15 अगस्त को केलंग मे मेला लगता है. जनजातीय उत्सव. यह कोई स्थानीय पारम्परिक उत्सव नहीं , अपितु भारत की आज़ादी का जश्न है. 1947 मे पहली बार यह जलसा यहां से 10 किलोमीटर दूर कारगा में मनाया गया था . स्थानीय लोगों की भागीदारी और उत्सुकता को देखते हुए प्रशासकों ने सोचा कि क्यों न इस जश्न- ए -आज़ादी को सरकारी कार्यक्रम के साथ जोड़ कर इसे एक रेगुलर फीचर बना दिया जाए? यह सोच कारगर सिद्ध हुई, और न जाने कब इस जलसे को ज़िला हेडक्वार्टेर केलंग शिफ्ट कर दिया गया. हर वर्ष यह मेला ज़िला प्रशासन बड़े धूम धाम से मनाती है. स्थानीय ठेकेदारों, व्यपारियों, और बेचारे किसानों से भी इस आयोजन के लिए भारी चन्दा वसूला जाता है. बाहर से नाचने गाने वाले बुलाए जाते हैं. खूब धमाचौकड़ी मचती है. हम इसे बचपन से "पन्द्रागस्त का जलसा" नाम से मनाते हैं. 

इस वर्ष बिहार - झारखण्ड और नेपाल के मज़दूर इस मेले में बहुतायत में दीखे . घाटी मे रोह्तांग टनल का काम शुरू होने वाला है, साथ मे कुछ जल-विद्युत परियोजनाएं भी सरगर्मियां दिखा रही हैं. राजनेता खुश हैं. बुद्धिजीवी खामोश.
2. इस माह मेरी मासी के बेटे रिंकू की शादी में खूब मज़ा आया. परम्परा पर बाहरी संस्कृति का गैर ज़रूरी असर देख कर क्षुब्ध भी हुआ.


3. मैंने इतिहासकार् तोबदन के साथ रंग्चा दर्रा होते हुए घण्टा पर्वत की परिक्रमा की. लाहुल के देवता इसी दर्रे से हो कर तिनन घाटी पहुंचे थे. अपने पुरखों के पद्चिन्हों पे चलते हुए मैं अजीब सा रोमांच महसूस कर रहा था.

इस बार इतना ही. अगली बार सुरेश सेन की कविता पोस्ट करूंगा, या फिर अनूप सेठी की कविताओं पर कुछ लिखूंगा. राजा गेपङ प्रसन्न रहें !
स्वागत है भाई...
ReplyDeleteबहुत सुन्दर.
ReplyDeleteचिट्ठाजगत में आपका स्वागत है.......भविष्य के लिये ढेर सारी शुभकामनायें.
गुलमोहर का फूल
Shubhkamnaon sahit swagat hai!
ReplyDeletehttp://kavitasbyshama.blogspot.com
http://shamasansmaran.blogspot.com
http://aajtakyahantak-thelightbyalonelypath.blogspot.com
http://shama-baagwaanee.blogspot.com
chilly pic. the one with the frozen tap n nice post
ReplyDelete