(पिछ्ली पोस्ट से जारी )
…तो सम्राट, राजा और उनके समस्त अधिकारियों, राणकों, सामंतों समेत अभिजात्यों और सभासदों ने एक विराट यज्ञ का आयोजन किया. एक हज़ार गउओं और इक्यावन अश्वों की बलि हुई. ‘त्राहि माम..त्राहि माम….’ आपद्धुरणाय ! आपद्धुरणाय !’ का मंत्रोच्चार हुआ तो उस महा-यज्ञ से ब्रह्मा तो नहीं प्रकट हुए, परंतु सबको आश्चर्यचकित और किंकर्तव्यविमूढ़ करते एक परम शक्तिसंपन्न तंत्राचारी, उच्चकुलासीन, विकट, अपराजेय अघोरपंथ के उपासक, पंच ‘मकारवादी’ (अर्थात, मांस, मदिरा, मत्स्य, मैथुन तथा मुद्रा भोगी) एक शिखाधारी, तिलकित भाल, रक्ताभ-नयन, अर्द्ध- यम, अर्द्ध-धवल मिश्रवर्णी) बलशाली पौरुषेय, परसुधारी मानव-रूप प्राणी का आगमन हुआ.
उस प्रचंड हिंस्र तंत्राचारी ने सबकी याचना सुनने के उपरांत कहा –‘आप सब निर्भय हों. समस्त भोगों और विलासों को प्राप्य मानें. निष्कंट और प्रफ़ुल्ल रहें. मेरे अधीन एक अमोघ शस्त्र है. यह अभिशाप के प्रारूप में है. मैं आज ही इसकी साधना करता हूं तथा इसे उपलब्द्ध कर इस महाभिशाप को अनंत-अनंत युगों, संवत्सरों तक के लिए अभियोजित तथा क्रियाशील करता हूं. निश्चिंत रहें, उस दुष्ट आचार्य वृहन्नर अपकीर्त्ति गौतम को आजीवन वनों, नगों, पर्वतों, प्राचीरों एवं दुर्गम-दुस्सह कंदराओं में भटकना पड़ेगा. वह इस यंत्रणा से कभी मुक्त नहीं हो सकेगा.’
इतना कहने के पश्चात इस मानवतनधारी तंत्रोपासक, जिसके वशीभूत राज्य-प्रणाली के समस्त ‘तंत्र’ थे, ने दीर्घ उच्छ्वास के साथ कहा –‘अब इस अपकीर्त्ति गौतम का अंत ही आप सब समझें.’
इस वचन के साथ उसने इक्कीस नर-मुंडों का हवन समिधा की भांति कुंडाग्नि में किया और आकाश, जहां प्रचंड चक्रवात की आशंका झलक रही थी, की ओर अपना मुख उठा कर, दोनों बाहुओं को ऊपर उठाते हुए, कानों को वधिर कर देने वाले शब्दों में शाप दिया ….
....... जारी
अशेष |
उस प्रचंड हिंस्र तंत्राचारी ने सबकी याचना सुनने के उपरांत कहा –‘आप सब निर्भय हों. समस्त भोगों और विलासों को प्राप्य मानें. निष्कंट और प्रफ़ुल्ल रहें. मेरे अधीन एक अमोघ शस्त्र है. यह अभिशाप के प्रारूप में है. मैं आज ही इसकी साधना करता हूं तथा इसे उपलब्द्ध कर इस महाभिशाप को अनंत-अनंत युगों, संवत्सरों तक के लिए अभियोजित तथा क्रियाशील करता हूं. निश्चिंत रहें, उस दुष्ट आचार्य वृहन्नर अपकीर्त्ति गौतम को आजीवन वनों, नगों, पर्वतों, प्राचीरों एवं दुर्गम-दुस्सह कंदराओं में भटकना पड़ेगा. वह इस यंत्रणा से कभी मुक्त नहीं हो सकेगा.’
इतना कहने के पश्चात इस मानवतनधारी तंत्रोपासक, जिसके वशीभूत राज्य-प्रणाली के समस्त ‘तंत्र’ थे, ने दीर्घ उच्छ्वास के साथ कहा –‘अब इस अपकीर्त्ति गौतम का अंत ही आप सब समझें.’
इस वचन के साथ उसने इक्कीस नर-मुंडों का हवन समिधा की भांति कुंडाग्नि में किया और आकाश, जहां प्रचंड चक्रवात की आशंका झलक रही थी, की ओर अपना मुख उठा कर, दोनों बाहुओं को ऊपर उठाते हुए, कानों को वधिर कर देने वाले शब्दों में शाप दिया ….
....... जारी
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