बातों बातों में शिव बटालवी का ज़िक़्र चल पड़ा. मैं कवियों की केवल कविताओं से अभिभूत रहता हूँ , उन की व्यक्तिगत ज़िन्दगी के बारे मुझे खास कुछ पता नहीं रहता. यह मेरी सीमा ही है. विनोद के पास शिव के मुतल्लक़ बड़ी दिलचस्प जानकारियाँ हैं . मसलन, शिव बटालवी बैजनाथ में किसी संस्था मे इंजीनियरिंग पढ़ रहा था तो एक लड़की के इश्क़ मे पड़ गया. उस लडकी की शादी हो गई तो शिव उस का पीछा करता हुआ लन्दन पहुँच गया. और यह कि उस का शिमला बहुत आना जाना था. एक एक रात कमला नेहरू हॉस्पिटल के पास स्ट्रीट लाईट के नीचे बैठ कर पव्वा पीते हुए उस ने अपने एक दोस्त को ‘लूणा’ का पहला ड्राफ्ट सुनाया.
यह‘लूणा” क्या है ?
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विनोद ने बताया कि पंजाब के ‘पूरण भगत’ नामक लोक आख्यान की नायिका ‘लूणा’ को लेकर शिव बटालवी ने इसी शीर्षक से एक काव्य नाटक लिखा है..मूल आख्यान मे लूणा बूढ़े राजा सलवाण की जवान रानी है जो राजा के बेटे पूरण की हम उम्र है. एक बार लूणा पूरण पर कामासक्त हो कर उस से यौन निवेदन कर बैठी. पूरण के मना करने पर लूणा ने अपने रुतबे का दुरोपयोग कर उस मरवा डालने की कोशिश की . उस के हाथ पैर कटवा कर कुँएं में फिंकवा दिया ................
अरे हाँ, याद आया लूना ..... वो तो पंजाबी साहित्य की कुख्यात ‘वेम्प’ है . पूरण भगत की कथा से मैं परिचित था. शायद इस का एक मंचन ( या रिहर्सल) भी चंडीगढ़ मे देखा है. लेकिन शिव के इस काम के बारे मुझे जानकारी नही थी . मैं अपनी सीमित जानकारी को ले कर मैं झेंप सा गया. जी अजेय भाई, वही लूना. लेकिन बटालवी ने एक तरह से लूणा को पुनर्सृजित किया, जिस मे वह उस रवायती कलंक से मुक्त हो गई. इस काव्य नाटक में लूणा की पारम्परिक चरित्रहीनता को , उस की दैहिक वाँच्छाओं को सहज मानवीय वृत्ति के रूप मे जस्टिफाई किया गया है. फिर हम ने पाश, पातर , खुशवंत सिंह और भिंडराँ वाला से ले कर दुल्ला भट्टी , हीर, वारिस, बुल्ले शाह , सुलतान बाहू , नानक तक को याद किया. 1983 के गोल्डन टेम्पल और1984 की दिल्ली को याद किया. विनोद ने भिंडराँवाला को इन्दिरा गाँधी का प्रोडक्ट बताया और मैं उसे खालिस्तान आन्दोलन मे संघ परिवार की दोगली भूमिका समझाता रहा. अंततः हम दोनो सहमत थे कि राजनीति और सत्ता की हवस आदमी से कुछ भी करवा सकती है.
पूरण भगत का कुँआ -- फोटो साभार गूगल
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इस मुलाक़ात में विनोद ने एक बड़ी महत्वपूर्ण बात कही कि हम ने पंजाब से अलग हो कर एक बेशकीमती संस्कृति की ग्रोथ पर पाबन्दी लगा दी है. हमारी एक साँझी सांस्कृतिक विरासत थी. अजेय भाई, इस बटवारे में हम ने क्या खट लिया ? राजनैतिक सरहदों ने पंजाब और हिमाचल की साँस्कृतिक आवाजाही पर रोक लगा दी है जब कि तरह तरह के माफियाओं के लिए द्वार खुले रखे हुए हैं .
लगभग सही कहा है उस ने ; मैंने अपने आप से कहा -- यहाँ एक बहुत ही खराब क़िस्म का फिल्टर लग गया है जिस से हिमाचल की नई पीढ़ी को पंजाब की छाछ तो बखूबी मिल रही है, जब कि उस की क्रीम के स्वाद से वह वंचित रह गई है.? क्या पंजाब का इंटेल्लेक्ट भी इस तरह से सोचता होगा ?क्या उसे ऐसा सोचने की ज़रूरत है ? पता नहीं क्यों , पंजाब पर की गई हर चर्चा के अंत में मैं खुद को एक हीनता बोध से ग्रस्त पाता हूँ . मन के कोने मे एक पुरानी सी खटास पैदा हो जाती है ... ! कवियों वाली व्हिस्की की आखिरी घूँट में भी मुझे इस छाछ की फ्लेवर आई. इस फिल्टर का क्या उपाय किया जाय ?
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रात के लगभग 12 बजे लोअर केलंग में जनजातीय संग्रहालय के बाहर स्ट्रीट लाईट के नीचे मैं और अजय लाहुली उस के सेंट्रो एल एक्स मे बैठ , लाहुल की अस्मिता , देव परम्परा और मठव्यवस्था, मुख्यधारा और सबाअल्टर्न , जातिवाद , डिस्कस कर रहे हैं . पुलिस वाला आया है और अजय से थाने तक की लिफ्ट माँगी है क्यों कि उस का घर उधर ही पडता है...... साथ मे मुझे सो जाने की सलाह दी है .