Monday, April 30, 2012

तुम्हारी आंतरिक सुरक्षा - 2

इरोम शर्मिला पूर्वोत्तर मे लागू  एक गैरज़रूरी कानून  Armed Forces Special Powers Act  1958 के विरोध मे पिछले 12 वर्षॉं से अनशन पर है. मीडिया वाले नाक मे नली वाली इस  'चिंकी' लड़की को नहीं पहचानते. उस की कविता और सिविल एक्टिविज़म को गप्प मानते हैं.












तुम्हारी आंतरिक सुरक्षा कड़ी मे दूसरे पोस्ट के रूप में इरोम शर्मिला ग्वालियर के कवि अशोक कुमार पाण्डेय की विचारोत्तेजक और महत्वपूर्ण एवम चर्चित   कविता


एक राष्ट्रभक्त का बयान


कोई नहीं रह सकता भूखा बारह साल तक 

पक्के तौर पर अफवाह है यह कि एक औरत बारह साल से भूखी है 

ऐसे में यह ज्यादा विश्वसनीय है कि वह औरत मर चुकी है कोई ग्यारह साल और तीन सौ दिन पहले 

आप चाहिए तो देख लीजिए गिनीज बुक आफ वर्ड रिकार्ड 

उसमें कहीं नहीं है उसका नाम 

और अगर है तो फिर उसे भूखे रहने की क्या ज़रूरत?



जो औरतें कपड़े उतार कर प्रदर्शन कर रही थीं कहाँ है उनकी तस्वीर ?

अरे इस तस्वीर में तो कुछ नहीं दिखता साफ़-साफ़ 

एक ही कपड़े से सबने ढँक ली है अपनी देह 

कोई खास एक्साइटिंग नहीं है यह तो  

हाँ उस कपड़े पर जो लोगो लगा है वह मजेदार है 

इन्डियन आर्मी रेप अस’ ... कूल!

ये चिंकी होते ही हैं निम्फोमैनिक....;)



सेना के खिलाफ कैसे लिख सकता है कोई ऐसा?

वे बार्डर पर हैं तो चैन से सो रहे हैं हम 

जो बार्डर पर हैं और सेना में नहीं हैं वे कैसे हो सकते हैं सेना से अधिक ज़रूरी 

जिन्हें मारती है सेना वे दुश्मन होते हैं देश के 

और देश के दुश्मन खाएं या मर जाएँ भूखे क्या फर्क पडता है?



ये नाक में नलियाँ डाले सरकारी पैसे पर मुस्कुरा रही है जो लड़की 

वह हो ही नहीं सकती इस देश की नागरिक 

बहुत सारे काम हैं इस सरकार के पास 

यह कम है कि उसके गाँव तक जाती है सड़क

एक प्राइमरी स्कूल है सरकारी 

और हमारे जवान दिन रात लगे रहते हैं उनकी सुरक्षा में 

और कौन सी आजादी चाहिए उन्हें और कौन सी सुरक्षा

भारत माँ की सुरक्षा में ही है सबकी सुरक्षा

जिन्हें दिक्कत हो चले जाएँ पाकिस्तान...


आप कैसे कर सकते हैं उसकी तुलना अन्ना से ?

सिर्फ भूखे रहने से कोई गाँधी हो जाता है क्या?

किस अख़बार में है उसकी खबर?

किस चैनल पर देखा उसे लाइव?

मैं तो कहता हूँ झूठ है यह सब

हो न हो कोई विदेशी षडयंत्र हमारे देश के खिलाफ

पाकिस्तानी दुष्प्रचार या चीनी विस्तारवाद की कोई चाल



और मान लीजिए सच भी है तो बड़े-बड़े देशों में होती रहती हैं ऎसी घटनाएँ छोटी-मोटी



छोड़िये यह सब...आइये मिलकर लगाते हैं एक बार भारत माता का जयकारा 

फिर शेरांवाली का...पहाडावाली का...जय हनुमान...जय श्री राम!



 
अशोक कुमार पाण्डेय <ashokk34@gmail.com> s





Thursday, April 19, 2012

तुम्हारी आंतरिक सुरक्षा ?


