Saturday, August 9, 2014

पाँच फ़ीट सात इंच का काँटा


·        बाबुषा कोहली



कोई बड़ा मशहूर क़िस्सा भी नहीं, पर क़िस्सा तो क़िस्सा.

एक समय की बात है. बग़दाद के सुलतान को बंजारा जाति की एक लड़की से मुहब्बत हो गयी. वो उस हवा को अपने पास रख लेना चाहता था. पर वो किसी सूरत हाथ न आती थी. तब सुलतान ने अपने जादू- टोने की तालीम का सहारा लिया और उस लड़की को मछली बना दिया.

मछली माशूका को उसने अपने जलघर में छोड़ दिया और उसे दिन रात मुहब्बत किया करता. वक़्त -वक़्त पर वो जलघर का पानी बदल देता और आटे की गोलियाँ पानी में डाल दिया करता. मछली जान भी जलघर के पानी में घुल मिल गयी. अब उसे कोई हाथ लगाता तो वो डर जाती और कोई बाहर निकालता तो वो मरने-सी हो जाती. इस तरह मछली जान और सुलतान की ज़िन्दगी चलती रही.

वक़्त बीतने लगा. मछली जान अपने जलघर में खुश रहती. करतब करती, मचलती, उछलती, खुली आँखों में सौ सालों की नींद पूरी करती. फिर धीरे- धीरे सुलतान ने उसके पास आना कम कर दिया. पानी बदलने और आटे की गोलियाँ मिलने की रवायत भी पहले सी न रही. 

पर मछली जान ने शिक़ायत नहीं की.

इधर मछली जान को ज़माने भर के मछेरे देखते. टुकुर-टुकुर.
मछली जान ने चौखट पर आँखें टाँक दी थीं. सुलतान कभी-कभार आता तो आँखों को चूम लेता. मछली जान के गलफड़ों में हवा आते -जाते रहने के लिए तो इतना भी बहुत.

ऐसे ही टुकुर -टुकुर दिन गुज़रने लगे.

फिर एक दिन यूँ हुआ कि सुलतान के घर हरी तरकारी न थी. सो उसने यूँ किया कि मछली जान को जलघर से निकाला और राई तेल डाल कर कड़ाही में भून दिया. पूरे परिवार ने मिलकर शौक़ से मछली जान का स्वाद लिया.

क़िस्सा यहाँ ख़त्म हो जाना था पर ऐसा होता नहीं.

आगे यूँ हुआ कि सुलतान जब शौक़ से मछली जान के टुकड़ों से पेट भर रहा था तभी उसके सीने में एक काँटा जा फँसा.

जानती हो अ, वो पाँच फ़ीट सात इंच का काँटा था. क़िस्सा, दरअसल यहाँ से शुरू होता है...




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3 comments:

  1. बहुत गहरी ... काँटा जाता भी तो कहाँ वो तो शुरू के दिल के पास ही फंसा हुआ था ...

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  2. सटीक अंत ... बेहतरीन

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  3. ख़ुदा बचाये ऐसी मनहूस मोहब्बत से। पर मछलियाँ भी नियति से मजबूर हैं। अच्छा किस्सा है।

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