कविता की शिनाख्त
- बिली क़ॉलिंस
( अनुवाद
: सिद्धेश्वर सिंह )
मैं कहता हूँ उनसे कि एक कविता लो
और रोशनी की ओर कर उसे देखो
एक रंगीन स्लाइड की तरह।
या फिर अपना कान सटाओ इसके छत्ते से।
मैं कहता हूँ एक चूहे को छोड़ दो कविता के अंदर
और देखो कि कैसे खोजता है वह बाहर आने की राह।
या घुसकर घूमो कविता के कक्ष के भीतर
और महसूस करो दीवारों को बिजली के स्विच की खातिर।
मैं चाहता हूँ कि वे वाटर- स्की करें
किसी कविता की सतह के ओर - छोर
और तट पर लिखे रचयिता के नाम की ओर हिलाते रहें हाथ।
लेकिन वे जो करना चाहते हैं वह है यह
कि रस्सी से बाँधकर कविता को कुर्सी संग
उससे करवाना चाहते हैं कुछ कुबूल।
वे शुरू करते हैं उसे एक पाइप से पीटना
ताकि जान सकें कि क्या है इसका सचमुच का अर्थ।
मैं कहता हूँ उनसे कि एक कविता लो
और रोशनी की ओर कर उसे देखो
एक रंगीन स्लाइड की तरह।
या फिर अपना कान सटाओ इसके छत्ते से।
मैं कहता हूँ एक चूहे को छोड़ दो कविता के अंदर
और देखो कि कैसे खोजता है वह बाहर आने की राह।
या घुसकर घूमो कविता के कक्ष के भीतर
और महसूस करो दीवारों को बिजली के स्विच की खातिर।
मैं चाहता हूँ कि वे वाटर- स्की करें
किसी कविता की सतह के ओर - छोर
और तट पर लिखे रचयिता के नाम की ओर हिलाते रहें हाथ।
लेकिन वे जो करना चाहते हैं वह है यह
कि रस्सी से बाँधकर कविता को कुर्सी संग
उससे करवाना चाहते हैं कुछ कुबूल।
वे शुरू करते हैं उसे एक पाइप से पीटना
ताकि जान सकें कि क्या है इसका सचमुच का अर्थ।
कविता कवि की कल्पना से बाहर नहीं जा पाती ... अपने स्वार्थ अनुसार वो उसे घड़ता है .. फिर परोसता है ... अर्थ तो लिखने से पहले ही पता होता है ...
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