देश की अंतरिक सुरक्षा खतरे में है यही कारण है कि आज इसी मुद्दे पर दिल्ली में सभी मुख्य मंत्रियों की बैठक बुलायी गयी. अब सवाल है कि देश की अंतरिक सुरक्षा को खतरा किस बात से है ? प्राप्त सूचना के अनुसार भारत के अन्दर 19 बडी इंसर्जेंसीज चल रही हैं. यानि कि देश के भीतर ही बडे बडे खतरे पैदा हो गये हैं. आज की इस पूरी मीटिंग में जिन खतरों को गिनाया गया उसमें नक्सालवाद की तरफ इशारा करते हुए उसे आंतरिक सुरक्षा के लिये सबसे बडा खतरा बताया गया. अभी कोई दो तीन दिन पहले एन डी टी वी पर अभिज्ञान प्रकाश ने एक कार्यक्रम पेश किया था. इस कार्यक्रम का शीर्षक था ‘’क्या नक्सल्वादियों के आगे झुक गयी सरकार ?’’
आज प्रधान मंत्री और ग़ृहमंत्री चिदबरम के भाषण और दो दिन पहले के अभिज्ञान के कार्यक्रम के बीच मुझे झारखंड की एक आदिवासी कवियत्री निर्मला पुतुल की कवितायें एक एक कर याद आती रहीं. ऐसा इसलिये कि देश की अंतरिक सुरक्षा का बडा सवाल .......... आदिवासी जनजीवन ......उनकी माँग और नक्सलवाद ? यह प्र्श्नचिन्ह इसलिये क्योंकि अभिज्ञान के कार्यक्रम में आये लोगों ने जो चर्चा की उससे यह बात साफ साफ निकल कर आ रही थी कि नक्सलवाद का सम्बन्ध उन इलाकों से है जिन इलाकों में आदिवासी रहते हैं. क्या आपको यह बात हैरत में नहीं डालती कि इस देश के एक बडे हिस्से के नागरिक हथियार बन्द हो गये हैं? क्या ये सवाल परेशान नहीं करता कि अगर ऐसा है तो क्यों? यए सवाल कई और सवालों के साथ मुझे हर रोज परेशान करते हैं कि आखिर ऐसा क्यों है कि इस देश के 8 बडे राज्यों का एक बडा हिस्सा हथियार बन्द हो गया है और जवाब में पुतुल की एक कविता अपने पूरे वज़ूद के सामने खडी हो सवालों की झडी लगा देती है . आप भी पढें --
............................डा​. अलका सिह


अगर तुम मेरी जगह होते

जरा सोचो, कि
तुम मेरी जगह होते
और मैं तुम्हारी
तो, कैसा लगता तुम्हें?

कैसा लगता
अगर उस सुदूर पहाड़ की तलहटी में
होता तुम्हारा गाँव
और रह रहे होते तुम
घास-फूस की झोपड़ियों में
गाय, बैल, बकरियों और मुर्गियों के साथ
और बुझने को आतुर ढिबरी की रोशनी में
देखना पड़ता भूख से बिलबिलाते बच्चों का चेहरा तो, कैसा लगता तुम्हें?

कैसा लगता
अगर तुम्हारी बेटियों को लाना पड़ता
कोस भर दूर से ढोकर झरनों से पानी
और घर का चूल्हा जलाने के लिए
तोड़ रहे होते पत्थर
या बिछा रहे होते सड़क पर कोलतार, या फिर
अपनी खटारा साइकिल पर
लकड़ियों का गट्टर लादे
भाग रहे होते बाजार की ओर सुबह-सुबह
नून-तेल के जोगाड़ में!

कैसा लगता, अगर तुम्हारे बच्चे
गाय, बैल, बकरियों के पीछे भागते
बगाली कर रहे होते
और तुम, देखते कंधे पर बैग लटकाए
किसी स्कूल जाते बच्चे को.

जरा सोचो न, कैसा लगता?
अगर तुम्हारी जगह मैं कुर्सी पर डटकर बैठी
चाय सुड़क रही होती चार लोगो के बीच
और तुम सामने हाथ बाँधे खड़े
अपनी बीमार भाषा में रिरिया रहे होते
किसी काम के लिए

बताओं न कैसा लगता ?
जब पीठ थपथपाते हाथ
अचानक माँपने लगते माँसलता की मात्रा
फोटो खींचते, कैमरों के फोकस
होंठो की पपड़ियों से बेखबर
केंद्रित होते छाती के उभारों पर.

सोचो, कि कुछ देर के लिए ही सोचो, पर सोचो,
कि अगर किसी पंक्ति में तुम
सबसे पीछे होते
और मैं सबसे आगे और तो और
कैसा लगता, अगर तुम मेरी जगह काले होते
और चिपटी होती तुम्हारी नाक
पांवो में बिबॉई होती?
और इन सबके लिए कोई फब्ती कस
लगाता जोरदार ठहाका
बताओ न कैसा लगता तुम्हे..?
कैसा लगता तुम्हें..?
................... निर्मला पुतुल