा चेक कर के ले रहा था । दाल
चावल गरम हो रहा है , सब लोग कृपया भोजन कर के ही प्रस्थान करेंगे । भूख तो कब की
मर चुकी थी । फिर भी ठंडे चावल और गरम दाल
पूरी खामोशी के साथ खाए हैं , आज्ञाकारी बच्चों की तरह । स्वाद का पता ही न चलता था । आँखें , नाक , मुँह
, कान , बाल , कपड़े सब धूल व रेत से लद गए हैं । कुल्ला करने के बाद भी जीभ और
दाँतों में रेत के कण किरकिराते रहे । मालूम नहीं इस भोजन से हम तृप्त हुए या नहीं
, जब मैं सो रहा था तो 24 जून की सुबह के साढ़े तीन बज रहे थे ।
***
नींद आने से पहले मैं यह सोच रहा था
कि तीन दिनो की इस रोमाँचक आऊटिंग के अंतिम
आठ नौ घंटे इतने अरुचिकर और असुविधाजनक क्यों हो गए थे ? फिर इस इस नतीजे पर पहुँचा कि सभ्यता से
दूर क़ुदरत की गोद में खूब सुकून था और मन
में शाँति थी । ज्यों ही हम सभ्यता की ओर
लौटे , चित्त में नकारात्मकता आने लगी और
वह विकल होने लगा । काश इस यात्रा को मैं
हमेशा के लिए रिवर्स कर पाता !
1. शहतीरों
और फट्टों से बनी अस्थाई पुलिया 2 . लेखक का प्रिय मित्र
और रिश्ते में मामा । 3.
लाहुल ( वास्तविक उच्चारण के अनुसार ) 4. सगोत्रीय 5 . मयाड़ नाला पर दो जलविद्युत परियोजनाएं प्रस्तावित है . उन
मे से एक इसी गाँव में मंज़ूर हो चुका है . और काम भी आरम्भ हो चुका है । 6. नेपाली
7. मंडी और काँगड़ा ज़िले के लोग . हिमाचल
में इन दो ज़िलों में सीमित संसाधनों के बावजूद
पिछड़ापन सब से कम है ।यहाँ के लोग भी परिश्रमी और तेज़ तरार माने जाते हैं ।
आधुनिक सभ्यता से जुड़े हुए लोग । 8.ड्राई लेट्रिन। मोरावियन मिशनरियों ने लाहुल
में ऊर्वरक के रूप में मानव मल प्रयोग
करने की परम्परा शुरू की । इसी कारण यहाँ ड्राई लेट्रिन लोकप्रिय हुए । 9 . लाहुल स्पिति की स्त्रियों का विषेष परिधान. 10. पशुशाला 11. मवेशियों के जंगल जाने का रास्ता 12 .
हींग प्रजाति की विशेष वनस्पति
13. कोयल प्रजाति का एक पक्षी जिस की आवाज़ बेहद कर्ण प्रिय होती है 14.
हॉप्स सुखाने की भट्टी । हॉप्स के पराग बीयर के फर्मेंटेशन के लिए प्रयोक्त
होते हैं . आठवें दशक में हॉप्स एक
लोकप्रिय नकदी फसल था । 15. भरमौर (
चम्बा) में स्थित एक तीर्थ स्थल . लाहुल
के अधिकतर हिंदू शैव हैं और मणि महेश की यात्रा यहाँ की एक लोकप्रिय
गतिविधि है ।